रायबरेली में पहली बार 1996 में खिला था कमल
रायबरेली,23 मार्च(हि.स.)। देश के महत्वपूर्ण लोकसभा सीट में से एक रायबरेली को हमेशा से कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाता रहा है, बावजूद इसके भाजपा ने 1996 में यहां अपना परचम फहराया था और कांग्रेस के गढ़ में पहली बार कमल खिला था। भाजपा के लिए यह चुनाव परिणाम जहां उत्साहजनक रहा, वहीं कांग्रेस का प्रदर्शन काफ़ी निराशाजनक था। रायबरेली में हुए अब तक के चुनाव में यह सबसे ख़राब प्रदर्शन कांग्रेस का था और यह पार्टी के लिए अपने ही गढ़ में सबसे बुरा दौर रहा। जबकि भाजपा ने अपनी विजय आगे भी जारी रखते हुए 1998 में यहां से जीत दर्ज की।
दरअसल, रायबरेली में केवल तीन चुनाव ही ऐसे हैं जहां कांग्रेस से अलावा दूसरी पार्टियों की जीत हुई है।1977 में जनता पार्टी जबकि 1996 और 1998 में भाजपा यहां से विजयी रही। मंडल कमंडल के दौर में रायबरेली में पहली बार पार्टी का खाता खुला और अशोक सिंह विजयी हुए। भारतीय जनता पार्टी के अशोक सिंह को 163,390 वोट मिले और उन्होंने जनता दल के अशोक सिंह को मात दी। जनता दल उम्मीदवार को 129,503 वोट मिले। सबसे ख़राब स्थिति कांग्रेस की रही। कांग्रेस उम्मीदवार विक्रम कौल इंदिरा गांधी के ममेरे भाई और शीला कौल के पुत्र थे लेकिन वह कोई करिश्मा नहीं कर सके और उन्हें मात्र 25,457 वोट ही मिल सके। कांग्रेस के लिए यह सबसे बड़ी फ़जीहत थी। अपने ही गढ़ में कांग्रेस के लिए यह सबसे बुरा दौर रहा।
रायबरेली में भाजपा ने 1996 में बेहतरीन प्रदर्शन किया और पार्टी को 33.93 प्रतिशत वोट मिले। यह रायबरेली में पार्टी का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन था। जनता दल को 26.90 प्रतिशत, बसपा को 24.80 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस को मात्र 5.29 प्रतिशत वोट ही मिल पाए थे, जो कि उसके लिए अब तक सबसे कम वोट प्रतिशत था।
राजनीतिक विश्लेषक रवीन्द्र सिंह चौहान कहते हैं ' उस दौर में कांग्रेस के विरोध में लहर थी लेकिन रायबरेली में इस हालत के जिम्मेदार कांग्रेस के नेता ख़ुद थे। शीला कौल यहां दो बार सांसद रहीं लेकिन कभी सक्रिय नहीं रहीं। जिससे जनता नाराज़ थी और कांग्रेस को काफ़ी निराशाजनक परिणाम मिले।'
हिन्दुस्थान समाचार/रजनीश/राजेश