भाऊराव ने समाज को जाग्रत करने का कार्य किया : अनुराग पाठक
प्रयागराज, 18 नवम्बर (हि.स.)। भाऊराव देवरस संघ के साथ स्वाधीनता आंदोलन में भी सक्रिय रहे। वैसे तो संघ की शाखा सर्वप्रथम काशी में भैयाजी दाणी द्वारा प्रारम्भ की गयी थी, पर संघ के काम को उप्र के हर जिले तक फैलाने का श्रेय भाऊराव देवरस को है। संघ के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती जैसे संगठन की कल्पना, राष्ट्र धर्म एवं पांचजन्य पत्रिका के माध्यम से समाज को जाग्रत करने का कार्य किया।
यह बातें केंद्रीय विद्यालय मनौरी के प्रवक्ता अनुराग पाठक ने ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज गंगापुरी रसूलाबाद में रानी लक्ष्मीबाई व भाऊराव देवरस जयंती की पूर्व संध्या पर बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई के विषय में कहा कि वह पुरूषों की तरह कपड़े पहनती और वीर भेष में रहती थीं। सिर पर लाल टोपी, तलवार और ढाल और पिस्तौल हरदम साथ रखती थीं। काना, मंदरा, झलकारी बाई सखियाँ उसके साथ रहती थीं। लगभग दस महीने रानी ने झाँसी पर शासन किया। अंग्रेजी सेना तो रानी की दुश्मन बनी हुई थी। ग्वालियर में दोनो ओर से घमासान लड़ाई छिड़ गई। जिसमें रानी का घोड़ा मारा गया। उनकी सखियाँ भी वीरगति को प्राप्त हो गईं।
कार्यक्रम प्रमुख जनार्दन प्रसाद दुबे ने रानी लक्ष्मीबाई के विषय में भैया-बहनों को बताते हुए कहा कि रानी लक्ष्मीबाई ने युद्ध में अपने जीवन की अंतिम आहूति देकर जनता जनार्दन को चेतना प्रदान की और स्वतंत्रता के लिए बलिदान का संदेश दिया। विद्यालय के प्रधानाचार्य युगल किशोर मिश्र ने रानी लक्ष्मीबाई व भाऊराव के चित्र पर दीपार्चन एवं पुष्पार्चन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।
विशिष्ट अतिथि लेखाकार चिट फंड कार्यालय राग विराग ने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई भारत की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थीं। जिन्होंने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। प्रदेश निरीक्षक भारतीय शिक्षा समिति काशी प्रांत शेषधर द्विवेदी ने अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस व रानी लक्ष्मीबाई तथा भाउराव देवरस के जीवन चरित्र पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। विद्यालय के आचार्य सन्दीप कुमार मिश्र ने सभी भैया बहनों को कार्यक्रम की उपादेयता बताते हुए आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन आचार्या रीता विश्वकर्मा ने किया इस अवसर पर सभी छात्र-छात्रा एवं अध्यापक गण उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/पदुम नारायण