कर्म, भक्ति एवं ज्ञान का अद्भुत संगम है भागवत: स्वामी नारायणानंद
मीरजापुर, 04 मार्च (हि.स.)। पटेहरा ब्लाक के ग्राम पंचायत धनावल में साप्ताहिक श्रीमद्भागवत ज्ञानयज्ञ के दूसरे दिन स्वामी नारायणानन्द ने गुरु शब्द की व्याख्या की। भक्तों ने श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में कर्म, भक्ति एवं ज्ञान गंगा में डुबकी लगाई।
स्वामीजी ने बताया कि भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते है।
उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नही साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है। इसके एक-एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाए हुए हैं। कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्माें से बढ़कर है। श्रीमद् भागवत तो दिव्य कल्पतरु है। यह अर्थ, धर्म, काम के साथ ही भक्ति और मुक्ति प्रदान कर जीव को परम पद प्राप्त कराता है।
हिन्दुस्थान समाचार/गिरजा शंकर/मोहित