लोलार्क कुण्ड में आधी रात के बाद शुरू होगा स्नान, एक दिन पहले ही श्रद्धालु पहुंचे

 




—मान्यता है कुंड में स्नान और लोलार्केश्वर महादेव की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है, देश के कोने—कोने से जुटते हैं श्रद्धालु

वाराणसी, 08 सितम्बर (हि.स.)। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि सोमवार को भदैनी स्थित लोलार्क कुण्ड में लाखों श्रद्धालु संतान की आस में डुबकी लगाएंगे। कुंड में आधी रात के बाद स्नान के लिए हजारों श्रद्धालु रविवार दोपहर में ही भदैनी पहुंच कर कतारबद्ध हो गए। देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु कतार में ही जमीन पर बैठ कर स्नान पर्व में डुबकी लगाने के लिए लालायित दिखे। कुंड में स्नान के लिए उमड़ने वाली संभावित भीड़ की सुरक्षा के लिए जिला प्रशासन ने भी पूरी तैयारी की है।

अपर पुलिस आयुक्त एस चनप्पा, काशी जोन के डीसीपी गौरव बंशवाल ने लोलार्क कुंड पहुंच कर सुरक्षा प्वाइंटों को देखा और पुलिस अफसरों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए। मेले में सुरक्षा कारणों से प्रवेश और निकास के लिए अलग-अलग द्वार बनाया गया है। कुंड के भीतर एनडीआरएफ और जल पुलिस के जवान सुरक्षा कारणों से तैनात रहेंगे। वालंटियर भी मदद के लिए वहां मौजूद रहेंगे। अफसरों के अनुसार श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए पांच एडिशनल एसपी, 08 सीओ, 14 निरीक्षक, 40 उपनिरीक्षक सहित 200 पुलिसकर्मी, 100 महिला पुलिसकर्मी, एक कंपनी पीएसी और एक कंपनी पैरामिलिट्री फोर्स तैनात रहेगी।

उल्लेखनीय है कि भदैनी स्थित पौराणिक लोलार्क कुंड में स्नान और लोलार्केश्वर महादेव की पूजा करने से मान्यता है कि संतान की प्राप्ति होती है। व्रतियों की गोद भगवान सूर्य की कृपा से अवश्य भरती है। काशी खंड के 32वें अध्याय में उल्लेख है कि लोलार्क कुंड स्थित मंदिर में स्वयं माता पार्वती ने शिवलिंग की पूजा की थी। कहा जाता है कि पांडवों ने भी यहां कुंड में स्नान किया था। भगवान सूर्य की पहली लाल किरण इस स्थल पर पड़ी थी जिसके कारण इसे 'सूर्य लोल' कहा गया और इसी कुंड में भगवान सूर्य का चक्र भी गिरा था।

क्षेत्रीय नागरिक रमेश पांडेय बताते हैं कि भाद्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन पुत्र प्राप्ति की कामना से सूर्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए इस लोलार्क कुंड में सपत्नीक स्नान करने का विधान है। स्नान करने के बाद अपने शरीर पर पहने हुए वस्त्र को वहीं त्याग कर नवीन वस्त्र धारण कर लिया जाता है। एक फल बेल, धतूर का फल, लौकी, कोहड़ा आदि कुंड में छोड़ा जाता है। उसे जीवन पर्यंत नहीं खाया जाता। कुंड में स्नान के बाद जिसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है, वह मां गंगा, लोलार्क बाबा ( सूर्यदेव ), भोले बाबा महादेव को कढ़ाही चढ़ाते हैं। इसी दिन अघोराचार्य बाबा कीनाराम का जन्म रविन्द्रपुरी स्थित अघोर शोध एवं सेवा संस्थान क्रीं कुंड में मनाता है। सुबह प्रभात फेरी के बाद पीठाधीश्वर सिद्धार्थ गौतमराम औघड़-अघोरेश्वर समाधियों का दर्शन-पूजन कर श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी