भगवान राम ने मनुष्य के चार धर्मों को किया चरितार्थ : त्रिदंडी स्वामी

 


बलिया, 03 जनवरी (हि. स.)। गड़हांचल के बघौना में श्री श्री 1008 गंगापुत्र श्रीलक्ष्मीनारायण त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के श्रीमुख से रामकथा सुन कर भक्तजन निहाल हो रहे हैं। कथा के छठवें दिन बुधवार को उन्होंने कहा कि मनु के चार धर्मों को चरितार्थ करने के लिए भगवान राम अंशों सहित प्रकट हुए।

गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी ने बड़ी संख्या में जुटे श्रद्धालुओं को भगवान राम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि सृष्टि के प्रारंभ में ब्रम्हा ने अपने शरीर के दो भाग किए। जिनसे मनु और शतरूपा हुए। मनु व शतरूपा ने तप किया और भगवान से कहा आप हमारे बेटा बन के आओ। हमें पीड़ा है। हमने मनु स्मृति लिखा है लेकिन मनुष्य तो कर नहीं सकते तो आप बेटा बन के आओ और पालन करके दिखाओ। जिसमें राम जी का आचरण अनुरूप है। राम जी ने उस धर्म को चार रूपों में प्रकट किया। इसीलिए रामो विग्रह्वान धर्मः कहा गया है। अर्थात सामान्य धर्म और विशेष धर्म। सामान्य धर्म तो नींव है। लक्ष्मण जी का धर्म विशेष धर्म है। राम जी ने कहा हे लक्ष्मण ! मैं तो पिता के सत्य में बंधा हुआ हूं। मैं तो चौदह वर्ष के लिए वन में जाऊंगा। भरत और शत्रुघ्न यहां नहीं हैं। इसलिए वे धर्म में बंधे नहीं हैं। जब आयेंगे तो उन पर भार होगा। इसी बीच माता-पिता की देख-रेख कौन करेगा। अब तुम्हारा धर्म है पिता का ध्यान रखो।

त्रिदंडी स्वामी ने ''माता रामो मत पिता राम चंद्र:, स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।'' के जरिए समझाते हुए कहा कि राम जी ने कहा ऐसा करोगे तो संसार में तुम्हारी अपकीर्ति होगी, नरक जाना पड़ेगा। हमें तो बस आप और आपकी सेवा चाहिए। भरत जी का धर्म विशेषतर धर्म है। भरत ने तो वलकल धारण कर लिया। जटा बना ली पर शत्रुघ्न का धर्म विशेषतम धर्म है। शत्रुघ्न तो राज वस्त्र धारण करते हैं। नृत्य गान देखते हैं। हंसने वालों को बुला कर हंसी नाटक करवाते हैं। क्यों चौदह साल बाद राम जी आयेंगे और तुम सब रोओगे तो स्वर्ग से विदूषक आएंगे। तुम्हारा अधिकार छिन जायेगा। इसलिए इतना अभ्यास करो की तुम्हारी कला को देख राम जी खिलखिला कर हंस पड़ें। राम जी के वियोग में गायें चारा नहीं खातीं। जल नहीं पीतीं। शत्रुघ्न उनके गले से लिपट जाते। कहते हैं कि आप चारा नहीं खाएंगी और कहीं शरीर छूट गया और राम जी आयेंगे और आपको नही देखेंगे तो उनको कितना कष्ट होगा राम जी को रुलाना चाहती हैं। तब गायें चारा खाना प्रारंभ करती हैं। ऐसे ही सबको सांत्वना देते हैं। घोड़ों, हाथी और सायं को दिन भर की सूचना भरत को सुनाते हैं।

रात भर राम और भरत के विरह ताप में हा राम हा भरत करते रात भर रोते हैं। फिर सुबह मुस्कुराते हुए सबको सांत्वना देते हैं। ये है दिव्य शत्रुघ्न का चरित्र। त्रिदंडी स्वामी ने कथा के अंत में चार जनवरी को होने वाले भंडारे के लिए सभी को आमंत्रित किया।

हिन्दुस्थान समाचार/एन पंकज/बृजनंदन