रंगों से हमारे शरीर की एनर्जी संतुलित : सतीश राय
प्रयागराज, 21 मार्च (हि.स.)। जीवन में रंगों का बहुत महत्व है, रंगों के द्वारा भी उपचार होता है। इसे हम कलर थेरेपी यानी रंग चिकित्सा कहते हैं। शरीर के विभिन्न अंगों पर रंग लगाकर शरीर की एनर्जी को संतुलित किया जाता है। होली के दिन शरीर पर रंग लगाकर बिना संकोच के कहीं भी आ-जा सकते हैं।
यह बातें एसकेआर योग एवं रेकी शोध प्रशिक्षण और प्राकृतिक संस्थान पर जाने-माने स्पर्श चिकित्सक सतीश राय ने कही। उन्होंने कहा कि फाल्गुन माह में होने वाले बड़े-बड़े उत्सव एवं शादी विवाह में रंग खेलने की परम्परा भी है। इसका आध्यात्मिक पहलू है रंग हमारे शरीर के एनर्जी को संतुलित करते हैं जिसके कारण बहुत सी बीमारियां अपने आप ठीक हो जाती हैं। सभी उम्र के लोगों को पूरे मन एवं उत्साह से होली में रंग जरूर खेलना चाहिए, यह शरीर में हैप्पी हारमोंस को बढ़ाता है।
--सूर्य के प्रकाश का शरीर पर चिकित्सीय प्रभाव
उन्होंने बताया कि ग्रन्थों में अग्नि चिकित्सा, वायु चिकित्सा, मंत्र चिकित्सा, जल चिकित्सा, स्पर्श चिकित्सा के साथ-साथ सूर्य चिकित्सा का उल्लेख मिलता है। सूर्य के प्रकाश का शरीर पर चिकित्सीय प्रभाव पड़ता है और रंग चिकित्सा में भी सूर्य प्रकाश का ही उपयोग होता है। रंग लगाकर उपचार करने की विधि को हिलीयो थेरेपी कहते हैं। रोमन भाषा में हेलियों का अर्थ है सूर्य और थेरेपी का अर्थ चिकित्सा से है। सूर्य की किरणों एवं इंद्रधनुष में सात रंग होते हैं और हमारे शरीर के सात प्रमुख चक्र के रंग भी सात हैं। सहस्त्रार चक्र का रंग बैगनी, आज्ञा चक्र का गहरा नीला, कंठ चक्र आसमानी, हृदय चक्र हरा, मणिपुर चक्र पीला, स्वाधिष्ठान चक्र नारंगी और मूलाधार चक्र का रंग लाल होता है। यह सातों रंग हमारे जीवन और हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में अत्यंत सक्षम हैं।
ॅ--रंग चिकित्सा में हो रहा हाई टेक्नोलॉजी का प्रयोग
सतीश राय ने बताया कि आज रंग चिकित्सा में आधुनिक उपकरणों द्वारा उपचार हो रहा है। प्रयागराज में भले ही रंग चिकित्सा से उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है, लेकिन अति विकसित महानगरों में रंग चिकित्सा में हाई टेक्नोलॉजी द्वारा उपचार हो रहा है। इस विधि से शारीरिक या मासिक रोगों का उपचार सरलता से किया जाता है। जिसमें चेहरे पर मुंहासे, शरीर पर दाने, जख्म को सूखने, डिप्रेशन, एलर्जी, कफ, दर्द, माइग्रेन, पेट रोग, अनिद्रा, अस्थमा आदि शामिल हैं।
सतीश राय ने कहा कि रंग से सम्बंधित एक अन्य पद्धति क्रोमो थेरेपी भी है। इसके अनुसार मानव शरीर मूल रूप से रंगों से बना है और शरीर के सभी अंगों का अपना-अलग रंग होता है। बैगनी रंग मानसिक रोग, डिप्रेशन, दर्द, सूजन, बुखार, मांसपेशियों के खिंचाव तनाव को कम करता है। नीला रंग शरीर को शीतलता प्रदान करता है। बुखार, हाई ब्लड प्रेशर, नर्वस ब्रेकडाउन, अनिद्रा, अच्छी नींद लाता है पेट में जलन, गर्मी शुगर, स्वप्नदोष, मासिक धर्म का अनियंत्रित होना, थायराइड, पैराथायराइड ग्रंथियों को सक्रिय करता है। आसमानी रंग बुखार, जलन, गर्मी को दूर करता है यह पिट्यूटरी ग्रंथि को सक्रिय करता है। हरा रंग मन में उत्साह भरता है ताजगी, प्रसन्नता, त्वचा के रोग, शरीर के कीटाणुओं को नष्ट करता है। टाइफाइड, चेचक, हृदय रोग, फेफड़ों में कमी, पेशाब रोग, किडनी गुर्दा रोग में लाभकारी है। पीला रंग पाचन से सम्बंधित सभी बीमारियां दूर होती हैं शरीर के हारमोंस को ठीक करता है, खांसी, जुकाम, जिगर, कब्ज, पीलिया, लीवर के रोगों में लाभ होता है। नारंगी रंग से पेशाब म्ंबंधित रोग, नपुंसकता, बांझपन, मूत्रनली में लाभदायी। लाल रंग शरीर को ताकत देता है। लाल रंग माथे पर लगने से सर दर्द अनिद्रा मस्तिष्क से जुड़े रोगों में आराम मिलता है। हाथ पैरों में लाल रंग लगाने से ठंडक मिलती है और शक्ति प्राप्त होती है।
--दिन के अनुसार रंग के कपड़े पहनने से लाभ
प्राचीन मिस्र एवं यूनानी उपचार की शक्ति बढ़ाने के लिए रंगीन पत्थरों एवं क्रिस्टल का उपयोग करते थे। हमारे पूर्वजों को भी रंगों से शरीर में होने वाले फायदे का पता था। सप्ताह के 7 दिन अलग-अलग रंग के कपड़े पहनने से भी व्यक्ति को कई तरह के लाभ मिलता है। जैसे सोमवार को सफेद, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरा, बृहस्पतिवार को पीला, शुक्रवार को गुलाबी, शनिवार को नीला और काला, रविवार को नारंगी रंग का कपड़ा पहनना चाहिए। धार्मिक परम्परा के अनुसार इससे हमारे ग्रह नक्षत्र ठीक होते हैं और उनसे सम्बंधित बीमारियां भी अपने आप ठीक होती हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/सियाराम