मानव अधिकार और शोषण पर बाबा साहब ने बुलंद की थी आवाज : संजय जाटव
कानपुर, 14 अप्रैल (हि.स.)। जब-जब धर्म का नाश होता है तब तब कोई महान आत्मा समाज सुधारों के लिए इस पृथ्वी पर जन्म लेती है। ऐसे ही समाज सुधारक बाबा साहब अंबेडकर थे जिन्होंने महिला सुरक्षा, सामाजिक न्याय, महिला अधिकार, मानव अधिकार और शोषण इत्यादि के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी। उनका मानना था की वर्तमान समय में जाति व्यवस्था समाप्त होनी चाहिए। यह बातें रविवार को बाबा साहब के जन्म दिवस पर छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय (सीएसजेएमयू) में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि उच्च न्यायालय के अधिवक्ता संजय जाटव ने कही।
सीएसजेएमयू के मानविकी एवं समाज विज्ञान संस्थान में भारत रत्न डॉ भीमराव अंबेडकर के 134 वें जन्म दिवस पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया जिसका विषय अंबेडकर और सामाजिक न्याय रहा।
प्रोफेसर संदीप कुमार सिंह ने भीमराव अंबेडकर से जुड़े हुए अनेक वृतांत बताएं और उन्हें समाज कार्य के एडवोकेसी से जोड़ते हुए बताया कि 'काम ऐसा करो पहचान बन जाए नाम ऐसा करो कि मिसाल बन जाए।'
डॉक्टर सिंह ने बताया कि अंबेडकर के अंतिम समय में उनके पास 35000 पुस्तक थी इससे यह प्रतीत होता है कि भारत रत्न अंबेडकर पुस्तक प्रेमी थे। उन्होंने भारत को पुरानी मानसिकता की गुलामी से दूर रहने की वकालत की थी। उन्होंने महिलाओं की आजादी को प्रमुखता से उठाया साथ ही वह गौतम बुद्ध जी से बहुत प्रभावित थे।
सीएसए में भी मनाई गई जयंती
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय (सीएसए) के कैलाश भवन में बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाई गई। मुख्य अतिथि डॉ मुनीश कुमार ने कहा कि संविधान निर्माता डॉ भीम राव अंबेडकर ने अपना पूरा जीवन अछूतों, महिलाओ एवं आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की भलाई के लिए न्योछावर कर दिया। उन्होंने कहा कि वह एक महान अर्थशास्त्री तथा समाज सुधारक थे। जिन्होंने सामाजिक समरसता के लिए अहम भूमिका निभाई।
डॉ मुनीश कुमार ने कहा कि वह देश के संविधान के शिल्पकार थे। यही कारण है कि उन्हें भारतीय संविधान का जनक भी कहा जाता है। डॉ भीमराव अंबेडकर ने भारतीय कानून एवं शिक्षा में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में भी कार्य किया।
हिन्दुस्थान समाचार/अजय/बृजनंदन