ननिहाल के कलाकारों ने किया भांजे की लीला का जीवंत मंचन

 




अयोध्या, 30 दिसंबर (हि.स.)।श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा आयोजित द्वितीय प्रतिष्ठा द्वादशी समारोह के मंच पर मंगलवार को भी हुई रामलीला, परंपरा से हटकर विशेष आकर्षण का केंद्र रही| गायन एवं नृत्य शैली में प्रस्तुत रामलीला का मंचन सीता हरण से आगे प्रस्तुत किया गया|

मान्यतानुसार रानी कौशल्या के मायके छत्तीसगढ़ के कलाकारों ने रिश्ते में भांजे प्रभु राम की रोचक लीला का मंचन किया| इसके पूर्व सुल्तानपुर के आरुष चौरसिया ने गणेश वंदना व रघुपति राघव राजा राम की प्रस्तुत दी|

अंगद टीला परिसर में बने समारोह मंच पर 30 दिसंबर मंगलवार को गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ से जुड़ी छात्र-छात्राओं द्वारा रामलीला का मोहक मंचन किया गया| किष्किंधा कांड में राम-हनुमान भेंट, सुग्रीव-राम भेंट, सुग्रीव-बालि युद्ध, हनुमान सीता भेंट, लंका दहन, लंका से हनुमान की वापसी, राम विभीषण संवाद, रामसेतु निर्माण, अंगद-रावण संवाद, युद्ध प्रारंभ, रावण का प्रथम दिन युद्ध में आगमन, कुंभकरण का आगमन, मेघनाथ एवं संजीवनी बूटी प्रसंग, रावण से अंतिम युद्ध व रावण लक्ष्मण संवाद सहित 16 प्रसंगो का मंचन किया गया|

देश में परंपरागत रूप से होने वाली गद्य संवाद शैली की रामलीलाओं से अलग नृत्य एवं गायन संवाद की प्रमुखता रही| वाद्य यंत्रों की मद्धिम पार्श्व ध्वनि के साथ कलाकारों का गीतमय संवाद अपने आप में अनोखी प्रस्तुति रही| 40 सदस्यीय मंचन टीम में शास्त्रीय एवं सामान्य प्रचलित संगीत का मिश्रण सुनने को मिला|

कार्यक्रम निर्देशक राहुल राज तिवारी, सुनील चिपडे रहे| प्रबंधन धनंजय पाठक, रामशंकर उर्फ़ टिंन्नू, नरेन्द्र, आशीष मिश्र, डॉ चन्द्रगोपाल पाण्डेय, हेमेंद्र द्विवेदी आदि ने किया| मुख्यरूप से सुरेन्द्र सिंह, वीरेंद्र, उमेश पोरवाल, के के तिवारी आदि उपस्थित रहे|

बच्चों की तरह निर्मल मन में ही होती है राम की प्रतिष्ठा

बालक राम सहज हैं, सुलभ हैं, राम कथा को वसुंधरा पर लाने का श्रेय महादेव को जाता है| कागभुसुंडि जैसे ज्ञानी ने बालक राम का जब दर्शन किया तो वह 5 वर्ष तक अयोध्या में ही विराजमान रहे| वह राम बालक के रूप में जो थे उनका वंदन करते रहे| जिसका हृदय बालक की तरह नहीं होगा उसके मन में राम की प्रतिष्ठा नहीं हो सकती| भगवान हमेशा मन मांगते हैं| क्योंकि इसी मन में दम्भ, द्वेष, दुराशा होती है| भगवान निर्मल मन की कामना रखते हैं, निर्मल मन बच्चे का होता है|

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र द्वारा आयोजित द्वितीय प्रतिष्ठा द्वादशी अवसर पर अंगद टीला मैदान के मंच पर दूसरे दिन की कथा में व्यास जगद्गुरु रामानुजाचार्य

संत रामदिनेशाचार्य ने कहा कि राम मंदिर निर्माण से सादियों के अंतराल के बाद अयोध्यावासियों को प्राण की प्राप्ति हुई, अयोध्या जीवंत हो उठी| आज पूरा विश्व राम के विषय में जानने को उत्सुक है| एक उदाहरण के माध्यम से भारद्वाज मुनि की चर्चा करते हुए कहा कि ब्रह्म में क्रोध नहीं होता, विरह नहीं होता, दशरथ नंदन राम यदि ब्रह्म हैं तो कैसे? उनमें ब्रह्म के लक्षण क्यों नहीं| श्रीराम कथा जीव के इस तरह के भ्रम को मिटाने वाली है| जीवन के हर अज्ञान, अंधकार को नाश करने में केवल राम कथा ही समर्थवान है|

संत श्री ने कहा भक्तों के हृदय में भगवान की कथा सुनने की इच्छा होनी चाहिए| इसके लिए अपने इष्ट के प्रति प्रेम होना चाहिए| कथावाचक महत्वपूर्ण नहीं होता, कथा का श्रोता महत्वपूर्ण होता है जो भगवान राम की कथा सुनता है| भक्ति में प्रतिष्ठा की चिंता नहीं होती और जहां प्रतिष्ठा की चिंता हो वहां भक्ति नहीं होती| कलयुग में इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मीरा हैं| जिसको पूजा और भक्ति का अभिमान हुआ माया ने उसकी भक्ति चूर कर दी| इसके साथ ही संत प्रवर ने माया तेरी बहुत कठिन है राह भजन गया तो श्रोता भावविभोर हो उठे| श्रीराम कथा के दूसरे दिन व्यास पीठ पर जगद्गुरु संत रामदिनेशाचार्य के आसीन होने पर ट्रस्टी डॉ अनिल मिश्र, धनंजय पाठक, डॉ चंद्रगोपाल पाण्डेय आदि ने पूजन किया| इस अवसर पर रामायणी राम शरण, नरेश गर्ग, अरुण गोयल आदि मौजूद रहे|

हिन्दुस्थान समाचार / पवन पाण्डेय