नवीन आपराधिक विधि का प्रवर्तन स्वागत योग्य: अखिलेश शाह
अयोध्या,01 जुलाई (हि. स.)। आपराधिक विधि अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में बहुधा दण्ड का प्रावधान करती है। इसका विषय क्षेत्र मनुष्य का ऐसा आचरण होता है जिसे सम्बन्धित समाज बिल्कुल सहन नहीं करना चाहता, ऐसे आचरण के प्रति सम्बन्धित जनवर्ग की सहिष्णुता शून्य होती है। इसी भावना के अनुरूप उक्त आचरणों की पुनरावृत्ति रोकने हेतु सम्बन्धित दोषपूर्ण कृत्य से प्राप्त सुख को दुख में परिवर्तित करने हेतु दण्ड का विधान किया जाता है। उक्त बातें ''नवीन आपराधिक विधि के प्रवर्तन एवं संभावनाएं'' विषय पर विधि विभाग डॉ० राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या के परिसर में साकेत महाविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रुप में वरिष्ठ अधिवक्ता अखिलेश कुमार शाह ने व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि इस प्रकार दण्ड न्याय का साधन बन जाता है। किंतु दण्ड का निर्धारण करते समय दण्ड के उद्देश्यों एवं अपराध की प्रकृति को भी ध्यान में रखा जाना आवश्यक है अन्यथा सम्बन्धित आपराधिक विधि न्याय प्राप्ति को सुनिश्चित नहीं कर पाएगी।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विधि संकायाध्यक्ष प्रो० अशोक कुमार राय ने कहा कि देश हित सर्वोपरि है। हमारी संसद ने आपराधिक न्याय प्रणाली में तीन नए कानून बनाकर देश हित में ठोस कदम उठाए हैं। ये कानून-भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) 2023 न्याय के अद्वितीय भारतीय लोकाचार पर आधारित हैं दण्ड पर नहीं। इस प्रकार ये काल सापेक्ष हैं। ये कानून क्रमशः औपनिवेशिक युग के भारतीय दण्ड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे।
उन्होंने कहा कि पहले के कानूनों का उद्देश्य मुख्यतः ब्रिटिश शासकों की सुरक्षा करना था। अब, एक नया युग शुरू हो गया है, जो ''नागरिक पहले, न्याय पहले, गरिमा पहले ''के सिद्धान्तों पर आधारित है। राजद्रोह के सम्बन्ध में दुनियाँ का सबसे बड़ा लोकतंत्र अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है और अपने विचार साझा करने वालों को दण्डित नहीं करता है।
कार्यक्रम के संयोजक एसोसिएट प्रोफेसर डॉ० अजय कुमार सिंह ने बताया कि नए आपराधिक कानूनों में तकनीक का इस्तेमाल सुनिश्चित करने हेतु विशेष प्रावधान किया गया है।नए कानून में डिजिटलीकरण को बढ़ावा दिया गया है और ई-एफआईआर पर जोर दिया गया है। पुलिस अधिकारी को 90 दिनों में डिजिटल माध्यमों से पीड़ित को कृत कार्यवाही की जानकारी देनी होगी। फोरेंसिक विज्ञान को बढ़ावा देते हुए अपराध स्थलों का दौरा और सात साल या उससे अधिक की सजा वाले मामलों में वीडियोग्राफी द्वारा साक्ष्य एकत्र करना अनिवार्य कर दिया गया है। पुलिस द्वारा सर्च करने की पूरी प्रक्रिया अथवा किसी संपत्ति का अधिग्रहण करने में इलेक्ट्रानिक डिवाइस के माध्यम से वीडियोग्राफी करना अनिवार्य कर दिया गया है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ०शशि कुमार ने बताया कि प्रक्रियात्मक विधि में ट्रायल इन एब्सेंशिया का प्रावधान किया गया है।मुकदमें में तेजी लाने के लिए, अदालत द्वारा घोषित अपराधियों के खिलाफ अनुपस्थिति में मुकदमा शुरू करना, आरोप तय होने से 90 दिनों के भीतर अनिवार्य होगा। घोषित अपराधियों के रूप में घोषित व्यक्तियों के मामलों को संबोधित करने के लिए उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा शुरू करने का प्रावधान किया गया है।
डॉ०रजनीश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि आतंकवाद के सम्बन्ध में भारतीय न्याय संहिता में पहली बार आतंकवाद की व्याख्या करके इसे दण्डनीय अपराध बना दिया गया है। आतंकी कृत्य मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास के साथ दण्डनीय है। कार्यक्रम में डॉ०सन्तोष पाण्डेय, डॉ०विवेक, डॉ०वन्दना गुप्ता ,दिलीप शुक्ला सहित विद्यार्थी उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार /पवन पाण्डेय
/बृजनंदन