चंबल के महान क्रांतिकारी पं.गेंदालाल दीक्षित को शहादत दिवस पर याद कर श्रद्धांजलि दी

 


औरैया, 21 दिसम्बर (हि.स.)। चंबल के क्रांतिवीर कमांडर इन चीफ गेंदालाल दीक्षित की पुण्यतिथि पर उन्हें शिद्दत से याद किया गया। चंबल संग्रहालय परिवार की तरफ से बाह क्षेत्र के मई गांव में पं. गेंदालाल दीक्षित के राष्ट्रीय स्मारक पर ‘चंबल गाथा’ कार्यक्रम के तहत समारोह आयोजित किया। यहां वक्ताओं ने पं. गेंदालाल दीक्षित के आजादी की लड़ाई में योगदान को याद करते हुए अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार शंकर देव तिवारी और अध्यक्षता प्रयाग नारायण शर्मा ने किया।

समारोह को सम्बोधित करते हुए स्थानीय समाजसेवी दिनेश मिश्रा ने कहा कि जल्द ही राष्ट्रीय स्मारक की बाउंड्री, सड़क और उसका नामकरण सहित आजादी योद्धा गेंदालाल दीक्षित की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी। पवन टाइगर ने कहा कि चबंल के क्रांतिवीरों की पुस्तकें छपवाकर, अभियान चलाकर विभिन्न स्कूलों व कॉलेज में चंबल क्षेत्र के नायकों से युवा पीढ़ी को परिचित कराया जाएगा। कवि विनोद साँवरिया ने अपनी मार्मिक कविताओं के जरिये महानायकों के योगदान को रेखांकित किया।

इस दौरान कमांडर इन चीफ गेंदालाल दीक्षित के जीवनीकार और महुआ डाबर एक्शन के महानायक पिरई खां के वंशज डॉ. शाह आलम राना को सम्मानित किया गया। स्मारक पर पुष्पांजलि के बाद दीपों से जगमग किया गया। इस अवसर पर विजितेंद्र गुप्ता,रमेश कटारा,बबलू यादव, रिंकल दीक्षित, राहुल यादव, नरेंद्र भारतीय, कमल किशोर दीक्षित, राम मोहन यादव, दीपक भारतीय, आलोक यादव, विजेंद्र कुमार दीक्षित आदि ने श्रद्धा अर्पित किया।

ऐसा था गेंदालाल दीक्षित का क्रांतिकारी जीवन

जंग-ए-आजादी के दौरान संयुक्त प्रांत के क्रांतिकारियों के बीच ‘मास्साब’ नाम से सुविख्यात गेंदालाल दीक्षित ने न सिर्फ छात्रों और नवयुवकों को स्वतंत्रता की लड़ाई से जोड़ा बल्कि बीहड़ के दस्यु सरदारों में राष्ट्रीय भावना जगाकर उन्हें स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए जीवन सौंपने की शपथ भी दिलवाई। इतिहास में उनकी पहचान मैनपुरी षड्यंत्र केस के सूत्रधार, उस दौर के सबसे बड़े सशस्त्र संगठनों शिवाजी समिति व मातृवेदी के संस्थापक-कमांडर के रूप में होती है।

कमांडर-इन-चीफ गेंदालाल दीक्षित और मातृवेदीः बागियों की अमरगाथा पुस्तक के लेखक डॉ. शाह आलम राना ने बताया कि कमांडर गेंदालाल दीक्षित को संगठन में युवाओं व बागियों को जोड़ने के बाद उन्हें राष्ट्र प्रेम की दीक्षा और हथियार चलाने की शिक्षा देने के नाते क्रांतिकारियों का गुरू कहा जाता है। महान क्रांतिकारी पं. रामप्रसाद बिस्मिल को स्वतंत्रता आन्दोलन से जोड़ने व शस्त्र शिक्षा देने का श्रेय भी इन्हीं को है। उन्होंने अलग-अलग प्रान्तों में काम कर रहे क्रांतिक्रारी संगठनों को एकीकृत कर विप्लवी महानायक रास बिहारी बोस की सन् 1915 की क्रांति योजना का खाका खींचा था।

इटावा और आगरा से की पढ़ाई

पं. गेंदालाल दीक्षित का जन्म 30 नवंबर 1890 को संयुक्त प्रांत के आगरा में बटेश्वर के पास मई गांव में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा गांव में ही हुई और आगे की पढ़ाई उन्होंने इटावा व आगरा में की। स्वतंत्रता के आन्दोलन से वे मिडिल पास करने के बाद ही जुड़ गये थे, जब 1905 में बंग-भंग के विरोध में देशव्यापी आन्दोलन शुरू हुआ था। इसी के चलते वह कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर आगरा से औरैया चले आये और वहां डीएवी स्कूल में पढ़ाने लगे।

हिन्दुस्थान समाचार / सुनील /मोहित