नसबंदी के लिए आशा कार्यकर्ता ने पुरुषों को किया प्रोत्साहित, महिलाओं की बदली सोच

 


—महिला दिवस पर विशेष, समुदाय के स्वास्थ्य का भी ख्याल रखती हैं

वाराणसी,07 मार्च (हि.स.)। समाज में जुझारू महिलाओं के कठिन संघर्षों को अक्सर उनकी मजबूरियों से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन यही संघर्ष जब उनका जुनून बन जाता है तो समाज में बदलाव तो आता ही है। ऐसी महिलाएं लोगों के लिए प्रेरणा बन जाती है। ऐसी ही शहरी क्षेत्र पांडेयपुर की आशा कार्यकर्ता रीता सिंह और हरहुआ की आशा कार्यकत्री भानुमती है। समाज के कल्याण और समुदाय को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए दोनों का जुनून उनके काम का अहम हिस्सा बन गया है।

वर्ष 2016 में आशा बनीं रीता सिंह (42 वर्ष) पहले पढ़ाती थी और शुरुआत से ही उनकी सोच कुल अलग करने की रही। रीता ने आशा के रूप में स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपनी सेवाएँ प्रदान करना शुरू किया, तब उन्होंने सबसे पहले स्वास्थ्य योजनाओं के बारे में अपनी सोच व समझ का विस्तार किया। प्रशिक्षण में बहुत सी बातें सीखीं, जिसको समुदाय में परखने की आवश्यकता थी। शुरुआत में क्षेत्र के लोग उनकी बातों को अनदेखा करते थे। लेकिन प्रतिदिन क्षेत्र भ्रमण के दौरान घर-घर जाकर लोगों के स्वास्थ्य की जानकारी लेती थीं। धीरे-धीरे लोगों को उनके काम पर विश्वास होने लगा। इसके बाद वह बच्चों और गर्भवती के टीकाकरण, गर्भावस्था के लिए प्रसव पूर्व जांच (एएनसी), प्रसव संबंधी सेवाएं, सीमित व छोटे परिवार के लिए परामर्श समेत अन्य स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ दिलाने में हमेशा तत्पर रहीं।

प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉ आकांक्षा राय और अन्य स्टाफ के साथ पति राघवेंद्र सिंह व परिवार के अन्य सदस्यों ने उनका जमकर उत्साहवर्धन् किया। अपनी पत्नी के काम को देखकर राघवेंद्र ने स्वयं की नसबंदी कराकर क्षेत्रवासियों को बेहतर संदेश दिया। रीता अपने पति का उदाहरण देते हुए उन पुरुषों को नसबंदी के लिए समझाती हैं, जिनका परिवार पूरा हो चुका है या अब वह और बच्चे नहीं चाहते हैं। आशा रीता सिंह इस साल अब तक 20 पुरुषों को प्रोत्साहित कर उनकी नसबंदी करा चुकी हैं। पुरुष नसबंदी पखवाड़े में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए उन्हें वाराणसी मण्डल और जनपद स्तर पर प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वह कहती हैं “जब तक शरीर में जान रहेगी, तब तक वह समुदाय को स्वस्थ रखने के लिए काम करती रहेंगी”।

—पुरुष नसबंदी को लेकर महिलाओं को किया जागरूक

वर्ष 2007 में आशा बनी भानुमती (53 वर्ष) बताती हैं कि महिला नसबंदी और अंतरा इंजेक्शन के लिए महिलाएं तो तैयार हो जाती हैं। लेकिन सबसे अधिक समस्या पुरुष नसबंदी को लेकर होती है, क्योंकि इसके लिए महिलाएं तैयार नहीं होती हैं। उनका कहना होता है कि पुरुष क्यों नसबंदी कराएं। उन्हें बाहर काम करना होता है उनके बदले हम ही करा लेंगे। लेकिन इसके बावजूद भी भानुमती ने हार नहीं मानी और समाज में पति-पत्नी को पुरुष और महिला नसबंदी में अंतर, लाभ आदि के बारे में समझाया। पुरुष नसबंदी महिला नसबंदी से बहुत ही आसान और कारगर है इससे पुरुष में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं आती और सिर्फ एक छोटे से कट से कुछ दिनों में ठीक हो जाता है। इसके बाद पुरुष सभी कार्य कर सकते हैं।

इसके लिए लाभार्थी को 3000 रुपये दिये जाते हैं। लेकिन महिला नसबंदी में ऑपरेशन के बाद ठीक होने में समय लगता है और महिला दो-तीन महीने तक को भारी वजन भी नहीं उठा सकती। भानुमती को परिवार कल्याण कार्यक्रम में बेहतर प्रदर्शन के लिए कई बार सम्मानित किया जा चुका है। वह अब तक करीब 50 पुरुषों को प्रोत्साहित कर उनकी नसबंदी करा चुकी हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/बृजनंदन