मौत के कारणों के विश्लेषण से अनुसंधान और नीति निर्माण को मिलेगा बल: डॉ. संजय काला
- कानपुर को मृत्यु के कारणों के चिकित्सकीय प्रमाणन (एमसीसीडी) मॉडल बनाने की पहल
कानपुर,14 सितम्बर (हि.स.)। मृत्यु के कारणों का चिकित्सकीय प्रमाणन जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 (यथा संशोधित 2023) के अन्तर्गत किया जाता है। मृतक की अंतिम परिचर्या करने वाले प्रत्येक चिकित्सक के द्वारा मृत्यु के कारण का प्रमाणन किया जाना अनिवार्य है और इसकी प्रति भी सरकारी प्रावधानों के अनुसार मृतक के परिजन को देनी है। यह शनिवार को गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कालेज कानपुर में आयोजित मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए शनिवार को जीएसवीएम मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य डॉ. संजय काला ने कहा।
उन्होंने कहा कि यह प्रमाणन फॉर्म विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा निर्धारित प्रारूप के अनुरूप ही हैं। प्रदेश के सभी सरकारी अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज जन्म-मृत्यु पंजीकरण रजिस्ट्रार के रूप में अधिसूचित हैं।
डॉ काला ने कहा कि मृत्यु के कारणों का चिकित्सकीय प्रमाणन भी मृत्यु पंजीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा है। वर्तमान में जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण का समस्त कार्य ऑनलाइन वेब पोर्टल से ही किया जा रहा है। मृत्यु पंजीकरण के समय ही मृत्यु के कारण की डेटा एंट्री भी ऑनलाइन पोर्टल पर कर दी जाती है। राष्ट्रीय स्तर पर पोर्टल से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर भारत के महारजिस्ट्रार कार्यालय द्वारा मृत्यु के कारणों की रिपोर्ट जारी की जाती है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस कार्य में कानपुर प्रदेश के सामने मॉडल के रूप में प्रस्तुत होगा।
मौत के कारणों के आंकड़ों का विश्लेषण कर अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाएगा और इसके जरिये समुदाय के स्वास्थ्य हित में नीति निर्माण भी होगा । इसी कड़ी में चिकित्सकों का क्षमता संवर्धन किया जा रहा है ताकि संस्थागत मौत के कारणों की गुणवत्तापूर्ण रिपोर्टिंग हो सके। चिकित्सकीय प्रमाणन (एमसीसीडी) के इस कार्य में जीएसवीएम कॉलेज, कानपुर एक मॉडल बन सके, इसके लिए चिकित्सकों का क्षमता संवर्धन किया जाएगा। इसकी शुरुआत मास्टर ट्रेनर और मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों के प्रशिक्षण के साथ गुरुवार को जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज परिसर से कर दी गयी।
इस मौके पर डॉ संतोष बर्मन ने इस मौके पर कहा कि मृत्यु के कारण के आंकड़ों का एकत्रीकरण नीति निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। मृत्यु के कारणों का पता लगाना और प्रमाणीकरण हमारे व्यावसायिक दक्षता को भी बढ़ाता है। इससे अनुसंधान और नवाचार को भी बढ़ावा मिलता है। यह प्रशिक्षण इस दिशा में दक्षता बढ़ाने के लिए काफी उपयोगी सिद्ध होगा।
इस कड़ी में आगे संयुक्त निदेशक जनगणना कार्य निदेशालय ए.के. सिंह सोमवंशी ने कहा है कि वर्ष 2018 में जहां प्रदेश में 38% मृत्यु पंजीकरण होता था, वहीं पिछले 3 वर्षों में यूपी में 72% तक मृत्यु पंजीकरण में सुधार हुआ है। राज्य साल दर साल अपने पंजीकरण में सुधार कर रहा है। पिछले 3 सालों में यूपी को मॉडल राज्य के रूप में विकसित किया गया है और अन्य राज्य भी हमारे मॉडल का अनुसरण कर रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग और टाटा कैंसर इंस्टीट्यूट ने भारत सरकार के गृह मंत्रालय के जनगणना कार्य निदेशालय के सहयोग से इस प्रशिक्षण की शुरुआत की। शुभारंभ जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ संजय काला, प्रोफेसर संतोष बर्मन एवं ए के सिंह सोमवंशी, संयुक्त निदेशक ने किया।
टाटा कैंसर अस्पताल के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ बुरहान और डॉ शरवरी के साथ साथ सहायक निदेशक डॉ गौरव पाण्डेय ने चिकित्सकों को प्रशिक्षित किया। प्रशिक्षण में मेडिकल कॉलेज के सीनियर और जूनियर चिकित्सकों के अलावा फैकल्टी मेंबर भी मास्टर ट्रेनर के तौर पर शामिल हुए।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामबहादुर पाल