उप्र में गेमचेंजर साबित हुए अखिलेश यादव, भाजपा की चाणाक्य नीति को दी मात

 


लखनऊ, 04 जून (हि.स.)। लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे बेहद चौकाने वाले सामने आए हैं। इन नतीजों के बीच उत्तर प्रदेश की 80 सीटों की बात करें तो यहां पर भारतीय जनता पार्टी की चाणाक्य नीति पर विपक्षी गठबंधन के नेता सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भारी पड़ते दिखाई दिए। अखिलेश यादव यूपी की राजनीति में गेमचेंजर के रूप में उभर कर सामने आए हैं।

दरअसल समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव से पूर्व अपनी रणनीति में बदलाव किया। इसके तहत उन्होंने सबसे बड़ा निर्णय पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के साथ चुनाव मैदान में उतरने का लिया। हालांकि इस दौरान उन्हें कई राजनीतिक रोड़े और झटके विश्वास पात्र पार्टी नेताओं और सहयोगी दलों द्वारा दिए गए। इसके बावजूद अखिलेश यादव ने बिना किसी समझौते के आगे बढ़ने का निर्णय लिया। चुनाव के बीच में अपनों द्वारा लगातार अखिलेश को गहरा झटका दिया जाता रहा है। बिना किसी शिकवा शिकायत के सपा अध्यक्ष आगे बढ़ते रहे।

इस चुनाव में उनके चाचा शिवपाल यादव के साथ ने अखिलेश को बल दिया और वो भाजपा के डबल इंजन के सामने डट कर खड़े रहे। कांग्रेस के साथ 2024 लोकसभा चुनाव लड़ने के अखिलेश निर्णय को सियासत में पहले तो राजनीतिक विश्लेषक गलत ठहरा रहे थे लेकिन आज के परिणाम सामने आने के बाद गेमचेंजर के रूप में देखा जा रहा है। सपा के साथ चुनाव लड़ने से कांग्रेस को भी उप्र में संजीवनी मिल गई है। कांग्रेस को बड़ा फायदा पहुंचा है।

इस लोकसभा चुनाव में इन दो शहजादों की जोड़ी ने उप्र में ऐसा कमाल किया कि कांग्रेस की झोली में अमेठी और रायबरेली के अपने गढ़ समेत छह सीटों को जीतने में सफता मिली है। वहीं सपा ने अपने गढ़ इत्र नगरी कन्नौज, आजमगढ़, मैनपुरी सहित करीब 37 सीटों पर बढ़त बनाई है। उप्र में भाजपा खेमे में विपक्षी गठबंधन ने 80 सीटों पर आधे से अधिक पर सेंधमारी की है। एनडीए गठबंधन में रालोद के खाते में दो और अपना दल (एस) ने एक सीट पर जीत दर्ज की है। एक सीट पर भीम आर्मी ने जीत दर्ज कर चौकाने का काम किया है। इस तरह से भाजपा के खाते में 33 सीट मिलती दिख रही है। चुनाव आयोग द्वारा कई सीटों के नतीजों को घोषित न किए जाने से एक-दो सीटों पर आंकड़ों में बदलाव होने की संभवाना है।

सपा को मुस्लिमों ने किया संगठित मतदान

लोकसभा चुनाव 2024 में मुस्लिमों ने केन्द्र की तमाम योजनाओं का लाभ लेने, हिन्दुत्व और ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दों के बावजूद भाजपा को वोट नहीं किया। उन्होंने एकजुट होकर सपा के पक्ष में मतदान किया है। माना जा रहा है कि सपा को मिली बढ़त में यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है। इसका भाजपा को नुकसान हुआ है।

हिन्दुस्थान समाचार/मोहित/दिलीप