भगवान आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की सुरक्षा शास्त्र एवं शस्त्रों से किया : वासुदेवानंद सरस्वती
प्रयागराज, 21 जनवरी (हि.स.)। भगवान आदि शंकराचार्य ने सनातन वैदिक ग्रंथों की शास्त्रों एवं शस्त्रों द्वारा संघर्ष करके सनातन धर्म की सुरक्षा किया। सनातन वैदिक संस्कृति नष्ट प्राय हो गई थी। धर्म ईश्वर एवं परलोक मिट चुका था। विलासिता एवं बुद्धिवाद के पाखंड एवं दम्म की आंधी में धार्मिकता की ज्योति बुझने के कगार पर थी। जिसे भगवान आदि शंकराचार्य ने नई शक्ति व दिशा प्रदान किया। नहीं तो हमेशा के लिए सब कुछ मिट जाता।
यह बातें जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज ने त्रिवेणी मार्ग स्थित माघ मेला शिविर में सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने बताया कि सनातन वैदिक धर्म की इसी संकटकाल में भगवान आदि शंकराचार्य का प्रादुभार्व कलिगत 2631 वैशाख शुक्ल पक्ष पंचमी को दक्षिण भारत के केरल प्रांत के कालटी ग्राम में आचार्य शिव गुरु एवं आर्यवा के यहां आचार्य शंकर के रूप में अवतार लिया। भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में वैदिक धर्म एवं उपनिषदों की दिव्य वाणी का प्रचार प्रसार हुआ। 11 वर्ष की अवस्था में समस्त विद्याओं को प्राप्त कर सन्यास ग्रहण करके काशी आदि स्थानों पर धार्मिक जागृति करते हुए कलीगत 2642 मैं बद्रिकाश्रम पहुंचे। वहां अनीश्वर वादियों ने श्री बद्रीनाथ के श्री विग्रह को नारद शीला के नीचे अलकनंदा के ब्रह्मकुंड में डाल दिया था। विग्रह निकालकर उनकी पुणे प्राण प्रतिष्ठा एवं पूजा आदि व्यवस्था कराई जिससे भगवान बद्री विशाल की सेवा पूजा पुणे चलने लगी।
शंकराचार्य ने बताया कि साधना से जहां शंकराचार्य भगवान को ज्ञान की ज्योति प्राप्त हुई थी, कार्तिक शुक्ल पंचमी कलिगत संवत 2646 को ज्योतिषपीठ ज्योतिमठ की स्थापना किया। उसी स्थान पर अपने कृपा पात्र शिष्य त्रोटकाचार्य को अपना ही शंकराचार्य नाम देते हुए शंकराचार्य संज्ञा से विभूषित किया। आचार्य त्रोटकाचार्य को ही संपूर्ण उत्तर भारत में सनातन वैदिक धर्म जागृति का दायित्व सौंप दिया। इसके पश्चात संपूर्ण भारत में धर्म-जागृति निरंतर बनाए रखने के लिए भारत के पश्चिमी किनारे द्वारिका पुरी में कार्तिक शुक्ल पंचमी कलिगत संवत 2648 को शारदा मठ फाल्गुन शुक्ला नवमी कलिगत संवत 2648 को दक्षिण प्रांत में श्रृंगेरी मठ तथा वैशाख शुक्ल नवमी कलिगत संवत 2655 को जगन्नाथपुरी में गोवर्धन मठ की स्थापना किया।
उक्त जानकारी ज्योतिष्पीठ के प्रवक्ता ओंकार नाथ त्रिपाठी ने देते हुए बताया कि शारदा मठ में हस्त मलकाचार्य श्रृंगेरी मठ में सुरेशवराचार्य एवं गोवर्धन मठ में पद्मपादाचार्य को अपना शंकराचार्य का नाम पद प्रदान किया। देश के चारों दिशाओ में स्थापित चारों पीठों की यही शंकराचार्य परम्परा अभी भी मान्य व संचालित है। चारों पीठों के विराजमान अलग-अलग शंकराचार्य अपनी-अपनी पीठों पर अपना नाम पद प्रदान कर उन्हें उस पीठ का अगला शंकराचार्य घोषित करते हैं। यही गुरु परम्परा है।
हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त