प्रकृति परिवर्तन और स्नान दान का पर्व है मकर संक्रांति : शंकराचार्य नरेंद्रानंद
-काशी सुमेरु पीठाधीश्वर पहुंचे माघ मेला क्षेत्र, बसंत पंचमी तक करेंगे प्रवास
प्रयागराज, 14 जनवरी (हि.स.)। काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने शनिवार को यहां कहा कि मकर संक्रांति प्रकृति परिवर्तन और स्नान दान का महत्वपूर्ण पर्व है। यह त्योहार विभिन्न नाम और रुप से देश के करीब हर क्षेत्र में उल्लास के साथ मनाया जाता है।
माघ मेला स्थित अपने शिविर में हिन्दुस्थान समाचार से विशेष वार्ता में जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि भारतीय पर्वों का प्रकृति से अटूट संबंध रहा है, इसीलिए हमारे सभी त्योहार नक्षत्रों, राशियों के अलावा ऋतु परिवर्तन, लोक संस्कृति और परंपराओं से जुड़े हैं। मकर संक्रांति भी इसी सनातन परंपरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है।
शंकराचार्य ने कहा कि लोकजीवन को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले सूर्य देव हैं और मकर संक्रांति पर ही सूर्य उत्तरगामी होकर धरती पर व्याप्त अंधकार और शीत का दमन करते हैं। ऐसे में मकर संक्रांति स्ूर्य देव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का भी का पर्व है।
उन्होंने बताया कि संक्रांति का अर्थ होता है गमन और धनु राशि से मकर राशि में सूर्य का जाना ही मकर संक्रांति है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य व दान देने की परम्परा है। शंकराचार्य ने कहा कि हमारे पौराणिक ग्रंथों में इसकी विस्तार से चर्चा है। मान्यता है कि जब सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं, तब शुभ फल प्रदान करते हैं। इसीलिए यह अवधि आते ही सभी शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। महाभारत में भीष्म के देहत्याग के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करना प्रसिद्ध है। आज भी हमारे गांवों में बड़े-बूढ़े लोगों की आकांक्षा रहती है कि उनका देहत्याग उत्तरायण में ही हो।
शंकराचार्य ने कहा कि श्री राम चरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास भी लिखते हैं, ‘‘माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई। देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहि सकल त्रिबेनी।।’’ यानि माघ महीने में जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब देवता, दैत्य, किन्नर और नर सभी तीर्थराज प्रयाग आकर गंगा, यमुना और अंतःसलिला सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में पूण्य की डुबकी लगाते हैं। यह शुभ मुहूर्त मकर संक्रांति का ही है, जो इस वर्ष 15 जनवरी को पूण्य काल में आ रहा है। उन्होंने कहा कि इस समय तीर्थराज प्रयाग में माघ मेला चल रहा है, लाखों संत, महात्मा और गृहस्थ यहां संगम की रेती पर कल्पवास कर रहे हैं। मकर संक्रांति आज रात में लग जाएगी और कल दिन भर पूण्य काल रहेगा। ऐसे सभी श्रद्धालु पवित्र संगम में स्नान कर भगवान भाष्कर को अर्घ्य देने के बाद दान की सनातन परंपरा का निवर्हन करेंगे।
काशी सुमेरु पीठाधीश्वर ने आज ही मेला क्षेत्र में प्रवेश किया है। मेले में त्रिवेणी रोड पर उनका शिविर स्थापित है। वह यहां बसंत पंचमी तक प्रवास करेंगे। इस दौरान उनके शिविर में विभिन्न धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन सम्पन्न होंगे।
हिन्दुस्थान समाचार/ पीएन द्विवेदी