हिंदी साहित्य भारती की स्थापना भारतीय संस्कृति की पुनरप्रतिष्ठा का संकल्प : डॉ. रविन्द्र शुक्ल
केन्द्रीय कार्यसमिति की दो दिवसीय बैठक में जुटेंगे देश विदेश के हिन्दी साहित्य के विद्वान
झांसी,25 अगस्त(हि. स.)। हिंदी साहित्य भारती न्यास की स्थापना भारतीय संस्कृति की पुनरप्रतिष्ठा का संकल्प है। यह कहना है न्यास के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ .रवीन्द्र शुक्ल का। वह आज एक स्थानीय होटल में पत्रकारों को 27 एवं 28 अगस्त 2022 को झांसी में आयोजित हो रही केन्द्रीय कार्यसमिति की दो दिवसीय बैठक की जानकारी दे रहे थे।
उन्होंने कहा कि मुझे यह कहने में गुरेज नहीं कि जो लोग इस में जुड़े हैं उनके सामने विद्वत्ता के मामले में एक जुगनू महज हूं। इसकी पहली प्रत्यक्ष बैठक 27-28 नवंबर 2021 को हुई थी। तब सबने एक दूसरे को पहचान लिया था। यह दूसरी अंतरराष्ट्रीय बैठक है। भारतवर्ष के प्रत्येक प्रदेश और करीब 35 देशों के लोग इसमें शामिल होंगे। हमने केवल 200 लोगों को बुलाया था। उसमें से 175 लोगों की उपस्थिति हो रही है।
उन्होंने बताया कि इस 2 दिवसीय बैठक में कुल 10 सत्र आयोजित होंगे। इसमें मंत्री,पूर्व राज्यपाल, कई कुलपति व आईएएस अधिकारी समेत तमाम देशों के पदाधिकारी उपस्थित हो रहे हैं।
उद्घाटन सत्र के पश्चात् सभी अतिथि राम लक्ष्मण की परम्परा के वाहक राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और सियाशरण गुप्त की प्रतिमा पर पुष्पांजली एवं साहित्य सदन परिवार द्वारा अभिनंदन करेंगे । इसके पश्चात् संग्रहालय , किला एवं रानीमहल का भ्रमण सुनिश्चित है । बैठक के बाकी सत्र होटल द मारवलस में होंगे जहाँ पर समीक्षा एवं योजना बैठक सम्पन्न होंगी । 28 अगस्त को होटल द मारवलस में सायंकाल 04 बजे समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में अजय भट्ट रक्षा एवं पर्यटन मंत्री भारत सरकार एवं मुख्य वक्ता के रूप में जयवीर सिंह पर्यटन मंत्री उप्र सरकार उपस्थित रहेंगे।
उन्होंने हिंदी साहित्य भारती न्यास की स्थापना की कहानी बताते हुए कहा कि स्वतंत्रता के पश्चात संस्कृति व साहित्य की आत्मनिर्भरता के लिए जो प्रयास होने चाहिए थे वह नहीं हुए। स्वतंत्रता के लिए जो जवान अपने सीने पर गोलियां खाते थे, फांसी के फंदे को अपने गले में डाल लेते थे। उसी वंदे मातरम कहने के लिए लोगों को परहेज हो गया है। जिस वंदे मातरम से लोगों के अंदर जोश पैदा होता था, वही वंदेमातरम आज सांप्रदायिक हो गया। इसका एक ही कारण समझ में आता है कि बुद्धिजीवियों ने अपने दायित्व का निर्वहन ठीक से नहीं किया। सभी बुद्धिजीवी अगर एक मंच पर आकर प्रयास करें तो बेहतर हो सकेगा ऐसा दिमाग में आया। ऐसे सभी बुद्धिजीवियों से मैंने संपर्क किया।
उन्होंने भी हमारी बात पर सहमति जताई तब इस मंच का नाम चुनने के लिए 6 माह तक चिंतन किया गया। तीन शब्द निकल कर आए। हिंदी साहित्य भारती दुनिया के अंदर एकमात्र भारतीय संस्कृति ही है। जिसमें पूजा पद्धति के दौरान कोई बाध्यता नहीं। किसी भी को मानें इतनी छूट दुनिया के किसी भी देश की संस्कृति में नहीं है। इस मंगलकारी मनोवृत्ति को हमारे संस्कृति में परिभाषित किया है। सर्वे भवंतु सुखिनः, विश्व बंधुत्व की भावना व सियाराम मय सब जग जानी जैसे इसके उदाहरण हैं। इस चिंतन को दुनिया में पहुंचाना पड़ेगा तभी दुनिया के लोग एकजुट हो सकेंगे और यह सब साहित्य के माध्यम से ही संभव है। इसके लिए केवल हिंदी भाषा को ही चुना जा सकता है। यह भाषा दुनिया में नंबर एक पर है। सबसे ज्यादा समझी जाने वाली भाषा का नाम हिंदी है।
दीनदयाल उपाध्याय उपाध्याय सभागार में उद्घाटन सत्र है। सबसे बड़ी बात है कि स्वयं ही 2 आईएएस अधिकारी इससे पदाधिकारी बने हैं। इस अवसर पर निशांत शुक्ल व नीरज सिंह उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/महेश