अति प्राचीन है बड़ी काली जी का मंदिर
लखनपुरी के चौक में स्थित है मंदिर, यहां दर्शन से पूरी होती है भक्त की हर मनौती
लखनऊ 28 सितम्बर ( हि.स़.)। लखनपुरी के चौक स्थित बड़ी काली जी मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जहां सीढ़िया चढ़कर जब दर्शन के लिए ऊपर जाते हैं, तब जो सामने की मुख्यमूर्ति है, वह मूर्ति भगवान लक्ष्मी-नारायण की हैं, जिसको लोग बड़ी काली जी मानकर उसकी पूजा करते हैं, लेकिन उसी मुख्यमूर्ति के दक्षिण मुख होकर जब देखेंगे तो काली माता के दर्शन होंगे। शहर में इस मंदिर की बडी मान्यता हैं, नवरात्रि में यहां बड़ी संख्या मे भक्त दर्शन के लिए आते है। यहां दर्शन से भक्त की हर मनौती पूरी हो जाती है।
मंदिर के पास ही रहने वाले 67वर्षीय कमला शंकर अवस्थी ने बताया कि जैसा अपने पिता और दादा से मंदिर के बारे में सुना है कि यह मंदिर अति प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर का इतिहास लेखक कॉणे की पुस्तक धर्मशास्त्र का इतिहास और काली स्तूप में मिलता है। इसके अलावा शहर के प्रसिद्ध लेखक और इसी क्षेत्र की निवासी अमृत लाल नागर ने अपनी पुस्तक अवध का इतिहास में इस मंदिर के बारे लिखा है।
पं. अवस्थी बताते हैं कि पहले यहीं पास के चारोधाम मंदिर और इस मंदिर से होकर आदि गंगा गोमती बहती थीं। कालांतर नदी खिसककर आगे चली गई। उन्होंने बताया कि वास्तव में यह मंदिर नहीं मठ है। यह बोध गया के मठ की एक शाखा है। मंदिर में वहां से साधु आज भी आकर प्रवास करते हैं। पंडित अवस्थी ने बताया आदि शंकराचार्य उत्तर भारत का भ्रमण करते हुए एक बार यहां आए थे। तब वह यहां आकर रूके थे। मंदिर में आदि शंकराचार्य की मूर्ति भी स्थापित है। उन्होंने बताया कि इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि 24 घंटे में एक बार कोलकाता के कालीबाडी की माता काली जी की छाया आती है।
मंदिर के पास ही कुंआ है, जिसका जल अमृत तुल्य है। इसके इतिहास के बारें इस क्षेत्र में प्रचलित हैं कि जब मुगलों ने मंदिर पर आक्रमण किया तो यहां के पुजारी मूर्ति को खंडित होने से बचाने के लिए कुंए में डाल दिया। उसके बाद वो मूर्ति वहां नहीं मिली और वहां लक्ष्मी -नारायण की मूर्ति ही मिली थी। उसी को ही मंदिर में स्थापित कर दिया गया।
मंदिर पुजारी के सपने में आया कि वह मूर्ति कुएं से निकाली जाएं जब लोगों द्वारा मूर्ति को निकाला गया उसका स्वरूप ही अलग मिला.कुुएं में डाली थी काली मां की मूर्ति और निकली विष्णु और लक्ष्मी जी की मूर्ति। यह काफी आश्चर्य की बात है लेकिन मान्यता यही है कि जिस कुएं में मां काली की मूर्ति को छिपाया गया था। जब उस कुएं से मूर्ति निकाली गई तो काली माता की मूर्ति की जगह विष्णु और लक्ष्मी जी मूर्ति निकली जिसके बाद मंदिर में उसी मूर्ति की पूजा अर्चना होने लगी। मां काली के रूप में विष्णु लक्ष्मी जी की पूजा होती है। मान्यता है जो भक्तिभाव से माता के 40 दिन लगातार दर्शन करता है उसकी मनोकॉमना पूर्ण होती हैं
हिन्दुस्थान समाचार / शैलेंद्र मिश्रा