पंडित कमलापति त्रिपाठी का सम्पूर्ण जीवन भारतीय संस्कृति एवं संस्कार को परिभाषित करता है:प्रो.ए. डी. एन. वाजपेयी

 


-पंडित जी की 119वीं जयंती मनाई गई

वाराणसी, 08 सितम्बर (हि.स.)। अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय, बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के कुलपति प्रो. ए.डी.एन. वाजपेयी ने कहा कि पंडित कमलापति त्रिपाठी की राजनीति उनके जीवन का सम्पूर्ण व्यक्तित्व का परिचय नहीं हो सकता। राजनीति प्रासंगिक है यदि वे राजनेता न होते, वे संविधान सभा के सदस्य न होते मुख्यमंत्री भी न होते तो भी उनका सम्मान इसी तरह होता क्योंकि उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था। उनका जीवन भारतीय संस्कृति एवं संस्कार को परिभाषित करता है।

प्रो. वाजपेयी रविवार को संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के योग साधना केन्द्र में आयोजित पंडित कमलापति त्रिपाठी के 119 वीं जयंती महोत्सव को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने विश्वविद्यालय के स्थापना में पंडित कमलापति त्रिपाठी की भूमिका का उल्लेख कर कहा कि पंडित जी इस संस्था के संस्थापकों में से एक थे। यहां की संस्कृति एवं संस्कार से हम वैश्विक पटल पर स्थापित हैं,ऐसे में इस संस्था का कार्य और महत्वपूर्ण हो जाता है। उन्होंने कहा कि इस परिसर में आने पर स्वंय ऊर्जा और गौरव की अनुभूति करते हैं। यहां की भूमि में ऋषि तुल्य आचार्यों के तप और ज्ञान की सुगंध से एक देव स्थल सा अनुभव होता है। संस्कृत भाषा वैज्ञानिक भाषा है दुनिया में प्राचीनतम ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं।

महोत्सव की अध्यक्षता करते हुए संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व के धनी पं. कमलापति त्रिपाठी से जुड़ी स्मृतियों का सिलसिला अनन्त है। सन् 1905 में इसी बनारस की पवित्र धरती पर ऋषि पंचमी के दिन जन्मे पंडित जी की जयन्ती संवत और ईसवी सन् दोनों की तिथियों पर मनाने की प्रशस्त परम्परा रही है। जो व्यक्ति ऋषि पंचमी के दिन पैदा होता है वह ऋषि ही होता है। पं. कमलापति त्रिपाठी काशी के नहीं देश के भी गौरव थे। संविधान सभा में उन्होंने अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हुए अपनी मां यानी हिंदी का साथ दिया। हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित कराने के साथ ही उन्होंने भारतीय गणतंत्र के नामकरण जैसे मामलों में उल्लेखनीय संसदीय भूमिका निभाई थी। भारतीय गणतंत्र इंडिया दैट इज भारत उन्हीं की देन है। पंडित जी की जयंती पर परिसर में पौधरोपण भी किया गया। इसके पहले पंडित जी की प्रतिमा पर चंदन का टीका लगाकर माल्यार्पण किया गया। महोत्सव में तीन ग्रंथों के लोकार्पण के बाद उनका परिचय भी दिया गया। महोत्सव में प्रो. शैलेष कुमार मिश्र, प्रो. राघवेंद्र दुबे का स्वागत और अभिनंदन किया गया। महोत्सव में डॉ विजय शंकर पाण्डेय ने भी विचार रखा।

कार्यक्रम में प्रो हरिशंकर पांडेय, निदेशक प्रकाशन संस्थान डॉ पद्माकर मिश्र, कुलसचिव राकेश कुमार, प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी, प्रो. रामपूजन, प्रो, राजनाथ, प्रो. विधू द्विवेदी, प्रो. हेतराम कछवाह, प्रो. ब्रजभूषण ओझा आदि के साथ छात्रों की भी उपस्थिति रही।

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी