वाराणसी के दो नौनिहालों ने बनाया स्पेशल कूड़ेदान, यूज्ड मास्क को जलाकर कर देगा राख

अक्सर सड़कों, वर्किंग प्लेस, अस्पतालों और घरों के आस-पास इस्तेमाल किया मास्क गिरा दिखाई देता है। ये मास्क कोरोना फैलने में सहायक हो सकता है। ऐसे में काशी के ट्रस्टीय सक्षम स्कूल के 12 साल के आयुष और रेशमा ने एक ऐसा इलेक्ट्रिक डस्टबिन बनाया है जिसमें आप यूज्ड मास्क को डिस्ट्रॉय कर सकते हैं। दोनों बच्चों ने 6 दिन में 3500 रुपए की लागत से इस डस्टबिन को बनाया है। दोनों ही बच्चों की मां स्कूल में दाई का काम करती हैं। 
 

वाराणसी। अक्सर सड़कों, वर्किंग प्लेस, अस्पतालों और घरों के आस-पास इस्तेमाल किया मास्क गिरा दिखाई देता है। ये मास्क कोरोना फैलने में सहायक हो सकता है। ऐसे में काशी के ट्रस्टीय सक्षम स्कूल के 12 साल के आयुष और रेशमा ने एक ऐसा इलेक्ट्रिक डस्टबिन बनाया है जिसमें आप यूज्ड मास्क को डिस्ट्रॉय कर सकते हैं। दोनों बच्चों ने 6 दिन में 3500 रुपए की लागत से इस डस्टबिन को बनाया है। दोनों ही बच्चों की मां स्कूल में दाई का काम करतीं हैं। 

अब्दुल कलाम स्टार्टअप लैब में हुआ अविष्कार 
सक्षम स्कूल की संस्थापक सुबिना चोपड़ा ने बताया हमारे स्कूल में एपीजे अब्दुल कलाम स्टार्टअप लैब है, जहां बच्चे विज्ञान के क्षेत्र में देश को और विकाशील बनाने के लिए नए-नए अविष्कार करते हैं। इन्हें काशी के युवा वैज्ञानिक श्याम चौरसिया का कुशल दिशा-निर्देशन हर समय मिलता है। ऐसे में ही कोरोना काल में श्याम चौरसिया के निर्देशन में स्कूल के आयुष और रेशमा ने मिलकर स्पेशल 'कोविड-19 मास्क किलिंग डस्टबिन' बनाया है। 

यूज़्ड मास्क को करेगा राख 
इस डस्टबिन की खासियत बताते हुए सुबिना चोपड़ा ने बताया कि मास्क यूज करने के बाद मन में सवाल आता है कि आखिर इन्हें हम कहां फेंके। इस प्रॉब्लम को देखते हुए आयुष और रेशमा ने इस मेक इन इंडिया 'कोविड-19 मास्क किलिंग डस्टबिन'  को तैयार किया हैं। ताकि लोग अपने यूज्ड मास्क को इधर-उधर फेंकने के बजाए इलेक्ट्रिक डस्टबिन में डाल दें। 

कोरोना का खतरा अभी नहीं हुआ है खत्म 
सुबिना ने बताया कि इस डस्टबिन में मास्क को डालते ही मास्क पूरी तरह जल कर राख हो जाता है, जिससे वायरस फैलने का खतरा नहीं रहेगा। उन्होंने कहा कि अभी कोरोना का खतरा पूरी तरह खत्म भी नहीं हुआ है कि तीसरी लहर की आशंका ने लोगों को डरा दिया है। ऐसे में हम सब को मिलकर सावधानी बरतनी चाहिए। उन्होंने बताया कि दोनों बच्चे देश के भविष्य हैं। हमारे स्कूल में ऐसे बच्चे जो गरीब हैं या जिनके माता-पिता नहीं हैं, उनकी पूरी मदद करते हैं। उन्हें कॉपी-किताब मुफ्त में उपलब्ध कराते हैं।

सेंसर से खुलता है ढक्कन
आयुष ने बताया कि डस्टबिन मेटल के चादर से बना है। इसकी ऊंचाई करीब 3 फुट है। डस्टबिन के ऊपरी हिस्से में लगे ढक्कन में एक छोटा सेंसर लगा है जो किसी व्यक्ति के डस्टबिन के नजदीक आने पर ऑटोमेटिक ओपन हो जाता है। डस्टबिन के ढक्कन के खुलते ही आप अपने यूज्ड मास्क को डस्टबिन के अंदर डाल दें। इसके बाद अंदर लगा सेंसर 20 सेकेंड के लिए डस्टबिन में लगे हीटर को ऑन कर देता है, जिससे मास्क अंदर जल कर नष्ट हो जाता हैं।  

श्याम चौरसिया के नेतृत्व में बच्चों ने बनाया डस्टबिन 
वैज्ञानिक श्याम चौरसिया ने बताया कि डस्टबीन में 200 मास्क के इकट्ठे होने पर डस्टबीन का हीटर ऑन हो जाता है। इसके अलावा इसमें एक मैनुअल बटन भी है जिससे आप तुरंत मास्क को डिस्ट्रॉय कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रिक डस्टबिन को बनाने में अल्ट्रासोनिक सेंसर, गियर मोटर, मोशन सेंसर, हीटर प्लेट 1000 वाट, स्पीकर, स्विच का इस्तेमाल किया गया है।