ठंड में साइबेरियन पक्षियों के आगमन से खिल उठे मांझियों के चेहरे, रोज़गार में करते हैं मदद
रिपोर्ट : सोनू कुमार
वाराणसी। कहते हैं रोटी का इंतज़ाम ऊपर वाला करता है। शायद यह बात काशी के माझियों के लिए सही है क्योंकि ठण्ड में जब गंगा के पानी से भांप उठती है और सर्द हवाएं शरीर को कंपा देती हैं ऐसे में भी काशीवासी और सैलानी गंगा में नौका विहार करने के लिए बदस्तूर आते हैं। इसका कारण है सात समुन्दर पार से आने वाले साइबेरियन पक्षी, जिनकी पानी में अठखेलियां और एक आवाज़ में हाथों में रखा दाना खाने की कौतूहल को देखने और एहसास करने सैलानी घंटों नौका विहार करते हैं।
नाविकों की मानें तो जाड़े के मौसम में आमदनी बढ़ जाती हैं। वहीं घाट किनारे बेसन का सेव बेचने वालों की भी चांदी हो जाती है।
मांझियों की माने तो विदेशी पक्षियों के आने से घाटों की रौनक के साथ ही पर्यटकों का तांता लगने लगता है। वाराणसी में सुबह बनारस और गंगा में नौका विहार के साथ ही पर्यटक गंगा की गोद में इन पक्षियों को सेव खिलते हैं, जिसे ये पक्षी बड़े चाव से खाकर गंगा की गोद में कलरव करते हुए पर्यटकों को लुभाते हैं। मांझियों ने बताया कि पिछले वर्ष कोरोना की वजह से घाटों पर चहल-पहल नहीं थी पर इस वर्ष घाटों पर रौनक दिखाई दे रही है।
वहीं, दाना बेचने वाले नितिन ने बताया कि डेढ़ सौ रुपये का डेढ़ किलो एकबार में बेसन का सेव लाते हैं और 10 रुपये का पैकेट तैयार कर उसे घाटों पर आने वाले सैलानियों को बेचते हैं। इससे हमें आमदनी होती है। सैलानी ये सेव खरीदकर साइबेरियन बर्ड्स को खिलाते हैं। दिन भर में 100 से अधिक पैकेट्स सेव के बिक जाते हैं।
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