महाश्वेता देवी के उपन्यास को पर्दे पर जीवंत करने काशी आये थे दिलीप कुमार, फिल्म को मिले थे कई पुरस्कार
वाराणसी। बॉलीवुड के महानायकों में से एक और ट्रेजडी किंग के नाम से मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार का बुधवार सुबह मुम्बई में निधन हो गया है। इस मशहूर कलाकार की कुछ यादें बनारस से भी जुड़ी हुई हैं। दिलीप कुमार साहब ने ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका महाश्वेता देवी के बांग्ला उपन्यास 'लाली असजेर आइना' पर आधारित हिन्दी फिल्म संघर्ष में मुख्य भूमिका निभायी थी। इस फिल्म को डायरेक्ट किया था निर्देशक एच एस रावली ने।
फिल्म को मिले थे कई श्रेणियों में पुरस्कार
फिल्म 'संघर्ष' जोकि सन 1968 में बनी, मगर रिलीज होने के तुरंत बाद ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कोई विशेष कमाल नहीं कर सकी थी, हालांकि कुछ दिनों बाद लोगों ने फिल्म को काफी सराहा था। इस फिल्म के लिये दिलीप कुमार का नाम फिल्म फेयर अवार्ड के लिये नामित किया गया था। फिल्म को 32वें एनुअल बीएफजीए अवॉर्ड में उस साल की चौथी सबसे बेहतरीन फिल्म का अवार्ड मिला था, साथ ही दिलीप कुमार को बेस्ट एक्टर, वैजयंतीमाला को बेस्ट एक्ट्रेस, जयंत को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर और गुलजार तथा अबरार अल्वी को बेस्ट डायलॉग के लिये भी अवार्ड मिला था।
बनारस आये थे दिलीप कुमार
दिलीप कुमार इस फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में 1966-67 में बनारस आये थे। पुराने लोगों के अनुसार ये फिल्म बनारस के 'निशात' टॉकिज में लगी थी, जो तब गोदौलिया चौराहे के पास (वर्तामान में मल्टी लेवल पार्किंग के बगल में) स्थित था।
फिल्म की कहानी...
अभिनेता जयंत ने भवानी प्रसाद नाम के बनारस के एक बहुत बड़े ठग का किरदार निभाया है, जो एक पुजारी का वेश बनाकर रहता है। उसका पुत्र शंकर (इफ्तिकार) उसके रास्ते पर चलने से मना कर देता है इसलिए वो अपने पोते कुंदन (दिलीप कुमार) को अपनी विरासत देना चाहता है। जब उसका बेटा शंकर अपने बेटे कुंदन को लेने आता है तो गुस्से में आकर भवानी प्रसाद अपने बेटे शंकर का कत्ल करवा देता है। उसका इल्जाम अपने पुश्तैनी दुश्मन उसके चचेरे भाई नौबत लाल के माथे मड़ देता है। जब नौबत लाल गंगा में नहाने जाता है तब वह उसे भी मरवा देता है। जिससे पारिवारिक दुश्मनी और भड़क जाती है। इधर कुंदन (दिलीप कुमार) एक संवेदनशील व्यक्ति के रूप में बड़ा होता है जो अपने दादा की विरासत को आगे नहीं बढ़ाना चाहता है। वहीं नौबत लाल के बेटे गणेशीप्रसाद (बलराज साहनी) और द्वारिका (संजीव कुमार) अपने पिता का बदला लेना चाहते है और भवानी प्रसाद के वंश को खत्म करना चाहते है। इन सभी के बीच एक और पात्र है मुन्नी (वैजयन्ती माला) जो कुंदन की बचपन की दोस्त है, दुर्भाग्यवश कोठे वालों के हाथों पड़ जाती है।
दालमंडी का ताज होटल और दिलीप कुमार
फिल्म संघर्ष की शूटिंग वाराणसी में सन 1966-76 में हुई थी। इस दौरान दिलीप कुमार का भी बनारस आना जाना हुआ। इस फिल्म की शूटिंग वाराणसी के कई इलाको में हुई थी। शूटिंग के दौरान यूनिट के लिए खाने की व्यवस्था दिलीप कुमार के सुपर फैन दालमंडी के मोहम्मद ताज को मिली। कहते हैं कि ताज मिया का खाना खाकर दिलीप कुमार इतने खुश हुए थे कि तीनों समय का खाना उन्होंने ताज मिया को भेजने का आदेश दे दिया था। सिर्फ दिलीप कुमार ही नहीं बल्कि पूरी फिल्म यूनिट के लिए शूटिंग का खाना ताज मिया ही बनवाते थे। कहते हैं कि इसी फिल्म के बाद दालमंडी का मशहूर “ताज होटल” भी नॉनवेज भोजन के मामले में बेहद मशहूर हो गया। दिलीप कुमार शूटिंग के दौरान एक-दो बार खुद भी ताज होटल आये थे। वहीं बाद में दिलीप साहब से मुलकात करने कई बार ताज मिया मुम्बई भी गए और तब दिलीप कुमार ने बड़े सम्मान से उनकी खातिरदारी भी की थी।
दालमंडी के इस होटल को दिलीप साहब की याद में आज बंद रखा गया है। दिलीप कुमार के लिये कुरआन ख्वानी और उनके मगफिरत की दुआ भी की गई।