कोरोना काल में बनारस के अनवर पेश कर रहे हैं मिसाल, लोगों को मुफ्त ऑक्सीजन और एम्बुलेंस करा रहे मुहैया 

कोरोना महामारी की दूसरी लहर पूरे देश को झकझोर चुकी है। ऐसे में बनारस की स्थिति भी दयनीय बनी हुई है। रोज़ किसी ने किसी की मौत ऑक्सीजन न मिलने, बेड न मुहैया होने से हो रही है। ऐसे में दूर दराज़ के क्षेत्रों के लोगों के लिए अशोक विहार, पहाड़िया के रहने वाले अनवर हुसैन देवदूत बने हुए हैं। अनवर अपने दत्तक पुत्री को पिछले साल गंभीर बिमारी के बाद खो चुके हैं। 
 

वाराणसी। कोरोना महामारी की दूसरी लहर पूरे देश को झकझोर चुकी है। ऐसे में बनारस की स्थिति भी दयनीय बनी हुई है। रोज़ किसी ने किसी की मौत ऑक्सीजन न मिलने, बेड न मुहैया होने से हो रही है। ऐसे में दूर दराज़ के क्षेत्रों के लोगों के लिए अशोक विहार, पहाड़िया के रहने वाले अनवर हुसैन देवदूत बने हुए हैं। अनवर अपने दत्तक पुत्री को पिछले साल गंभीर बिमारी के बाद खो चुके हैं। 

उसके बाद उन्होंने अपनी कार को एम्बुलेंस बनाया और किसी और की ज़िन्दगी की डोर ऑक्सीजन या एम्बुलेंस के आभाव में न टूट जाए उसके लिए दिनरात लगे हुए हैं। 

पूरे देश में दवाओं की कालाबाज़ारी, ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाज़ारी की खबर आ रही है। इसे सुनकर मन व्यथित है पर शहर बनारस ने इन सब के बीच एक बार फिर इंसानियत, भाई-चारा और गंगा जमुनी तहज़ीब का सन्देश दिया है। हम बात कर रहे हैं वाराणसी के पहाड़िया स्थित अशोक विहार कालोनी  फेज़-1 के रहने वाले अनवर हुसैन की। अनवर इस समय एम्बुलेंस मैन के नाम से बनारस में फेमस हो चुके हैं। 

अनवर ने Live VNS से बातचीत में बताया कि उन्हें किसी भी तरह की पब्लिसि‍टी नहीं चाहिए, बस लोगों को मेरे बारे में पता हो ताकि वो ज़रूरत के समय मुझे अपने पास बुला सके इसलिए मैंने मीडिया का सहारा लिया है। अनवर ने बताया कि साल 2020 में मेरी मासूम बेटी गंभीर बिमारी के बाद दिल्ली ले जाते समय एम्बुलेंस में ही उसने दम तोड़ दिया, जिसके बाद मैंने मन ही मन ठान लिया कि अब किसी और की मासूम बच्ची या किसी की ज़िन्दगी की डोर नहीं टूटने देंगे। 

इसके बाद उन्होंने अपनी बेटी मरियम के नाम पर एक फाउंडेशन बनाया और ग़रीबों और ज़रूरतमंदों के लिए निशुल्क एम्बुलेंस सेवा शुरू की। उन्होंने पानी गाड़ी को एम्बुलेंस का रूप दिया और दिन-रात लोगों की सेवा में लग गए। अब तक हज़ारों लोगों की अनवर मदद कर चुके हैं।  

अनवर ने बताया कि उनकी कोई संतान नहीं है। पत्नी भी बीमार रहती थीं। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद की एक गरीब परिवार की नवजात बच्ची को गोद ले लिया, जिसकी मां चल बसी थी, उसका नाम उन्होंने मरियम सिद्दीकी रखा, पर नियती को कुछ और ही मंजूर था। साल भर बाद ही मरियम को किसी लाइलाज बीमारी ने घेर लिया और दिल्ली ले जाते समय रास्ते में उसने मेरी बाहों में ही दम तोड़ दिया। 

अनवर ने बताया कि शुरुआत में तो उन्हें लगा कि उनकी दुनिया खत्म हो गई, लेकिन बाद में उन्होंने बेटी के नाम पर लोगों की मदद का फैसला किया और इस तरह वह जरूरतमंदों के लिए मददगार बनकर उभरे। अनवर का कहना है कि इंसानियत से बड़ा कुछ भी नहीं। संकट के दौर में किसी की सहायता करना ही इंसानियत है।

अनवर बीते साल कोराना संक्रमण की शुरुआत के बाद से ही प्रवासी मजदूरों और जरूरतमंदों और बीमारों की मदद  कर रहे है। उनके फाउंडेशन ने अपने संसाधनों से मजदूरों के लिए खाने का प्रबंध किया। वहीं इस बार जब कोराना की दूसरी लहर खतरनाक रूप से आई तो ऑक्सीजन के लिये मारामारी हो गई। ऐसे में अनवर हुसैन ने एंबुलेंस के साथ कई जरूरतमंदों को ऑक्सीजन भी मुहैया कराया।