जानिए कौन हैं महारानी अहिल्याबाई होल्कर, जिनसे आज हो रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्वनाथ धाम को अपने सपनो से जब धरातल पर उतारा तो चारों तरफ इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर और प्रधानमंत्री के नाम के जयकारे होने लगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिर्फ काशी विश्वनाथ ही नहीं बल्कि गुजरात के सोमनाथ मंदिर के जीर्णोंद्वार और भव्यता के लिए भी कई योजनाएं शुरू की हैं। इन दोनों ही मंदिरों से इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर का गहरा संबंध है। तो आइये जानते हैं कि आखिर कौन हैं महारानी अहिल्याबाई होल्कर जिनसे आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हो रही तुलना।
अहिल्या बाई होल्कर के इसी योगदान को याद करते हुए उनकी एक प्रतिमा श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में भी लगायी गयी है।
साधारण परिवार में जन्मीं बनी इंदौर की महारानी
महाराष्ट्र के अहमदनगर के जामखेड़ स्थित चौंढी गांव में 31 मई 1725 को अहिल्याबाई का जन्म हुआ था। अहिल्याबाई के पिता मानकोजी शिंदे एक साधारण लेकिन संस्कार वाले परिवार से थे। अहिल्याबाई का विवाह इंदौर के होल्कर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हुआ था। 1745 में अहिल्याबाई के पहले बेटा (मालेराव) हुआ और फिर तीन साल बाद एक बेटी (मुक्ताबाई)।
1766 में अहिल्याबाई ने संभाला शासन
अपने पिता के मार्गदर्शन में खंडेराव एक अच्छे सिपाही बन गए। अपनी पुत्रवधू अहिल्याबाई को भी मल्हारराव राजकाज की बारीकियों से परिचित कराते रहते थे। उनकी बुद्धि और चतुराई के वह भी कायल हो गए। हालांकि मल्हारराव के जीवित रहते ही उनके पुत्र खंडेराव का 1754 ईसवी में निधन हो गया था। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि पति की मौत के बाद अहिल्याबाई ने सती होने का फैसला किया था, लेकिन ससुर मल्हारराव होल्कर ने उन्हें ऐसा करने से रोका। 1766 में मल्हारराव की मृत्यु के बाद रानी अहिल्याबाई ने शासन अपने हाथ में लिया। माहेश्वर को राजधानी बनाकर 1795 में अपनी मृत्यु पर्यन्त उन्होंने बड़ी कुशलता से राजकाज चलाया।
बहादुर योद्धा और तीरंदाज भी थीं अहिल्याबाई होल्कर
1767 में बेटे मालेराव की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई ने तुकोजी होलकर को सेनापति नियुक्त किया। वह एक बहादुर योद्धा और अचूक तीरंदाज थीं। उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का कुशलता के साथ नेतृत्व किया। अपने पति और ससुर की मृत्यु के बाद उन्होंने इंदौर राज्य में विधावाओं और अनाथ लोगों के लिए आश्रम बनवाए। वहीं देशभर में तमाम मंदिरों का जीर्णोद्धार कराने के अलावा धर्मशालाओं, भोजनालय और बावरियों का भी अहिल्याबाई ने निर्माण कराया।
इस वजह से अहिल्याबाई ने पाई चौतरफा ख्याति
काशी विश्वनाथ और सोमनाथ- इन दो हिंदू मंदिरों के जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण के लिए अहिल्याबाई का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है। ये दोनों ही मंदिर शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में आते हैं। कहा जाता है कि सोमनाथ का मंदिर ईसा के पूर्व भी स्थित था। मंदिर पर बार-बार आक्रमण हुए। प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 में तीसरी बार इसका पुनर्निर्माण कराया। वहीं 1024 और 1026 में अफगानिस्तान के गजनी के सुल्तान महमूद गजनवी ने भी सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया। इसके बाद मंदिर को तहस-नहस करते हुए लूट लिया गया। इसके तकरीबन 750 साल बाद 1783 में अहिल्याबाई ने पुणे के पेशवा के साथ मिलकर ध्वस्त मंदिर के पास अलग मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर के गर्भगृह को जमीन के अंदर बनाया गया। मूल मंदिर स्थल पर सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट का बनाया नया मंदिर स्थापित है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का भी कराया पुनर्निर्माण
इसी तरह वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर को नया स्वरूप देने में भी अहिल्याबाई का योगदान था। मंदिर पर बार-बार हमले किए गए। बताया जाता है कि करीब साढ़े तीन हजार साल पुराने इस मंदिर पर बार-बार आक्रमण हुए। वहीं मुगल शासन के दौरान अकबर के नौरत्नों में से एक टोडरमल ने 1585 में मंदिर का निर्माण कराया था। इसमें दक्षिण भारत के विद्वान नारायण भट्ट का नाम भी सामने आता है। इसके करीब 100 साल बाद औरंगजेब के शासनकाल में मंदिर के तोड़े जाने की बात सामने आती है। इसके करीब 125 साल बाद तक विश्वनाथ मंदिर यहां नहीं था। काशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 1780 में अहिल्याबाई ने ही करवाया था। 13 अगस्त 1795 को भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी के दिन देश की इस महान शख्सियत ने शरीर त्याग दिया।
पीएम मोदी मानते हैं महारानी को अपना आदर्श
सोमनाथ हो या काशी विश्वनाथ, हिंदू मंदिरों के पुनर्निर्माण की जब-जब बात होती है, भला अहिल्याबाई होल्कर के योगदान को कैसे भुलाया जा सकता है। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में अहिल्याबाई का जिक्र करते हए कहा था कि, 'आज मैं लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर को भी प्रणाम करता हूं, जिन्होंने विश्वनाथ से लेकर सोमनाथ तक, कितने ही मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया। प्राचीनता और आधुनिकता का जो संगम उनके जीवन में था, आज देश उसे अपना आदर्श मानकर आगे बढ़ रहा है।'