कुम्हारों का दर्द सुनिए सरकार, 'इलेक्ट्रिक चाक ठीक है पर स्मार्ट मीटर का बिल बहुत ज़्यादा, बंद हो जाएगा कारोबार'
रिपोर्ट : राजेश अग्रहरि
वाराणसी। ये किसी फिल्म का डायलॉग नहीं बल्कि बनारस ज़िले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से इलेक्ट्रिक चाक पाकर मिट्टी के दीये में चार चांद लगाने वाले कुम्हार के हैं। इस समय सरकार की मंशा के अनुरूप ज़्यादातर कुम्हारों के पास इलेक्ट्रिक चाक है लेकिन कुम्हारों का कहना है कि पहले के मीटर पर यह चाक महीने का 500 से 700 बिल उठाता था पर अब यह भी स्मार्ट मीटर लगने से स्मार्ट हो गया है और 1300 से 1400 बिल उठाता है। इसलिए जल्द ही हम कारोबार बंद कर देंगे।
दीपावली से लेकर देव दीपावली और डाला छठ के त्यौहार पर दीपक जलाने का अपना अलग ही महत्त्व है। शरद पूर्णिमा के पहले से ही कुम्हार का चाक चलना शुरू हो जाता है और दीये, चौमुखे दीपक और अन्य चीज़ें जिनका पूजा में महत्व है बनना शुरू हो जाती है, लेकिन इस महंगाई के दौरे में कुम्हार अपने पुश्तैनी कारोबार को बचाने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं।
वाराणसी के फुलवरिया इलाके में कुम्हारों की अच्छी बस्ती है लेकिन अब ज़्यादातर घरों से यह कार्य ख़त्म हो गया है। इसका कारण महंगाई का बढ़ना है। ऐसे में हमने बात की 75 वर्षीय बुज़ुर्ग उमाशंकर प्रजापति से, उमाशंकर ने बताया कि 'साहब 60 बरस हो गए चाक चलाते और दीया बनाते। पहले हाथ से चाक चलाते थे और मोदी जी के प्रयासों से हम सभी को इलेक्ट्रिक चाक मिला है लेकिन अब स्मार्ट मीटर लगने से यह भी लगता है कि जल्द ही बंद करना पड़ेगा।
उमाशंकर ने बताया कि जब हमें चाक आज से दो साल पहले मिला तो हम बहुत खुश हुए क्योंकि कम समय में ज़यादा काम होता था इसपर और बिजली का बिल भी महीने में 600 से 700 रुपया आता था लेकिन जब से ये स्मार्ट मीटर आया है कमर टूट सी गयी है। कई लोग तो वापस हाथ वाले चाक पर काम करने लगे हैं क्योंकि इसका बिल महीने का 1300 से 1400 रुपये आ रहा है। इसके अलावा मिट्टी की महंगाई भी है कभी 35 सौ तो कभी 4 हज़ार रुपये ट्रैक्टर मिट्टी मिलती है और कभी कभी तो नहीं मिल पाती है।
इसके अलावा पहले जहां लोग 500 से 1000 दीये खरीदते थे वहीं अब लोग 30, 50 और 75 में सिमट गए हैं क्योंकि महंगाई बढ़ी हुई है। तेल का दाम आसमान छू रहा है तो कैसे बिकेगा। उन्होंने कहा कि उनके घर में अब उनका साथ नहीं देता क्योंकि बच्चे सभी अपना अलग-अलग काम धंधा तलाश चुके हैं। इस पुश्तैनी कार्य में पैसा नहीं है और मेहनत बहुत है इसलिए सभी ने इससे किनारा कर लिया है।
वहीं दीया बेचने के लिए निकली रेखा ने बताया कि दीया बेचने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ रही है। घर-घर लेकर जा रहे हैं फिर भी वाजिब दाम नहीं मिल रहा है। गली-गली बेचना पड़ता है दीये को, लोग खरीद भी नहीं रहे हैं, ज़्यादातर लोग बस भगवान की पूजा के लिए 5 दीये ले रहे हैं, जितने की बनाते हैं उतना पैसा भी नहीं मिल रहा है।
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