वनाग्नि की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील प्रदेश है उत्तराखंड, समुचित व्यवस्था में जुटा वन विभाग
- वनाग्नि प्रबंधन के लिए क्षमता विकास पर जोर, जनसहभागिता जरूरी
देहरादून, 26 अप्रैल (हि.स.)। उत्तराखंड बाहुल्य प्रदेश होने के साथ भिन्न-भिन्न विषम भौगोलिक संरचना के कारण वनाग्नि की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील प्रदेश है। ग्रीष्मकाल में प्रदेश के वन क्षेत्रों (विशेषकर चीड़ वनों में) वनाग्नि की घटनाएं बृहद पैमाने पर घटित होती है। वनाग्नि नियंत्रण एवं प्रबंधन के लिए वन विभाग समुचित व्यवस्था करने में जुटा है परंतु जनसहभागिता अत्यंत आवश्यक है।
वनाग्नि घटनाओं के लिए चीड़-पिरूल एक महत्तवपूर्ण घटक है। चीड़ बाहुल्य वन क्षेत्रों से चीड़ पिरूल के निस्तारण एवं उससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजित करने के लिए वर्तमान में संचालित पिरुल पैलैट्स, ब्रिकेट एवं अन्य विभिन्न उत्पादों के निर्माण आदि के साथ ही वनाग्नि नियंत्रण व प्रबंधन के लिए वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन के अपर प्रमुख वन संरक्षक निशांत वर्मा की अध्यक्षता में गढ़वाल मंडल से संबंधित विभिन्न प्रभागों के फील्ड वनाधिकारियों की कार्यशाला हुई। कार्यशाला में 35 अधिकारियों ने भौतिक रूप से और 47 वनाधिकारियों ने ऑनलाइन प्रतिभाग किया।
कार्यशाला में अपर प्रमुख वन संरक्षक ने कहा है कि एफएसआई से प्राप्त होने वाले अलर्ट पर तत्काल स्थलीय निरीक्षण कर एक्शन टेकन रिपोर्ट प्रेषित करना, एफएसआई से प्राप्त हो रहे लार्ज फारेस्ट फायर अलर्ट पर प्रभागीय वनाधिकारियों का व्यक्तिगत ध्यान अपेक्षित है। उन्होंने कहा कि यह प्रयास होना चाहिए कि इसको कम से कम समय में नियंत्रित किया जाए। जनपद स्तर पर समस्त रेखीय विभागों के अधिकारियों से समन्वय स्थापित कर उनका अपेक्षित सहयोग लिया जाए और जिला स्तर पर इंसीडेंट रिस्पांस टीम गठित कराई जाए। सक्रिय ग्राम स्तरीय वनाग्नि सुरक्षा समिति, वन पंचायत, महिला स्वयं सहायता समूह, महिला मंगल दल आदि का चिन्हिकरण कर समीपस्थ वन क्षेत्रों में वनाग्नि नियंत्रण की जिम्मेदारी देते हुए वनाग्नि नियंत्रण की कार्यवाही की जाए।
वन संरक्षक भागीरथी वृत्त धर्म सिंह मीणा व मुख्य वन संरक्षक गढ़वाल की ओर से वनाग्नि नियंत्रण एवं प्रबंधन के संबंध में प्रस्तुतीकरण देते हुए मुख्य रूप से चीड़ वनों में घठित वनाग्नि घटनाओं का उल्लेख करते हुए लीसा घावों, वृक्ष आदि की सुरक्षा पर बल देते हुए वनाग्नि शमन की कार्यवाही पर बल दिया। साथ ही सेवानिवृत्त प्रांतीय वन सेवा अधिकारी भरत सिंह ने वनाग्नि घटनाओं के कारणों, निवारण एवं सावधानियों के सम्बन्ध में विस्तार से बताया।
जीआईजेड प्रतिनिधि रितेश ने भी वनाग्नि घटनाओं की रोकथाम एवं उसके कारकों पर फारेस्ट इकोसिस्टम सर्विस पर प्रभाव के सम्बन्ध में प्रकाश डाला। भारतीय वन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. विनीत कुमार ने चीड़ वनों में गिरने वाले पिरूल के उपयोग एवं पिरूल पैलैट्स, ब्रिकेट एवं अन्य उत्पादों के निर्माण आदि के सम्बन्ध में प्रस्तुतीकरण दिया। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य वन प्रभागों में फील्ड कार्मिकों को वनाग्नि प्रबंधन के लिए त्वरित कार्यवाही के लिए तैयार रहने एवं नवनियुक्त वन कार्मिकों का वनाग्नि प्रबंधन के लिए क्षमता विकास किया जाना था।
हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/प्रभात