ऋषियों की विद्या को जन-जन तक पहुंचना हमारा प्रयास : आचार्य बालकृष्ण

 


हरिद्वार, 5 अगस्त (हि.स.)। पतंजलि विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय ‘सुश्रुतकोण’ सम्मेलन के दूसरे दिन की शुरुआत करते हुए आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि हमारा प्रयास ऋषियों की विद्या को जन-जन तक पहुंचाना है। विधा चाहे कोई भी हो, हम सभी का लक्ष्य रोगी को शीघ्रता से स्वास्थ्य लाभ करवाना होना चाहिए।

प्रथम सत्र में डॉ. विनोथ फिलिप, डॉ. पी. हेमंथा, डॉ. हेमंत गुप्ता, डॉ. सचिन गुप्ता ने शल्य चिकित्सा का लाईव सत्र प्रस्तुत किया। सत्र की अध्यक्षता डॉ. एम.सी. मिश्रा तथा डॉ. मनोरंजन साहू ने की। दूसरे सत्र में सर्जिकल प्रक्रियाओं में एकीकृत दृष्टिकोण विषय पर समानांतर मौखिक पेपर और पोस्टर सत्र प्रदर्शित किए गए। अध्यक्षता डॉ. प्रदीप भारद्वाज ने की।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पद्म भूषण डॉ. मनोरंजन साहू ने आयुर्वेद में साक्ष्य आधारित शल्य चिकित्सा प्रक्रिया के विषय में बताते हुए कहा कि आयुर्वेद में शल्य चिकित्सा प्राचीनकाल से है जिसका जीवंत प्रमाण सुश्रुत संहिता है। महर्षि सुश्रुत को आयुर्वेद में शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है। डॉ. मोहित वर्मा ने प्री-ऑपरेटिव कार्डियो-डायबिटिक रिस्क एसेसमेंट विषय से छात्र-छात्राओं को अवगत कराया।

डॉ. शिवजी गुप्ता ने क्षारसूत्र द्वारा गुदा में फिस्टुला के प्रबंधन में क्या करें और क्या न करें विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि फिस्टुला अत्यंत गम्भीर रोग है जिसका प्रामाणिक उपचार आयुर्वेद की शल्य क्रिया ‘क्षारसूत्र’द्वारा सम्भव है।

इस अवसर पर पतंजलि विश्वविद्यालय के अध्यक्ष स्वामी रामदेव तथा कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने अतिथि विद्वानों एवं प्रतिभागियों को प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला / वीरेन्द्र सिंह