अद्भुत है भगवान विष्णु की तपोस्थली बदरीनाथ धाम, यहां जन्मे थे नर-नारायण, जानें परंपरा

 




श्रीबदरीनाथ धाम, 10 अगस्त (हि.स.)। श्रीबदरीनाथ धाम भगवान विष्णु के 24 अवतारों में पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। श्रीबदरीनाथ धाम उत्तराखंड प्रदेश के सीमांत जनपद चमोली के उत्तरी भाग में हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित है। भू-बैकुंठ धाम श्रीबदरीनाथ धाम में नर-नारायण के जन्म उत्सव का अपना अलग ही धार्मिक महत्व है। यहां प्रतिवर्ष श्रावण मास में नर-नारायण जन्म उत्सव पर्व धूमधाम से मनाने की धार्मिक परंपरा है। नर-नारायण सतयुग के अवतार हैं, जो धर्म के अंश से मूर्ति देवी 'माता मूर्ति' से प्रगट हुए। नर-नारायण के माता-पिता धर्म देव एवं मूर्ति देवी हैं।

पौराणिक श्रुति के अनुसार महाबली राक्षस सहस्रकवच के अत्याचारों से परेशान होकर ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने धर्म के पुत्र के रूप में दक्ष प्रजापति की पुत्री मातामूर्ति के गर्भ से नर-नारायण के रूप भगवान ने अवतार लिया और जगत कल्याण के लिए इस स्थान पर घोर तपस्या की थी। भगवान नर-नारायण जब तपस्या के लिए बद्रीकाश्रम क्षेत्र में आए तो इनके साथ माता-पिता भी बद्रीकाश्रम पहुंच गए थे, तब माता मूर्ति देवी माणा 'मणि भद्र पूरी' में केशव प्रयाग के सामने तपस्या करने लगी। जबकि पिता धर्म का सरस्वती व अलकनंदा के बीच धर्म क्षेत्र में तपस्या करने का उल्लेख है।

शास्त्रों के अनुसार 'कर्कटे हस्त नक्षत्रे, बदरीनिलयोभवम।' अष्टाक्षर प्रदातारम, नारायणमहं भजे।। अर्थात कर्क के सूर्य में दैनिक हस्त नक्षत्र आने पर भगवान नर-नारायण का जन्म होना बताया गया है- 'अवतार बोध ग्रंथ'। मान्यता है कि भगवान नर-नारायण बद्रीकाश्रम क्षेत्र में आज भी तपस्यारत हैं। बदरीनाथ धाम में आयोजित नर-नारायण जन्म उत्सव की परंपरा के अनुसार प्रथम दिन भगवान नर-नारायण के चल विग्रह अपनी माता का आशीर्वाद लेने माता मूर्ति मंदिर माणा पहुंचते हैं। जबकि दूसरे दिन लीला ढूंगी बामणी में पूजा-अर्चना कर नगर भ्रमण के उपरांत भगवान नर-नारायण के चल विग्रह को श्रीबदरीनाथ मंदिर परिसर में सुसज्जित किया जाता है।

श्रीबदरीनाथ धाम के निवर्तमान धर्माधिकारी आचार्य भुवन चंद्र उनियाल के अनुसार बद्रीनाथ धाम में अनवरत नर-नारायण जन्म उत्सव का आयोजन होता रहा है। पूर्व वर्षों में जब नर-नारायण के विग्रह नहीं थे तब भी जन्म उत्सव कार्यक्रम आयोजित होते थे और धर्म ध्वजा के साथ परिक्रमा एवं धार्मिक आयोजन किए जाते थे। 90 के दशक में अष्टाक्षरी आश्रम के प्रमुख चिन्ना जियर स्वामी ने नर-नारायण के विग्रह श्रीबदरीनाथ मंदिर को समर्पित किए, तब से विग्रह के साथ जन्म उत्सव मनाया जाता है।

हिन्दुस्थान समाचार / प्रकाश कपरुवाण / कमलेश्वर शरण