रमा का स्वरोजगार मॉडल बना नजीर, महिलाओं को बना रहा है आत्मनिर्भर

 


-स्वरोजगार के जरिए 20 गांवों की महिलाओं को दिया है रोजगार

नैनीताल, 05 नवंबर (हि.स.)। ‘जीवन का नियम है-जो संघर्ष करता है वह अपने जीवन में असीम ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है।’ इन पंक्तियों को सार्थक कर दिखाया है नैनीताल जनपद के रामगढ़ ब्लॉक के नथुवाखान गांव निवासी रमा बिष्ट ने। रमा ने स्वरोजगार के जरिए रामगढ़ विकास खंड के 20 गांवों की महिलाओं को रोजगार दिया है और आत्मनिर्भर तथा सशक्त और स्वावलंबी बनाने का मंत्र भी दिया है।

रमा ने अपने स्वरोजगार की नींव 2003 में रखी थी। घर से खेत बहुत दूर होने से रमा को अन्य कार्य के लिए समय ही नहीं मिल पाता थां इसलिए रमा ने मन में ठान लिया था कि उसे कुछ अलग करना है। रामगढ को फल पट्टी के नाम से जाना जाता है। इसलिये रमा ने बागवानी करने की सोची। दिन-रात मेहनत की, घर-परिवार के साथ खेती संभाली और बागवानी भी करने लगीं। शुरूआत में बहुत सारी परेशानियों का सामना करते हुये और परिवार का भी अपेक्षित सहयोग न मिल पाने के बावजूद रमा ने हार नहीं मानी।

आखिरकार धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाई और आज रमा पहाड़ की महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं। रमा नें अपने गांव नथुवाखान में सेब, आडू, खुमानी व पुलम सहित विभिन्न प्रजातियों के पेड लगाये। साथ ही अपने बगीचे से प्राप्त फलों के साथ ही आस-पास के 20 गांवों के बागानों से फल खरीद कर उनसे से बुरांश, सेब, कीवी, आड़ू व पुलम आदि के शुगर फ्री स्क्वैश व चटनी, जैम, सॉस व अचार आदि विभिन्न उत्पाद तैयार करने लगीं। इससे वह अब अच्छी खासी आय प्राप्त करती है।

200 लोगों को देती हैं प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार-

यह भी है कि रमा पूरे साल अलग-अलग मौसम में अलग-अलग फलों से उत्पाद तैयार करती हैं, जिस कारण वह कभी खाली नहीं बैठती है। बड़ी बात यह भी है कि रमा का यह सारा काम मैन्युअली यानी हाथों से होता है। इस कारण वह हर मौसम में 20 से 50 महिलाओं को अपने घर में प्रत्यक्ष और आस पास के गाँवों के 200 लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराती हैं।

पढ़ाई भी जारी रखी-

रमा ने अपने काम के साथ साथ पढाई भी जारी रखी। कार्य के साथ ही उन्होंने सोशल वर्क में स्नातकोत्तर डिग्री भी हासिल की है। वह एक बार ब्लॉक प्रमुख पद की प्रबल दावेदार को हराकर क्षेत्र की क्षेत्र पंचायत सदस्य भी रह चुकी है। रमा महिला अधिकारों को लेकर घंटाें परिचर्चा भी करती हैं और सही मायनों में महिला सशक्तिकरण की एक मिशाल है।

रमा के हर्बल गार्डन में इन हर्बल प्लांट की होती है खेती-

रमा 2010 के बाद से संबंधित पुस्तकों के अध्ययन के साथ देहरादून व पंतनगर से हर्बल खेती के गुर सीखकर अपने हर्बल गार्डन में स्वीट बेसिल, सेज, स्टीविया, पेपर मिंट, रोजमेरी, मारजोरम, रोज जिरेनियम, आरेगानो, थायम, पार्सली, लेमन बाम, पर्सले हर्ब, लेमन ग्रास, केमोमाइल, अर्जुन, सौंफ, कासनी, गिलोय, अश्वगंधा सहित अन्य जड़ी-बूटियों को भी उगा रही हैं। साथ ही इन जडी बूटियों से वह विभिन्न प्रकार के उत्पाद भी तैयार करके विक्रय करती हैं। इसके अलावा वह हर्बल चाय और गुलाब जल भी तैयार करती हैं।

पहाड़ की महिलाओं को पितृ सत्तात्मक सोच से बाहर आने की जरूरत-

रमा कहती हैं, आज भी देश की आधी आबादी अपने हक और अधिकार से वंचित है। समाज को महिलाओं के प्रति युग-युगांतर से चली आ रही पितृ सत्तात्मक मानसिकता से बाहर आने की आवश्यकता है। आज महिलाएं हर क्षेत्र में सफलता का परचम लहरा रही हैं। इसलिए महिलाओं को स्वावलंबी बनाने, उन्हें बेहतर शिक्षा देने और खासकर पहाड़ की महिलाओं को आगे बढ़ने के अवसर देने की आवश्यकता है। तभी सही मायनों में महिला सशक्तिकरण का कथन चरितार्थ हो सकता है। उनकी अपनी बेटी पंतनगर विश्वविद्यालय से बीटेक कर रही है। वह अपनी सफलता में अपने पति का भी बहुत बड़ा योगदान बताती हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/डॉ. नवीन जोशी/रामानुज