मस्तिष्क के बाद शरीर का दूसरा सबसे बड़ा अंग है लीवर, बरतें सावधानी-रखें ख्याल

 




देहरादून, 24 अप्रैल (हि.स.)। लीवर से संबंधित बढ़ती बीमारियाें से निपटने के लिए इस बार विश्व लीवर दिवस पर जन समुदाय को समग्र कल्याण की आधारशिला के रूप में लीवर स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की जरूरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि ये बीमारी भारत में मृत्यु का 10वां प्रमुख कारण है। जो सभी मृत्यु दर के 2.4 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार है। अनुमान है कि लीवर की बीमारियों से आबादी का 10-15 प्रतिशत प्रभावित होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रभाव अनुपातहीन रूप से अधिक है।

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल देहरादून के लिवर ट्रांसप्लांट एवं गैस्ट्रो सर्जन कंसल्टेंट और एचओडी डॉ. मयंक नौटियाल ने लीवर रोगों से उत्पन्न रोगों के समाधान के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि मस्तिष्क के बाद शरीर का दूसरा सबसे बड़ा अंग लीवर है। इसका अच्छा स्वास्थ्य समग्र स्वास्थ्य का अभिन्न अंग है। इसके प्रभावी प्रबंधन के लिए लीवर रोगों की शीघ्र पहचान महत्वपूर्ण है। लीवर से संबंधित बीमारियों के लक्षण एक निश्चित मात्रा में क्षति होने के बाद ही उभरते हैं जिससे पता चलता है कि लीवर के लक्षणों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। जैसे-जैसे लीवर की बीमारी बढ़ती है। इसके शुरुआती लक्षणों में थकान, भूख न लगना, मचली और उल्टी शामिल है, जो आगे चलकर पीलिया, पेट दर्द, पैरों और पेट में सूजन, गहरे रंग का पेशाब और पीला मल रूप में दिखाई देती है। भारत में सबसे अधिक पाई जानी वाली लिवर रोगों में वायरल हेपेटाइटिस, अल्कोहलिक लीवर रोग और नॉन-अल्कोहलिक फैटी लीवर रोग (एनएएफएलडी) शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक अलग-अलग चुनौतियां और जटिलताएं पेश करती हैं।

लीवर से संबंधित बीमारियों की बढ़ती लहर को रोकने के लिए सक्रिय उपायों की आवश्यकता

एनएएफएलडी एक मूक महामारी के रूप में उभरा है, जो विश्व स्तर पर लगभग एक बिलियन लोगों को प्रभावित कर रहा है। भारत में इसका प्रसार नौ से 32 प्रतिशत तक है। 10 भारतीयों में एक से तीन व्यक्तियों को फैटी लीवर या संबंधित बीमारी है। यह चिंताजनक है और लीवर से संबंधित बीमारियों की बढ़ती लहर को रोकने के लिए सक्रिय उपायों की तत्काल आवश्यकता है।

चुनौतियां और जटिलताएं

गैस्ट्रोइंटरोलॉजी सीनियर कंसलटेंट डॉ. मयंक गुप्ता ने एनएएफएलडी की जटिलताओं के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि गैर-अल्कोहलिक फैटी लीवर रोग में लीवर में अतिरिक्त वसा जमा हो जाती है, जो शराब के सेवन से संबंधित नहीं है। समय के साथ यह व्यापक रूप से सूजन का कारण बन सकता है। लीवर में घाव को सिरोसिस के रूप में जाना जाता है और गंभीर मामलों में लीवर की विफलता या कैंसर। एनएएफएलडी से निपटने में चुनौतियों में से एक प्रारंभिक चरण के दौरान इसकी स्पर्शोन्मुख प्रकृति में निहित है, जिससे समय पर पता लगाना और हस्तक्षेप सर्वोपरि हो जाता है। डॉ. मयंक ने विशेष रूप से बच्चों में पेट की परेशानी, थकान और त्वचा में बदलाव जैसे सूक्ष्म संकेतों और लक्षणों को पहचानने के महत्व पर भी जोर दिया।

ऐसे कम कर सकते हैं जोखिम

एनएएफएलडी के पीछे के कारकों पर प्रकाश डालते हुए डॉ. मयंक ने बताया कि मोटापा, मधुमेह, उच्च कोलेस्ट्रॉल और गतिहीन आदतों वाली जीवनशैली एनएएफएलडी के विकास के जोखिम को काफी बढ़ा देते हैं। सक्रिय जीवनशैली अपनाकर इन परिवर्तनीय जोखिम कारकों को संशोधित और संबंधित जटिलताओं के प्रति संवेदनशीलता से व्यक्ति अपने इस जोखिम को कम कर सकते हैं।

लीवर के स्वास्थ्य की आधारशिला है रोकथाम और सावधानी

रोकथाम और सावधानी लीवर के स्वास्थ्य की आधारशिला है। संतुलित आहार अपनाकर, नियमित शारीरिक गतिविधि में शामिल होकर और नियमित स्वास्थ्य जांच कराकर, व्यक्ति एनएएफएलडी और लीवर से संबंधित अन्य बीमारियों की घातक शुरुआत से खुद को सुरक्षित रख सकते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/वीरेन्द्र