चीन पर निर्भरता खत्म, अब भारतभूमि से होंगे पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शन

 


- पवित्र कैलाश पर्वत दर्शन के लिए चीन जाने की जरूरत नहीं

- पर्यटन मंत्री ने किए ओल्ड लिपुलेख पास से कैलाश के दर्शन

देहरादून, 24 जून (हि.स.)। तिब्बत स्थित पवित्र कैलाश पर्वत को भगवान शिव का घर कहा जाता है। अब तक इसके दर्शन के लिए भारतवासियों को चीन के रास्ते तिब्बत जाना पड़ता था। इसके लिए चीन का वीजा लेने की आवश्यकता होती है, लेकिन देवादिदेव महादेव के दर्शन के लिए अब चीन जाने की आवश्यता नहीं है। भारत से ही कैलाश पर्वत के दर्शन कर सकेंगे। दरअसल, लिपुलेख से कैलाश पर्वत के दर्शन बहुत आसानी से होते हैं। इस खोज के बाद अब चीन पर निर्भरता खत्म हो गई है।

पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने जनपद पिथौरागढ़ स्थित ओल्ड लिपुलेख पास की 18000 फीट की ऊंचाई पर पहुंच कैलाश के दर्शन कर उत्तराखंड आने वाले शिवभक्तों को संदेश दिया है कि देवाधिदेव महादेव के निवास कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए अब उन्हें चीन जाने की आवश्यकता नहीं है। अब वह भारत भूमि उत्तराखंड में आकर भी कैलाश के भव्य-दिव्य दर्शन कर सकेंगे।

मंत्री सतपाल महाराज जनपद पिथौरागढ़ भ्रमण के दौरान धारचूला, गुंजी नाभीढांग (ओम पर्वत) होते हुए सोमवार को जोलिंगकोंग पहुंचे। फिर वहां से ओल्ड लिपुलेख पास की चोटी पर पहुंच देवाधिदेव महादेव भगवान शिव के निवास कैलाश के दर्शन कर पूजा अर्चना की। वह प्रदेश के पहले ऐसे मंत्री हैं जिन्होंने जनपद पिथौरागढ़ स्थित ओल्ड लिपुलेख पास की 18000 फीट की ऊंचाई पर पहुंच कैलाश के दर्शन किए। इस दौरान उनके साथ उनकी पत्नी और पूर्व कैबिनेट मंत्री अमृता रावत भी थीं।

महाराज ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 12 अक्टूबर 2023 की सुबह जब से आदिकैलाश के दर्शन किए तब से बड़ी संख्या में शिवभक्त जोलिंगकोंग पहुंच रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी यही से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर योगाभ्यास कर योग का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि 2019 से कैलाश मानसरोवर यात्रा बंद होने के कारण शिवभक्त कैलाश पर्वत के दर्शन नहीं कर पा रहे थे, इसलिए सरकार ने तय किया कि वह ओल्ड लिपुलेख पास से उन्हें कैलाश के दर्शन करवाएगी। ओल्ड लिपुलेख पास की पहाड़ी के ऊपर से पवित्र कैलाश पर्वत के दिव्य दर्शन के दौरान महाराज के साथ भारतीय सेना, आईटीबीपी और पुलिस के कई जवान भी थे।

कश्मीर से भूटान तक फैली हुई है कैलाश पर्वत श्रेणी

बता दें कि कैलाश पर्वत श्रेणी कश्मीर से भूटान तक फैली हुई है। इसमें ल्हा चू और झोंग चू के बीच यह पर्वत स्थित है। यहां दो जुड़े हुए शिखर हैं। इसमें से उत्तरी शिखर को कैलाश के नाम से जाना जाता है। इस शिखर का आकार एक विशाल शिवलिंग जैसा है। हिंदू धर्म में इसकी परिक्रमा का बड़ा महत्व है।

पहले आसान नहीं था कैलाश जाना

वर्ष 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ तो चीन ने भारत के कैलाश और मानसरोवर पर कब्जा कर लिया। अब यहां पहुंचने के लिए चीनी पर्यटक वीजा प्राप्त करना होता है। इसके कारण कैलाश जाना आसान नहीं था। आईटीबीपी के जवान और चीनी सैनिकों के पचासों तरह की चेकिंग के बाद मानसरोवर पहुंचा जाता है, लेकिन अब यह भारत से ही संभव है।

कोविड के बाद से चीन ने कैलाश मानसरोवर यात्रा पर लगाई है पाबंदी

उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि हम ऐसा मार्ग बना रहे हैं कि एक दिन में धारचूला से कैलाश पर्वत के दर्शन करके आप लौट आएंगे। उनकी ये योजना कई वर्ष पहले तैयार हो गई थी। यह भी बता दें कि कोविड के बाद से चीन ने भारत की कैलाश मानसरोवर यात्रा पर पाबंदी लगाई हुई है। नेपाल से ये यात्रा चल रही है, लेकिन वहां से इस यात्रा का खर्च काफी ज्यादा है। हालांकि अब पवित्र कैलाश पर्वत का दर्शन भारत से भी संभव है।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/वीरेन्द्र