दून पुस्तकालय : 'अपनी नदियों को जानो' विषय पर ज्ञानवर्धक कार्यक्रम, बताई दून घाटी की महत्ता

 


- दून घाटी की जलप्रवाह प्रणाली पर हुई चित्रात्मक वार्ता

देहरादून, 17 अगस्त (हि.स.)। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र सभागार में शनिवार की शाम 'अपनी नदियों को जानो' विषय पर ज्ञानवर्धक कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम में भारत ज्ञान विज्ञान समिति उत्तराखंड के अध्यक्ष विजय भट्ट और सामाजिक चिंतक इंद्रेश नौटियाल ने दून घाटी में बहने वाली नदियों के बारे में स्लाइड चित्रों व वार्ता के माध्यम से जानकारी दी।

विजय भट्ट बचपन से लेकर वर्तमान तक दून घाटी में अनेकों बार लोगों से बात कर चुके हैं। यात्रा के दौरान उन्होंने जो जाना-समझा उसी आधार पर अपनी आंखों देखा वृतांत लोगों के समक्ष रखने का प्रयास किया। विजय भट्ट ने कहा कि इस घाटी का निर्माण दो चरणों में हुआ। पहले चरण में उत्तरी क्षेत्र में मसूरी रेंज तथा दूसरे चरण में दक्षिणी भाग में शिवालिक श्रृंखला बनी। इस प्रक्रिया में लोअर हिमालयी क्षेत्र से आने वाली तलछट धीेरे-धीरे बीच के भाग में एकत्र होने लगी और परिणाम स्वरूप बीच में गहरी कटोरेनुमा घाटी का निर्माण हुआ, जो दून घाटी के नाम से जानी गई।

भारत ज्ञान विज्ञान समिति उत्तराखंड के अध्यक्ष ने बताया कि दून घाटी में दो पनढाल हैं। यहां का जल प्रवाह दो विपरीत दिशाओं पूर्व और पश्चिम दिशा की तरफ बहता है। आशारोड़ी क्लेमेनटाउन की सड़क में बरसाती पानी भी दो दिशाओं की ओर बहता है। पूरब दिशा का जल सुसवा नदी से होते हुए गंगा में और पश्चिम का पानी आसन नदी के जरिए यमुना नदी में मिल जाता हैं। दून घाटी में बहने वाली जलधाराओं से यहां के सदाबहार जंगल खूब पनपते रहे और यहां की जमीन उर्वर होकर समृद्ध होती गई। भूमिगत जलस्तर भी काफी ऊंचा बना रहा। इन्हीं विशेषताओं के कारण अंग्रेजी शासनकाल में यहां खूब नहरें बनीं और इनका पानी खेती में उपयोग किया गया। इससे किसानों की आय में भी वृद्धि हुई। यहां का बासमती चावल, चाय व लीची ने दुनिया भर में प्रसिद्धि हासिल की।

बढ़ते शहरीकरण को लेकर जताई चिंता

वर्तमान में दून घाटी में अनियंत्रित तरीके से बढ़ती बसाहट के साथ तथाकथित विकास के नाम पर चलने वाली अवैज्ञानिक योजनाओं व बढ़ते शहरीकरण को लेकर विजय भट्ट ने चिंता जताई और कहा कि इनकी वजह से यहां की नदियां अब गंदे नाले में तब्दील हो गई हैं। नहरें भीे समाप्त हो गई हैं। खेत-खलिहान व बाग-बगीचों में कंक्रीट के जंगल पनप गए हैं। इन सबके चलते यहां की आबोहवा में बहुत गिरावट आ गई है। सड़कों के नाम पर पुराने जंगल काट रहे हैं, जो पर्यावरण केे लिए चिंता का विषय है।

ज्ञानवर्धक कायक्रम से बढ़ेगी जागरूकता

प्रारंभ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने उपस्थित लोगों का स्वागत करते हुए कहा कि इस तरह के ज्ञानवर्धक कायक्रमों के जरिए लोगों में स्थानीय नदियों और पर्यावरण से जुड़े विविध पक्षों पर जागरूकता बढ़ेगी। कार्यक्रम सलाहकार निकोलस ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस दौरान विद्याभूषण रावत, जनकवि अतुल शर्मा, बिजू नेगी, कमलेश खंतवाल, डॉ. मालविका चौहान, डॉ. रवि चोपड़ा, डॉ. नंद नंदन पांडेय, चंदन सिंह नेगी, कमला पंत आदि उपस्थित थे।

हिन्दुस्थान समाचार / कमलेश्वर शरण / वीरेन्द्र सिंह