'रुण-झुण चौमास‘ कार्यक्रम में हुई गढ़वाली लोकगीतों की शानदार प्रस्तुति
देहरादून, 24 अगस्त (हि.स.)। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से रविवार शाम ‘रुण-झुण चौमास‘ शीर्षक के तहत गढ़वाली लोकगीतों का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें गढ़वाल अंचल में गाये जाने वाले परम्परागत वर्षाकालीन गीतों की शानदार प्रस्तुति दी गई। इसमें श्रीकृष्ण से सम्बन्धित कुछ गीतों की प्रस्तुति भी कलाकारों द्वारा दी गई। गढ़वाली लोक संगीत के इस विशेष कार्यक्रम में आशा रावत, मीना उनियाल, पुष्पा रावत, अंजु भट्ट एवं बीना गुसांई ने समूह गायन कर शानदार प्रस्तुति दी और सभागार में उपस्थित श्रोताओं का मन मोह लिया।
कार्यक्रम में संगीत के तौर पर ढोलक पर सैकत मंडल, बांसुरी पर महेश चन्द एवं हारमोनियम पर रॉबिन करमाकर ने साथ दिया।
कार्यक्रम में प्रस्तुत गीतों में रुण-झुण चौमास और हरे-भरे हो गये पहाड़, सूखी धरती की तीस बुझने, गाड़ -गधेरों, नौलों-धारों में पानी छलछला उठने, कुहरे के पसरने जैसे सौन्दर्य के साथ पहाड़ के धुर छानियों में रह रहे पशुपालकों के जनजीवन, घनघोर वर्षा में प्रियतम के वियोग व विवाहिता बेटी के अपने मायके की याद से जुड़े अनेक मार्मिक पक्ष उजागर हुए। रुण-झुण चौमास के इन विविध रंगों की प्रस्तुति को श्रोताओं ने खूब सराहा।
प्रस्तुति देने वाले कलाकारों ने सबसे पहले पारम्परिक गढ़वाली लोकगीत ‘जय जय बद्रीनाथ जी झमको ‘ गाकर कार्यक्रम की शुरूआत की। इसके बाद ‘जलम्यूं नारैणा,‘ ‘ठंडु माठु चौमास‘, ‘सेरा की मींडोली‘, ‘ले पोथली को मास‘, ‘चौमासी रिमझिम‘, ‘मथुरा जनम तेरो बाल गोविन्दा जी‘, ‘ननि ननि घिंगर की डाळी‘, के साथ ही बीना कंडारी द्वारा रचित ‘टिकुली बिंदुली‘ व ‘डांडी कांठी‘ आदि गीतों की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम के अन्त में सुपरिचित संस्कृतिकर्मी व लोकगायक स्व. केशव अनुरागी द्वारा रचित प्रसिद्ध गीत ‘हे दीदी हे भुली हे ब्वारी‘ से किया।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने श्रोताओं का स्वागत किया। निकोलस हॉफलैंड ने ने शानदार प्रस्तुति के लिए कलाकारों के उज्जवल भविष्य की कामना की और श्रोताओं का धन्यवाद किया। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती शान्ति बिन्जोला ने किया।
हिन्दुस्थान समाचार / कमलेश्वर शरण / वीरेन्द्र सिंह