पूर्व विधायक तड़ागी का 100 वर्ष की आयु में देहावसान
-400 रुपये में जीता था विधानसभा का चुनाव, 3 दिन पूर्व कही थी अपनी मृत्यु की बात
नैनीताल, 11 नवंबर (हि.स.)। नैनीताल के पूर्व विधायक रहे किशन सिंह तड़ागी का शनिवार को 100 वर्ष की आयु में देहावसान हो गया है। वह वर्ष 1985 और 1989 में 2 बार नैनीताल विधानसभा से विधायक और एक बार नैनीताल के नगर पालिकाध्यक्ष, 25 वर्षों तक नैनीताल बैंक और 3 वर्षों तक बैंक ऑफ बड़ौदा के निदेशक रहे थे। सुबह पौने 9 बजे उन्होंने नगर के लांग व्यू स्थित आवास पर अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुरूप पाइंस स्थित श्मशान घाट पर किया गया।
पूर्व विधायक के पुत्र विजय तड़ागी ने बताया कि उन्होंने तीन दिन पूर्व ही 3 दिन बाद अपनी मृत्यु होने और पाइंस में अंतिम संस्कार कराने की बात कह दी थी। उनके एक बड़े भाई का निधन हो चुका है, जबकि माता गायत्री तड़ागी 90 वर्ष की हैं। एक बहन का विवाह हो चुका है।
मूल रूप से चम्पावत के मेलाकोट में 17 मई 1923 को जन्मे एवं इसी वर्ष 17 मई को 100वां जन्मदिन बनाने वाले किशन सिंह तड़ागी चंपावत जिले के खेतीखान से मिडिल की पढ़ाई करने के बाद नैनीताल के वीरभट्टी स्थित बिष्ट स्टेट में नौकरी कर रहे अपने बड़े भाई के यहां आ गये थे। नैनीताल से हाईस्कूल व आगे लखनऊ से पढ़ाई करने के बाद वह बैंक आफ बड़ौदा के निदेशक चुने गए। उसके बाद वर्ष 1971 में नैनीताल के पालिकाध्यक्ष चुने गए और वर्ष 1985 से 1990 एवं 1990 से 1993 तक दोनों बार उक्रांद के प्रत्याशी, बाद में विधायक बने डॉ. नारायण सिंह जंतवाल को हराकर तत्कालीन संयुक्त नैनीताल विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर विधायक रहे।
उल्लेखनीय है कि तब अविभाजित नैनीताल जिला ओखलकांडा से लेकर टनकपुर, और काशीपुर तक और नैनीताल विधानसभा धारी, ओखलकांडा, रामगढ़, बेतालघाट, भवाली, नैनीताल से लेकर रामनगर तक थी। उनके निधन पर नगर कांग्रेस कमेटी के साथ अन्य राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों ने भी शोक जताया है।
मात्र 400 रुपये में विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीता -
स्वर्गीय तड़ागी ने अपने जीवन काल में बताया था कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिये रुपये नहीं थे। उन्होंने नैनीताल मूल का न होने के बावजूद चंपावत से आकर मात्र 400 रुपये में नैनीताल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता। उन्होंने बताया था कि तब उनके घर दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने आकर उनसे पार्टी बदलने का अनुरोध किया था, लेकिन उन्होंने सिद्धांतों का हवाला देकर विनम्रता से उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया था। इसी ईमानदारी व सिद्धांतों की राजनीति करके वह नैनीताल के पालिकाध्यक्ष और दो बार विधायक भी बने। यह भी बताया कि एक बार एक इंजीनियर अपना स्थानांतरण कराने के लिये उनके घर लाखों रुपये लेकर लाया था। उन्होंने उसे घर से बाहर निकाल दिया था और कभी रिश्वत लेने या देने की कोशिश न करने की ताकीद की थी।
पुराने दिनों को याद करते हुये वह कहते थे, तब सिद्धांत व विचारधारा की राजनीति होती थी। साथ ही राजनीति में शुचिता, ईमानदारी व निष्ठा का बोलबाला था। आज की तरह दलबदल या पालाबदल की राजनीति नहीं थी। आज की तरह चुनाव में टिकट के लिए सियासी तिकड़म भिड़ाने की जरूरत भी नहीं पड़ती थी। मतदाता भी प्रलोभन देने वाले व दल बदलने वाले प्रत्याशी को वोट नहीं देते थे। पूरे दिन प्रचार में पैदल निकलते थे। खर्चा केवल आने जाने में होता था। जातिवाद पर भी वोट नहीं मांगे जाते थे।
हिन्दुस्थान समाचार/डॉ. नवीन जोशी/रामानुज