गढ़वाल से कुमाऊं तक जल रहे जंगल, पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बनी आग
देहरादून, 31 मई (हि.स.)। उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने के बढ़ रहे मामले वन पास्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर चुनौती पैदा कर रहे हैं। शुष्क मौसम के कारण वातावरण में नमी घटने के साथ जंगलों के धधकने का सिलसिला बढ़ गया है। चिंता की बात है कि इन घटनाओं पर नियंत्रण पाना मुश्किल होता जा रहा है। बारिश की कमी और तेजी से बढ़ते तापमान के कारण वनों में छोटे जलाशयों का अभाव होने से आग की घटनाएं बढ़ रही हैं।
गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक जंगल जल रहे हैं। स्थिति कितनी भयावह होती जा रही है, यह इसी से समझा जा सकता है कि अब तक 1175 वनाग्नि की घटनाएं उत्तराखंड में हुई हैं। इनमें वनाग्नि की सर्वाधिक 586 घटनाएं कुमाऊं और 494 गढ़वाल में हुई हैं। वन्य जीव क्षेत्रों में भी 95 जगह आग लगी है। उत्तराखंड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 53,483 किलोमीटर है। इसमें से 86 फीसदी पहाड़ों और 65 फीसदी जंगल से ढका हुआ है। इसी में से 1605.37 हेक्टेयर से भी ज्यादा जंगल आग की चपेट में आ चुके हैं। चिंता का विषय है कि यह केवल इस वर्ष की कहानी नहीं, बल्कि प्रतिवर्ष राज्य में जंगलों का बड़ा हिस्सा वनाग्नि से तबाह हो जाता है।
सात माह में अब तक 1605.37 हेक्टेयर जंगल जले
वन विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में एक नवंबर 2023 से 31 मई 2024 तक 1605.37 हेक्टेयर जंगल जल गए हैं। प्रतिदिन जंगल की हरियाली राख हो रही है।
वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन के अपर प्रमुख वन संरक्षक निशांत वर्मा ने बताया कि वनाग्नि मामले में अब तक 438 केस दर्ज किए गए हैं।
पर्यावरण हो रहा दूषित, मानव समेत जीव-जंतुओं के अस्तित्व पर खतरा
जंगल की आग से जहां बड़ी मात्रा में वन संपदा नष्ट हो रही है। वहीं इससे पर्यावरण दूषित होने के साथ लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक जंगलों में लोगों को जलवायु परिवर्तन का भारी खमियाजा भी भुगतना पड़ता है। जीव-जंतुओं का भी अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। वैसे तो जंगलों में आग लगने के प्राकृतिक कारणों में सूखे पेड़ों या बांस का रगड़ खाना तथा पत्थरों से निकली चिंगारी या बिजली गिरना शामिल हैं। उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने का बड़ा कारण चीड़ के पेड़ों की बहुतायत और घने ज्वलनशील कूड़े का जमाव है। गर्मियों में बड़ी मात्रा में चीड़ की टहनियां और सूखे पत्ते इकट्ठा हो जाते हैं, जो आग के प्रति अत्यधिक संवदेनशील होते हैं। जंगल में आक्सीजन की प्रचुर मात्रा होती है और सूखे पेड़ों, झड़ियों, घास-फूस, कूड़े आदि के रूप में ईंधन की आपूर्ति भी निरंतर होती रहती है।
शुष्क मौसम में तेज हवा से फैल रही आग
शुष्क मौसम में शुष्क वनस्पति और जंगल में चलती तेज हवाएं इस आग के फैलने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। यही आग जब रिहायशी बस्तियों तक पहुंचती है तो सब कुछ तबाह कर जाती है। उत्तराखंड में मवेशियों के लिए नई घास उगाने के लिए जंगलों में आग लगाने की कुप्रथा भी है। हर वर्ष बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आते हैं, जिनसे पता चलता है कि चरवाहे प्राय: नई घास उगाने के उद्देश्य से सूखी घास में आग लगाते हैं।
लगातार बढ़ रही आग की घटनाएं, वन विभाग बेबस
आग की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए व्यापक वनाग्नि निगरानी कार्यक्रम शुरू कर निगरानी तंत्र को मजबूत करने की पहल भी की गई। मगर चिंता की बात है कि आग से वन संपदा को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए उपग्रहों से सतत निगरानी के अलावा अन्य तकनीकों के इस्तेमाल के बावजूद आग की घटनाएं बढ़ रही हैं और वन विभाग बेबस नजर आता है।
उदासीनता आग की घटनाओं पर काबू पाने में विफलता
उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटनाओं पर काबू पाने में विफलता का एक बड़ा कारण यह भी है कि वन क्षेत्रों के रहवासी अब वन संरक्षण के प्रति उदासीन हो चले हैं। हालांकि वनों के संरक्षण और उनकी देखभाल के लिए हजारों वनरक्षक नियुक्त हैं, लेकिन लाखों हेक्टेयर क्षेत्र में फैले जंगलों की हिफाजत करना इनके लिए सहज और आसान नहीं होता, इसलिए जरूरी है कि वनों के आसपास रहने वालों और उनके गांवों तक जन-जागरूकता अभियान चलाकर वनों से उनका रिश्ता कायम करने के प्रयास किए जाएं, ताकि वे वनों को अपने सुख-दुख का साथी समझें और इनके संरक्षण के लिए हर पल साथ खड़े नजर आएं।
वनाग्नि नियंत्रण के लिए ये कदम उठाए जाने की दरकार
पर्यावरणविद विनोद जुगलान का मानना है कि जंगलों को आग से बचाने के लिए रिमोट सेंसिंग अग्नि चेतावनी प्रणाली का इस्तेमाल करने, नियंत्रित तथा निर्धारित दहन के माध्यम से बायोमास्क हटाने जैसे कदम उठाए जाने की दरकार है। ड्रोन से जंगलों की निरंतर निगरानी की पुख्ता व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि जंगलों में जान-बूझकर आग लगाने वाले असामाजिक तत्वों पर नकेल कसी जा सके। वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिए लोगों को जागरूक किया जाना भी अत्यंत आवश्यक है।
हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/वीरेन्द्र