उत्तराखंड : आगजनी में 1011.328 हेक्टेयर वन संपदा नष्ट, अब तक हुईं 804 घटनाएं

 


देहरादून, 29 अप्रैल (हि.स.)। उत्तराखंड में इन दिनों से लगी आग लगातार बढ़ रही है। अपने सुरम्य परिदृश्य और हरे-भरे जंगलों के लिए प्रसिद्ध पहाड़ी राज्य में एक ऐसी आपदा आ रही है, जिसने पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने के साथ कई वनस्पतियों और जीवों के जीवन को खतरे में डाल दिया है। इस वर्ष भी गर्मी बढ़ाने के साथ जंगल में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं। हालात इस कदर भयावह हैं कि अब भारतीय सेना और एनडीआरएफ मिलकर जंगलों की आग पर नियंत्रण पाने की कोशिश कर रहे हैं।

एयर फोर्स के विमान भीमताल लेख से बांबी बकेट में पानी भरकर जंगलों में लगी आग पर काबू पानी की कोशिश की जा रही है। जंगल की आग से अब तक पहाड़ों के सैकड़ों हेक्टेयर वन जलकर राख हो गई है। वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन उत्तराखंड के अपर मुख्य वन संरक्षक निशांत वर्मा की ओर से सोमवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार एक नंबर 2023 से दो मई 2024 तक कुल 804 आग की घटनाएं हुई हैं। गढ़वाल में 314 व कुमाऊं में 427 तो वन्यजीव में 63 घटनाएं हुई हैं। आगजनी में 1011.328 हेक्टेयर वन प्रभावित हुए हैं।

जंगलों में आग लगने के कारण

उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की समस्या खासतौर पर फरवरी से जून के महीनों के दौरान देखी जाती है, क्योंकि इस समय मौसम शुष्क और गर्म होता है। नैनीताल के जंगलों में आग लगने का प्रमुख कारण नमी की कमी है। जंगल में मौजूद सूखी पत्तियां और अन्य ज्वलनशील पदार्थ तेज गर्मी की वजह से आग पकड़ लेते हैं। कई बार स्थानीय लोगों और पर्यटकों की लापरवाही के कारण भी जंगलों में आग लग जाती है। दरअसल, स्थानीय लोग अच्छी गुणवत्ता वाली घास उगाने, पेड़ों की अवैध कटाई को छुपाने, अवैध शिकार आदि के लिए जंगलों में आग लगा देते हैं, जिसकी वजह से आग पूरे जंगल में फैल जाती है। इसके अलावा टूरिस्ट कई बार जलती हुई सिगरेट या दूसरे पदार्थ जंगल में फेंक देते हैं, जिसके कारण आग पूरे जंगल में फैल जाती है। प्राकृतिक कारणों से भी जंगलों में आग लग जाती है। सूखी पत्तियों के साथ बिजली के तारों के घर्षण से भी जंगल में आग लगती है, जैसे बिजली गिरती है। वहीं बदलते जलवायु के कारण मौसम गर्म और शुष्क हो रहा है, जिसकी वजह से जंगलों में आग देखने को मिल रही है।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/प्रभात