सुर और संगीत के बीच लहराते साहित्य के शब्द

 


जयपुर, 13 दिसंबर (हि.स.)। एक तरफ युवाओं की प्रस्तुतियाँ, कहीं गूंजते महिला लेखिकाओं की कविता के सुर, फ़िल्म संगीत की मधुर प्रस्तुतियों पर झूमते श्रोता तो एक तरफ़ ट्रांसजेंडर, विजिबली डिसेबल्ड प्रोफ़ेसर और कैंसर से जूझ कर बाहर निकली थियेटर अभिनेत्री के संघर्ष की गाथा तो मुख्य सभागार में दिन भर पृथ्वी, पर्यावरण और संस्कृति को बचाने की चिंताओं, साहित्य और राजनीति के अंतर्संबंधों पर चर्चा और शिक्षा व संस्कृति पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रभाव पर गंभीर विमर्श , ऐसा ही नज़ारा रहा आज पिंकसिटी प्रेस क्लब में आयोजित नेशनल लिटरेचर ड्रामा फेस्टिवल के दूसरे दिन जहाँ सैंकड़ों युवा और वरिष्ठ साहित्य प्रेमियों ने भाग लिया।

पिंकसिटी प्रेस क्लब अध्यक्ष मुकेश मीणा एवं महासचिव मुकेश चौधरी ने बताया कि पिंकसिटी लिस्टेªचर फेस्टिवल के दूसरे दिन के कार्यक्रम की शुरुआत रति सक्सेना (अंतरराष्ट्रीय कवयित्री) की अध्यक्षता में आयोजित काव्यागोष्ठी से हुई , जिसका संचालन शिवानी शर्मा द्वारा हुआ | इस सत्र में डॉ. कविता, ज्योत्सना, जयश्री शर्मा एवं डॉ. रेखा गुप्ता सहित कुल 15 कवयित्रियों ने भाग लिया और अपनी कविताओं की प्रस्तुति दी।

आज का पहला वैचारिक सत्र था “जीवन संघर्ष और हम” जिसमें भाग लेते हुए महामंडलेश्वर पुष्पा माई ने ट्रांसजेंडर के अधिकारों के लिए अपने संघर्ष की दास्तान सुनाई। उन्होंने कहा कि ट्रांसजेंडर को वोट का अधिकार और उन्हें वोटर आई डी दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक कैसे लड़ाई लड़नी पड़ी। उन्होंने कहा कि हमें बचपन से ही समाज से दूरियां बनाकर एक डर पैदा करना सिखाया जाता है जो ग़लत है। हमें बच्चों को जैसा है वैसा ही स्वीकार करने की आदत डालनी चाहिए। उनका कहना है कि संघर्ष आज भी जारी है। सुबह आज भी संघर्ष के साथ होती है लेकिन शाम एक तजुर्बे के साथ ख़त्म होती है।

इस सत्र में विशेष अतिथियों के रूप में महामंडलेश्वर पुष्पा माई के अलावा विनीता नायर एवं रुचि गोयल उपस्थित रहीं। कार्यक्रम का उद्देश्य जीवन की कठिनाइयों के बीच सकारात्मक सोच, आत्मबल और उम्मीद को मजबूत करना था।

महामंडलेश्वर पुष्पा माई ने अपने जीवन संघर्षों को साझा करते हुए बताया कि ट्रांसजेंडर होने की सच्चाई को स्वीकार करना आसान नहीं था, लेकिन आत्म स्वीकृति ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बनी। छठी कक्षा में ही उन्हें यह एहसास हो गया था कि चुप रहना समाधान नहीं है।

मां के सहयोग और विश्वास ने उन्हें आगे बढ़ने का हौसला दिया। उन्होंने शिक्षा को अपना हथियार बनाया और तमाम सामाजिक चुनौतियों के बावजूद आत्मनिर्भर बनीं। आज 55 वर्ष की आयु में पुष्पा माई सामाजिक बदलाव और समानता की दिशा में निरंतर कार्य कर रही हैं।

चार बहनों के बीच पली-बढ़ी पुष्पा माई का कहना है कि समाज ने भले ही देर से उन्हें स्वीकार किया, लेकिन खुद को स्वीकार करना उनकी सबसे बड़ी जीत रही।

विनीता नायर ने कहा कि डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों को थिएटर से जुड़ना चाहिए, क्योंकि यह चेतना और कॉन्शियस माइंड के विकास में मदद करता है। वे भविष्य में साहित्य और दर्शन के जरिए नेत्रहीन विद्यार्थियों की समस्याओं पर काम करना चाहती हैं।

मात्र 5 प्रतिशत दृष्टि होने के बावजूद विनीता नायर ने एमफिल के बाद ड्रामा में पीजी डिप्लोमा किया और विशेष मैग्नीफाइंग ग्लास की सहायता से अपनी शिक्षा पूरी की।

इस अवसर पर रुचि गोयल ने अपने जीवन संघर्ष की अत्यंत भावनात्मक कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि वर्ष 2013 में उन्होंने थिएटर जॉइन किया था, लेकिन एक दुर्घटना के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई। जांच में उन्हें ब्रेस्ट कैंसर होने की जानकारी मिली, जिसने उन्हें भीतर तक तोड़ दिया। बावजूद इसके उन्होंने स्वयं को संभालते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया।

रुचि गोयल ने कहा कि उपचार के कठिन दौर में थिएटर उनके लिए सबसे बड़ी प्रेरणा बना। उन्होंने अपनी बेटी को अपनी ताकत बताया। उस समय उनकी बेटी 12वीं बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रही थी। एक दिन रुचि जी ने कागज़ पर चेहरा बनाकर उस पर तीन बाल लगाए और बेटी को दिखाया, जिस पर बेटी हँस पड़ी। उसी क्षण उन्हें महसूस हुआ कि परिवार में खुशियाँ लौट आई हैं। उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य स्वयं को मानसिक रूप से मजबूत रखने के साथ-साथ अपने परिवार को खुश रखना था। यह प्रेरणादायक प्रसंग उपस्थित सभी लोगों को जीवन को सकारात्मक दृष्टि से देखने का संदेश दे गया।

कार्यक्रम के विचार-विमर्श सत्र में विज्ञान और साहित्य के मेल पर चर्चा हुई। वक्ताओं ने कहा कि जब साहित्य विज्ञान से जुड़ता है, तब वह धरती को एक जीवंत इकाई के रूप में देखने की दृष्टि प्रदान करता है। इस सत्र में प्रोफेसर कृष्ण कुमार शर्मा, डॉ. लाइक हुसैन, अमरचंद बिश्नोई और विनोद जोशी ने अपने विचार रखे।

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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश