राजस्थानी शब्दकोश सृजन किसी तपस्या से कम नहीं : जस्टिस व्यास
जोधपुर, 30 दिसम्बर (हि.स.)। राजस्थानी शब्दकोश के निर्माता पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस की 117वीं जयंती मायड़भासा प्रेमियों ने जोधपुर में ओळूं उच्छब के रूप में मनाई।
संयोजक हरी सिंह भाटेलाई ने बताया कि जोधपुर के गौरव पथ स्थित पद्मश्री डॉ सीताराम लालस की प्रतिमा पर सेंट्रल जेके बैंड की मधुर स्वर लहरियों के साथ मायड़ भासा प्रेमियों ने पुष्पांजलि अर्पित की। उन्होंने बताया कि जोधपुर चारण सभा भवन में हुए पद्मश्री डॉ सीताराम लालस- व्यक्तित्व और कृतित्व विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता कोषकार के पुत्र इंजीनियर कैलाश दान लालस ने की और मुख्य अतिथि राजस्थान उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश गोपाल कृष्ण व्यास थे।
कार्यक्रम में रूंखडिय़ा बालाजी धाम नेरवा के संस्थापक स्वामी नारायण दास महाराज और भेळू झूंपड़ी धाम के संत चन्द्रशेखर का आध्यात्मिक सानिध्य भी रहा। जस्टिस व्यास ने अपने उद्बोधन में बताया कि राजस्थानी भाषा को तो हमारे तीज- त्योहार, पर्व, उत्सवों और दैनिक जीवन में तो मान्यता मिली हुई ही है। राजकीय मान्यता भी मिल जाए तो युवाओं को रोजगार में फायदा मिल सकेगा।
उन्होंने बताया कि सीताराम का शब्दकोष निर्माण किसी तपस्या से कम नहीं था। मंच संचालन करते हुए नारायण सिंह तोलेसर ने सीताराम के जीवन की कई घटनाओं को रेखांकित किया। डॉ. राजेन्द्र बारहठ और डॉ. जीवराज सिंह जुढिया ने भी अपने विचार साझा किए। कैलाश दान लालस ने अपने पिता की साहित्यिक यात्रा और शब्दकोश निर्माण की उनकी साधना पर विस्तार से प्रकाश डाला। संयोजक हरी सिंह भाटेलाई ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश