नेशनल कॉन्फ्रेंस आईएसआईईएमःदेश भर से 500 प्रतिभागी चिकित्सकों ने ली नवीनतम जानकारी
जयपुर, 22 सितंबर (हि.स.)। झालाना संस्थानिक क्षेत्र स्थित राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर, (आरआईसी) में चल रही इनबोर्न एरर्स ऑफ मेटाबॉलिज्म पर तीन दिवसीय नेशनल कॉन्फ्रेंस आईएसआईईएम 2024 रविवारर को यहां राजन्थान इंटरनेशन सेन्टर में सम्पन्न हो गई। तीन दिवसीय इस आयोजन में देश विदेश से आए डॉक्टर्स ने विचारों का आदान प्रदान किया तथा इस क्षेत्र में नवीनतम बदलावों की जानकारी ली।
नेशनल कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन गत शुक्रवार को एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. दीपक माहेश्वरी ने किया था। इस अवसर पर अतिरिक्त निदेशक डॉ. बी.एस चारण, एसिस्टेन्ट डायरेक्टर जनरल हैल्थ सर्विसेज मिनिस्ट्री ऑफ हैल्थ एण्ड फेमिली वेलफेयर, भारत सरकार, डॉ. मधुलिका काबरा एम्स दिल्ली, डॉ. सीमा कपूर, अध्यक्ष आईएसआईईएमई डॉ. प्रियांशु माथुर, आगेनाइजिंग सेक्रेटरी सहित अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।
अंतिम कार्यक्रम के तौर पर समापन समारोह और पुरस्कार वितरण का आयोजन किया गया जो ऑरगेनाइजेशन सेक्रेटरी डॉ. प्रियांशु माथुर और डॉ. लोकेश कुमार अग्रवाल उपस्थिति में हुआ। आगामी आईएसआईईएम-2026 में दिल्ली मिलने के साथ ही सभी प्रतिभागियों ने अलविदा जयपुर कहा। पुरस्कृत कियारू समापन समारोह के दौरान गत आयोजन के विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया। आयोजन सचिव डॉ.प्रियांशु माथुर और डॉ लोकेश अग्रवाल ने बताया कि ई-पोस्टर प्रस्तुति पुरस्कार प्रथम डॉ. श्रुति बजाज, द्वितीय डॉ. देवी सरन्या एस को दिया गया इसी प्रकार ओरल पेपर प्रेजेन्टेशन केटेगरी में प्रथम डॉ. साहिल माथुर द्वितीय डॉ. सेल्वमनोज कुमार एस और तृतीय पुरस्कार डॉ. लक्ष्मी सुरेश इसी प्रकार ई-पोस्टर प्रस्तुति पुरस्कार डॉ. तान्या जैन प्रथम और डॉ. सास बैलूर दूसरे स्थान पर रहे।
चिकित्सा एवं निदान में एआई तकनीक काफी कारगर
वर्तमान में चिकित्सा जगत में सबसे ज्यादा बदलाव एआई तकनीक ने किया है इस बारें में आईएसआईईएमई में आए विषय विशेषज्ञों ने बताया कि आज कोई भी जांच मोबाइल पर एप् के माध्यम से की जा सकती है। इस बारे में प्रमुख वक्ता डॉ सीमा ठाकुर ने बताया कि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में एआई की भूमिका लगातार महत्वपूर्ण होती जा रही है, जो देखभाल की सटीकता, दक्षता और वैयक्तिकरण को बेहतर बनाने में मदद करती है। एआई चिकित्सा छवियों (जैसे एक्स-रे, एमआरआई और सीटी स्कैन), जो कि पूर्व में प्रचलित थी अब पैथोलॉजी स्लाइड और रोगी के रिकॉर्ड का अविश्वसनीय गति और सटीकता के साथ विश्लेषण कर सकती है। इससे निदान तेज़ और अधिक सटीक होता है, जिससे त्रुटि की संभावना कम हो जाती है। उ्रन्होने कहा एआई और एमएल रोगियों के चिकित्सा इतिहास, आनुवंशिकी, जीवनशैली और वास्तविक समय के डेटा का विश्लेषण करके उनके लिए व्यक्तिगत उपचार की प्लानिंग की जा सकती है। यह सटीक चिकित्सा दृष्टिकोण हैल्थकेयर प्रॉफेशनल्स को व्यक्तिगत रोगियों के लिए उपचार तैयार करने की अनुमति देता है, जिससे सफल परिणामों की संभावना बढ़ जाती है और प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सकता है।
अनुवाशिंक जांच से गर्भस्थ शिुशु के रोगों का पता लगाना हुआ आसान
जेनेटिक यानी अनुवांशिक जाच भी काफी कारगर है इससे गर्भस्थ शिुशु के माता पिता या दादा दादी की जांच कर बताया जा सकता है कि गर्भस्थ शिुश तो किसी जेनेटिक रोग से ग्रसित नहीं है। इस बारे मं विषय विशेषड डॉ उषा दवे ने बताया कि जेनेटिक साइंस और बायोटेक्नोलॉजी में प्रगति ने कई नए जीनों की खोज की है जो कुछ सामान्य बीमारियों के खतरे को बढ़ाते हैं।
विभिन्न आनुवंशिक उपकरण जैसे कि साइटोजेनेटिक माइक्रोएरे और नेक्स्टजेन सिक्वेंसेज नजीएस) अब भारत में आनुवंशिक परामर्श चिकित्सकों के लिए उपलब्ध हो गए हैं, लेकिन अभी भी आम तौर पर जनता को इसकी जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया शिशु जन्म के 48 घंटों के भीतर प्रत्येक नवजात शिशु से एक छोटा रक्त नमूना (हील स्टिक) एकत्र किया जाता है और आनुवंशिक विकारों के पैनल के परीक्षण के लिए प्रयोगशाला में भेजा जाता है। नवजात स्क्रीनिंग कार्यक्रम फेनिलकेटोनुरिया (पीकेयू), सिकल सेल रोग और हाइपोथायरायडिज्म सहित 50 बीमारियों की जांच कर सकते हैं।
मैटाबॉलिक लीवर रोगों पर हुई चर्चा
मेटाबोलिक लिवर रोग विषय पर हुई चर्चा इस सत्र की सबसे महत्वपूर्ण चर्चाओं में से एक रही इस विषय पर व्याख्यान के माध्यम से इस रोग के कारण निदान और निवारण के बारे में जानकारी दी। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. अभिनव शर्मा, डॉ. आशीष अग्रवाल,डॉ. मनीष मित्तल और डॉ ललिता कनौजिया ने की। इसमें बताया गया कि गर्भावस्था में मेटाबोलिक डिसफंक्शन-एसोसिएटेड स्टीटोहेपेटाइटिस एमएएसएलडी गर्भवती महिला और भ्रूण दोनों के लिए जटिलताओं के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। विशेष रूप से, गर्भवती महिलाओं में प्रीक्लेम्पसिया जैसी उच्च रक्तचाप संबंधी जटिलताओं का अनुभव होने की संभावना तीन से चार गुना अधिक होती है ।
ल्यूकोडिस्ट्रोफी पर हुए पैनल डिस्कशन में इसके इलाज के लिए कुछ नवीनतम उपचारों के बारे में बताया गया। मुख्य वक्ता डॉ. सुनीता बिजारनिया ने बताया कि जीन थेरेपीरू मेटाक्रोमैटिक ल्यूकोडिस्ट्रॉफी (एमएलडी) के लिए एक जीन थेरेपी का वर्तमान में प्राइमेट्स में मूल्यांकन किया जा रहा है, जिसका लक्ष्य अंततः मनुष्यों में नैदानिक परीक्षण करना है। आईईएम के लिए लिवर प्रत्यारोपण हुई चर्चा में ओमान से आए डॉ. खालिद अल थिहली ने प्रेजेन्टेशन के जरिए जानकारी दी। इस सत्र में डॉ. लखन पोसवाल, डॉ. कोमल उप्पल, डॉ. मोहम्मद आसिफ और डॉ. जी एस तंवर उपस्थित रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश