थार की बहुमूल्य औषधियों पर होंगे अनुसंधान, नई प्रजाति भी होगी विकसित

 


जोधपुर, 19 दिसम्बर (हि.स.)। पश्चिमी राजस्थान औषधीय पौधों के हब के रूप में विशिष्ट पहचान रखता है साथ ही इन पौधों पर अनुसंधान की भी अपार संभावनाएं हैं जो स्वास्थ्य के साथ प्रदेश के कृषकों की आर्थिकी को भी नया रूप दे सकती है। इसी को देखते हुए कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर की पहल पर आयुष मंत्रालय की ओर से विश्वविद्यालय को थार के छह औषधीय पौधों पर अनुसंधान व नई प्रजातियां विकसित करने के लिए 1.20 करोड़ रुपए की प्रोजेक्ट राशि की स्वीकृति मिली है। इससे न सिर्फ औषधीय पौधों को बल मिलेगा बल्कि प्रदेश को भी नयी पहचान मिलेगी।

विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. डॉ. वीएस जैतावत ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय ने पहल करते हुए राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड, आयुष मंत्रालय से इस प्रोजेक्ट की स्वीकृति करायी है। थार की औषधीय प्रजातियों पर रिसर्च के माध्यम से विश्वविद्यालय का दो हजार किसानों तक पहुंचने का लक्ष्य भी तय किया गया है। अब तक इस क्षेत्र में असंगठित रूप से कार्य किया जा रहा था, इस प्रोजेक्ट के माध्यम से संगठित रूप से कार्य करने को मजबूती मिलेगी। इसके तहत नयी प्रजातियों की भी खोज की जाएगी साथ ही किसानों के लिए भी अतिरिक्त आय के संसाधन विकसित होंगे।

प्रोजेक्ट के प्रधान अन्वेषक डॉ. प्रदीप पगारिया ने बताया कि इस परियोजना के तहत शंखपुष्पी, अग्नि मंथ, अपराजिता , अश्वगंधा व गूग्गल पर कार्य होगा। इनकी कृषि तकनीक विकसित की जाएगी। इस दौरान जोधपुर मुख्यालय के साथ-साथ बाड़मेर, फलोदी व नागौर जिले के कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से परियोजना संचालित की जाएगी, जिससे इनकी खेती को बल मिलेगा। जहां यह परियोजना संचालित होगी वहां औषधीय पौधों के ग्रामीण संग्रहण केंद्र विकसित किए जाएंगे।

साथ ही इस परियोजना में गुणवत्ता युक्त पादप सामग्री के लिए सीड जर्म प्लाज्म सेंटर व नर्सरी तैयार की जाएगी। साथ ही इनके मूल्य संवर्धन व प्रसंस्करण पर भी इस परियोजना के तहत काम किया जाएगा। ग़ौरतलब है कि इस परियोजना के माध्यम से बदलते वैश्विक वातावरण में जैव विविधता संरक्षण के साथ-साथ किसानों को भी अतिरिक्त आमदनी प्राप्त होगी जो कि प्रशिक्षण, प्रदर्शन, क्रेता विक्रेता सम्मेलन , भ्रमण व जर्म प्लाज्म केंद्र के माध्यम से संभव हो पाएगा।

इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य प्रजाति विकास के लिए जर्म प्लाज्म केंद्र की स्थापना करना, स्थानीय व विलुप्तप्राय औषधीय पौधों का संरक्षण करना, औषधीय पौधों की जैविक व प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूकता फैलाना, उत्पादक किसानों व इंडस्ट्रीज के बीच लिंक अप करना व स्वास्थ्य को बढ़ावा व थार संस्कृति व पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है।

हिन्दुस्थान समाचार / सतीश