अरावली पर गहलोत का दावा, कहा—खुल जाएंगी 27,200 नई खदानें

 


जयपुर, 23 दिसंबर (हि.स.)। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव के अरावली क्षेत्र में केवल 0.19% नई माइनिंग की अनुमति देने के दावे पर तीखा हमला बोला है। गहलोत ने कहा कि यह दावा जनता को गुमराह करने वाला है और इसके पीछे अरावली पर्वत श्रृंखला को बड़े पैमाने पर बर्बाद करने की साजिश छिपी हुई है।

उन्होंने चेतावनी दी कि 0.19% के नाम पर 27,200 तक नई वैध खदानें खुल सकती हैं। गहलोत ने आंकड़ों के जरिए बताया कि अरावली क्षेत्र का कुल दायरा करीब 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर माना जा रहा है। इसका 0.19% लगभग 273.6 वर्ग किलोमीटर यानी करीब 68,000 एकड़ जमीन होता है। यदि एक-एक हेक्टेयर (करीब 2.5 एकड़) के हिसाब से खनन पट्टे दिए जाते हैं तो यहां 27,200 नई वैध खदानें खुल सकती हैं। उन्होंने कहा कि वैध खनन की आड़ में अवैध खनन को रोक पाना किसी भी सरकार के लिए लगभग असंभव होगा।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार पूरे 34 जिलों के क्षेत्रफल—जिसमें शहर, गांव, खेत और मैदानी इलाके भी शामिल हैं—को ही अरावली क्षेत्र मानकर 0.19% का आंकड़ा पेश कर रही है। जबकि वास्तविकता में खनन पहाड़ी इलाकों में ही होगा। ऐसे में यह प्रतिशत सुनने में भले ही छोटा लगे, लेकिन जमीन पर इसका असर बेहद विनाशकारी होगा। गहलोत ने कहा कि खनन का असर केवल खदानों तक सीमित नहीं रहता। इसके साथ सड़कों का निर्माण, क्रशर, डंपिंग यार्ड और उड़ती धूल आसपास की उपजाऊ जमीन, खेती और पूरे पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाएगी। यह प्रक्रिया लाखों एकड़ क्षेत्र को प्रभावित कर सकती है।

गहलोत ने केंद्र सरकार द्वारा माइंस एंड मिनरल्स (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट में किए गए संशोधनों पर भी सवाल उठाए।

2021 संशोधन में यदि राज्य सरकार समय पर खनिज ब्लॉक की नीलामी नहीं करती, तो केंद्र सरकार खुद नीलामी कर सकती है। गहलोत ने इसे राज्यों के प्राकृतिक संसाधनों पर जबरन कब्जा बताया।

2023 संशोधन में एक्सप्लोरेशन लाइसेंस (EL) का प्रावधान लाकर निजी और विदेशी कंपनियों को 29 खनिजों की खोज और खनन की छूट दी गई, जो पहले केवल सरकार के पास थी। इससे अरावली में तांबा, जिंक जैसे खनिजों के नाम पर बड़े पैमाने पर खुदाई का रास्ता खुल जाएगा।

गहलोत ने आरोप लगाया कि चार साल से अरावली को बर्बाद करने की तैयारी चल रही है। इसके तहत सीईसी को कमजोर किया गया, संरक्षित क्षेत्रों की सीमाओं से छेड़छाड़ की जा रही है और सरिस्का जैसे इलाकों में केवल तीन दिन में संरक्षित क्षेत्र बदलने का मॉडल तैयार किया गया। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि उनका आरोप स्पष्ट है कि यह केवल 0.19% खनन का मामला नहीं, बल्कि 90% अरावली को नुकसान पहुंचाने की साजिश है। उन्होंने कहा कि हम राजस्थान के पर्यावरण, खेती और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को कॉर्पोरेट मुनाफे की भेंट नहीं चढ़ने देंगे। केंद्र सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि वह अरावली को बचाना चाहती है या बेच देना चाहती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / रोहित