संतान की सलामती की कामना के महिलाएं करेंगी अहोई अष्टमी का व्रत

 


जयपुर, 3 नवंबर (हि.स.)। पांच नवंबर को कार्तिक कृष्ण अष्टमी को अहोई अष्टमी पर महिलाएं संतान की रक्षा और तरक्की के लिए अहोई माता की पूजा-अर्चना कर उनका व्रत रखेंगी। व्रत की कथा सुन कर रात्रि में तारों को अघ्र्य देकर व्रत खोलेंगी। अहोई अष्टमी तिथि का प्रारंभ 4 नवंबर की रात 1 बजे से होगा और इसका समापन 5 नवंबर ब्रह्म मुहूर्त से पूर्व होगा। उदया तिथि के अनुसार अष्टमी तिथि के अनुसार 5 नवंबर रविवार को है। इसलिए अहोई अष्टमी का व्रत इस दिन ही रखा जाएगा। इसदिन रवि पुष्य योग है। एक ही दिन में दो योग एक साथ बनने से व्रत का दोगुना फल मिलेगा।

ज्योतिषी के अनुसार नारद पुराण के अनुसार सभी मासों में कार्तिक माह को श्रेष्ठ बताया गया है। कार्तिक माह के कृष्ण अष्टमी को कर्काष्टमी नामक व्रत का विधान बताया गया है। इसलिए इसे अहोई आठे कहा जाता है। जिसका अर्थ होता है कि अनहोनी को होनी में बदलने वाली माता। इस संपूर्ण सृष्टि में अनहोनी या दुर्भाग्य को टालने वाली आदिशक्ति देवी पार्वती हैं। इसलिए इस दिन माता पार्वती की पूजा-अर्चना अहोई माता के रूप में की जाती है।

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व

अहोई अष्टमी के व्रत का महत्व ये है कि माताएं अपने बच्चों कि रक्षा और तरक्की के लिए इस व्रत को करती है। इस व्रत के प्रभाव से माता और संतान दोनो के जीवन में सुख-समृद्धि आती है और जीवन में चल रहीं परेशानियों से छुटकारा मिलता है।

ऐसे करें पूजा-अर्चना

अहोई अष्टमी की पूजा शाम को प्रदोष वेला में करना ज्यादा शुभ रहता है। व्रत करने के बाद संध्याकाल में सूर्यास्त होने के बाद जब आसमान में तारे उदय हो जाए तभी अहोई माता की पूजा शुरू करनी चाहिए। रात में चंद्रोदय होने पर चंद्रोदय होने पर चन्द्रमा को अघ्र्यदान करना चाहिए। मान्यता है कि सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद घर की एक दीवार को अच्छी से साफ करे और उस पर माता की आकृति बनाए। आकृति बनाने के लिए कुमकुम या गेरू का इस्तेमाल करना चाहिए। आकृति बनाने के बाद माता के सामने घी का दीपक जलाएं ।फिर हलवा,पूडी,मिठाई का भोग लगाएं ।जिसके बाद व्रत की कथा पढ़े और उनके मंत्रो का जाप करते हुए संतान की रक्षा व तरक्की के लिए उनसे प्रार्थना करें।

व्रत की कथा

कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक साहूकार के सात बेटे थे। दीपावली से पूर्व साहूकार की पत्नी घर की लिपाई-पुताई के लिए मिट्टी लेने खेत में गई। वह कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। मिट्टी खोदते समय उसकी कुदाल से अनजाने में एक पशु शावक स्याहू के बच्चे की मौत हो गई। इस घटना से दुखी होकर स्याहू की मां ने उस स्त्री को श्राप दे दिया। कुछ ही दिनों के बाद वर्ष भर में उसके सातों बेटे एक के बाद एक करके मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने गांव में आए सिद्ध महात्मा को विलाप करते हुए पूरी घटना बताई। महात्मा ने कहा कि तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर स्याहू और उसके बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करो और क्षमा-याचना करो। देवी मां की कृपा से तुम्हारा पाप नष्ट हो जाएगा। साहूकार की पत्नी ने साधु की बात मानकर कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी दिन व्रत और पूजा की। व्रत के प्रभाव से उसके सातों पुत्र जीवित हो गए। तभी से महिलाएं संतान के सुख की कामना के लिए अहोई माता की पूजा करती हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश सैनी/ईश्वर