जोधपुर एम्स में किया गया राजस्थान का पहला दुर्लभ तंत्रिका संबंधी विकार का सफल उपचार
जयपुर, 25 जून (हि.स.)। एम्स जोधपुर ने एक नौ वर्षीय बच्चे में डिस्टोनिया के एक दुर्लभ आनुवंशिक रूप का सफलतापूर्वक इलाज करके एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है, जो राजस्थान में इस तरह की अपनी पहली प्रक्रिया है। बाल चिकित्सा न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. लोकेश सैनी, न्यूरोसर्जन डॉ. मोहित अग्रवाल, इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ. सर्बेश तिवारी और एनेस्थेटिस्ट डॉ. स्वाति छाबड़ा सहित विशेषज्ञों की एक टीम ने न्यूरोसर्जरी प्रमुख और चिकित्सा अधीक्षक डॉ. दीपक झा तथा दुर्लभ रोग विशेषज्ञ, डॉ. कुलदीप सिंह के मार्गदर्शन में मिलकर काम किया।
नौ साल का यह बच्चा पिछले पांच साल से ऑटोसोमल डोमिनेंट इनहेरिटेंस के साथ एक विशिष्ट आनुवंशिक उत्परिवर्तन केएमटी2बी के कारण होने वाली बहुत ही दुर्लभ बीमारी प्राइमरी डिस्टोनिया से पीड़ित था। इस स्थिति के कारण उसके शरीर के विभिन्न हिस्से दर्द से ऐंठने लगे, जिससे उसके जीवन की गुणवत्ता में काफी गिरावट आई। इस बीमारी के लिए आमतौर पर दी जाने वाली दवाओं का बहुत कम असर हुआ, जिसके कारण माता-पिता को एम्स जोधपुर आना पड़ा।
गहन मूल्यांकन और परामर्श के बाद टीम ने सर्जिकल हस्तक्षेप का निर्णय किया। 15 मई 2024 को बच्चे को बाइलेटरल पैलिडोटॉमी नामक एक प्रक्रिया से गुजरना पड़ा, जिसे सटीकता के साथ किया गया। इस सर्जरी में असामान्य गतिविधियों के लिए जिम्मेदार विशिष्ट मस्तिष्क क्षेत्रों को न्यूनतम इनवेसिव तकनीकों का उपयोग करते हुए नष्ट किया गया। यह सर्जरी सफल रही। सर्जरी के बाद डिस्टोनिया की गंभीरता में कमी के साथ बच्चे की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ। उसके बाद से ही उसे लगातार न्यूरोरेहैबिलिटेशन तथा उचित देखभाल मिल रही है।
यह ऐतिहासिक उपलब्धि आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत संभव हुई, जिसमे मरीज को मुफ्त सर्जरी की सुविधा मिलती है , जिसकी कीमत आमतौर पर निजी अस्पतालों में दो-तीन लाख रुपये होती है। यह पहली बार है जब राजस्थान में किसी बच्चे पर यह प्रक्रिया की गई है। एम्स जोधपुर राजस्थान का एकमात्र सरकारी अस्पताल है जो पार्किंसंस, डिस्टोनिया एवं ट्रेमर्स जैसे गतिशीलता विकारों के लिए व्यापक देखभाल प्रदान करता है, जो कि बच्चों में ऐसी स्थितियों के इलाज के लिए एक नई मिसाल है।
हिन्दुस्थान समाचार/रोहित/ईश्वर