भंडारी और मुखर्जी का व्यक्तित्व शब्दकोश की सीमाओं से परे - वसुन्धरा राजे
उदयपुर, 23 जून (हि.स.)। सुंदर सिंह भंडारी और डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी का व्यक्तित्व किसी भी शब्दकोश के दायरे से बहुत बड़ा है। साजिश के तहत विचारधारा का अंत करने के लिए डॉ. मुखर्जी की हत्या की गई, लेकिन उनके लहू से सींचित यह विचारधारा आज दुनिया में सबसे बड़ी और अमर है।
यह बात पूर्व सीएम वसुन्धरा राजे ने रविवार को उदयपुर में सुंदर सिंह भंडारी चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से आयोजित व्याख्यान माला एवं विशिष्ट जन सम्मान कार्यक्रम में कही। जनसंघ के संस्थापक सदस्य रहे सुंदर सिंह भंडारी की पुण्यतिथि और संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता उन्होंने कहा कि स्व. भंडारी ने राजस्थान में भैरोंसिंह सहित कितने ही नेताओं को आगे बढ़ाया, पर वफा का वह दौर अलग था। तब लोग किसी के किए हुए को मानते थे, लेकिन आज तो लोग उसी अंगुली को पहले काटने का प्रयास करते हैं, जिसको पकड़ कर वह चलना सीखते हैं। स्व. भंडारी झूठ नहीं बोलते थे। आपातकाल में दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पुलिस ने उनसे नाम पूछा। उन्होंने सच बोला और गिरफ्तार हो गए।
राजे ने कहा कि डॉ. मुखर्जी ने धारा 370 के प्रावधानों का विरोध किया, जिसे नरेंद्र मोदी की सरकार ने हटाया। भंडारी आजीवन संघ के लिए समर्पित रहे। ब्रिटिशकाल में भंडारी को कहा गया कि बिना रजिस्ट्रेशन शाखा नहीं चला सकते। जवाब था, जीना छोड़ सकता हूं, पर शाखा लगाना नहीं।
उन्होंने कहा कि उनकी मां विजया राजे ने एमपी में 1967 में देश में पहली बार जनसंघ की सरकार बनाई और गोविंद नारायण सिंह को सीएम बनाया। तब भंडारी ने पत्र लिख कर खुशी जताई थी। मां ने बचपन से ही हमें संघ के संस्कार दिए। हमारे घर में तो कई बार संघ की शाखा लगती थी। अटल बिहारी वाजपेयी, आडवाणी, राजमाता, भैरोंसिंह, सुंदर सिंह भंडारी, रज्जू भैया, केएस सुदर्शन, दत्तोपंत ठेंगड़ी और कुशाभाव ठाकरे जैसे देशभक्तों का मार्गदर्शन हमें मिला।
राजे ने अपने उद्बोधन में राज्यपाल कटारिया को संबोधित करते हुए कहा कि जो विचारधारा की मशाल भंडारी ने प्रज्लवित की, उसे गुलाब चंद कटारिया ने निरंतर रखा। हम रहें न रहें अलग बात है, पर हमारी मूल विचारधारा जीवित और तीव्रगति के साथ अनवरत फलती-फूलती रहना चाहिए। भंडारी हमेशा संगठन सर्वोपरि के सिद्धांत की पैरवी करते थे। वे भी संगठन की एक छोटी सी कार्यकर्ता हैं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि असम के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया और विशिष्ट अतिथि जनजाति मंत्री बाबू लाल खराड़ी थे। विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी, राज्यसभा सांसद राजेंद्र गहलोत और पूर्व विधायक ज्ञानचंद आहूजा सहित कई लोगों को विशिष्टता के लिए सम्मानित किया गया।
कटारिया ने संघ कार्यकर्ता को मंच से धकेला, बाद में राजे ने बुलाया
-कार्यक्रम में असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया की मंच पर एक बुजुर्ग संघ कार्यकर्ता विजय सुवालका से बहस भी हो गई और उन्होंने बुजुर्ग को मंच से धकेल दिया। बताया जा रहा है कि बुजुर्ग कार्यकर्ता पूर्व मुख्यमंत्री का सम्मान करना चाहता था, लेकिन कटारिया ने उन्हें रोक दिया। इसके बाद सुरक्षाकर्मियों ने कार्यकर्ता को जबरन मंच से उतार दिया है। कार्यकर्ता को धकेलने के मामले पर कटारिया ने कहा कि हमारे कार्यक्रम के बीच कोई विघ्न नहीं हो सकता है। अनुशासित कार्यक्रम है और बीच में आकर सब माला पहनाने लग जाएंगे तो व्यवस्था बिगड़ जाएगी। कार्यक्रम के बाद सब आकर माला पहनाएं कोई मनाही नहीं है। कार्यक्रम के बाद में पूर्व मुख्यमंत्री राजे ने बुजुर्ग संघ कार्यकर्ता से बात की। कार्यकर्ता ने राजे को माला भी पहनाई।
कटारिया बोले, संत का सम्मान होता है, संघ प्रचारक को रोटी भी नहीं मिलती
-कार्यक्रम में कटारिया ने कहा कि कोई साधु-संत बन जाए तो उनका सम्मान होता है। संघ प्रचारक को कोई रोटी खिलाने वाला आदमी नहीं मिलता, कोई सोने की जगह देने वाला आदमी नहीं मिलता। स्व. भंडारी यह दौर देखने वालों में से एक थे।
टिकट कटता है तो हम कैसे-कैसे जतन करते हैं : मंत्री खराड़ी
-जनजाति मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने कहा कि स्व. भंडारी बहुत कठोर थे, अनुशासित थे, लेकिन अंदर से कोमल थे। हमें उनके जीवन का अनुसरण करना चाहिए। आज हमारे में से किसी का टिकट कटता है तो कैसे-कैसे जतन करते हैं। स्व. भंडारी ने सांसद का टिकट लेने से मना कर दिया था। वे संगठन को मजबूत करने में लगे रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/ सुनीता/संदीप