खानपान की गलत आदतों से तेजी से बढ रही कोलोरेक्टल कैंसर रोगियों की संख्या

 


जयपुर, 28 जनवरी (हि.स.)। भारत में जिस तेजी से वेस्टर्न वर्ल्ड के खाने-पीने की आदतों को अपनाना शुरू किया है उसी तेजी से भारत में कोलोरेक्टल कैंसर रोगियों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। एक सामान्य भारतीय परिवार भी सप्ताह में एक से दो बार होटल, रेस्त्रो या स्ट्रीट फूड खाना पसंद करता है। साथ ही स्मोक और ग्रिल किया हुआ भोजन (बाब्रिक्यू) खाना पसंद करता है, जो कि नुकसानदायक होता है। यह कहना है कोयंबटूर के जीआई सर्जन डॉ. एस राजपांडियन का। भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर की ओर से राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में चल रही इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस बीएमकॉन कोर -8 दौरान देश-विदेश से आए कोलोरेक्टल कैंसर के विशेषज्ञों की ओर कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई।

कॉन्फ्रेंस के ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेट्री डॉ. शशिकांत सैनी ने बताया कि कॉन्फ्रेंस के पहले दिन पांच लाइव सर्जरी की गई जिनका आरआईसी में लाइव टेलीकास्ट किया गया। देश के ख्याति प्राप्त जीआई सर्जन की ओर से एडवांस सर्जिकल प्रोसीजर के बारे में बताया गया। इसके साथ ही करीब 18 सेशन आयोजित हुए जिसमें यूएसए के डॉ पारूल शुक्ला, मुंबई के डॉ अवनीश सकलानी, अहमदाबाद से डॉ जगदीश एम कोठारी, पुणे से डॉ अमोल बापे और श्रीनगर से डॉ शबनम बशीर ने शामिल हुए।

कॉन्फ्रेंस के उदघाटन समारोह के मुख्य अतिथि लेफ्टिनेंट जनरल एस आर मेहता, एवीएसएम, वीएसएम, पीएचएस, डायरेक्टर, जनरल मेडिकल सर्विसेज आर्मी (रिटायर्ड) ने कैंसर रोग की पहचान समय पर होने पर जोर दिया। बीएमसीएचआरसी की ओर से चलाए जा रहे स्क्रीनिंग कार्यक्रम कैंसर जांच आपके द्वार की प्रशंसा करते हुए उन्होंने इस तरह के कार्यक्रम को आज के समय में बहुत उपयोगी बताया। उद्घाटन समारोह में आरयूएचएस के वाइस चांसलर डॉ सुधीर भंडारी और उदयपुर के डॉ सीपी जोशी ने कॉन्फ्रेंस के जरिए कॉलोनी और रेक्टल कैंसर विषय पर की जा रही चर्चाओं को महत्वपूर्ण बताया।

लिक्विड बायोप्सी की हुई शुरुआत

सॉलिड ट्यूमर की पहचान अब लिक्विड बायोप्सी के जरिए संभव है। सॉलिड टयूमर की पहचान के लिए बॉयोप्सी आवष्य जांच होती है, लेकिन कई लोगों में इस जांच को लेकर भ्रम है कि बॉयोप्सी से कैंसर छीड़ जाता है और शरीर में फैल जाता है। ऐसे लोगों की संख्या भी काफी है जो अपने डर से बॉयोप्सी ही नहीं करवाते और उपचार से वंचित रहते है। ऐसे में लिक्विड बॉयोप्सी उनके लिए एक बड़ी राहत है। इसमें रक्त जांच के जरिए भी कैंसर की पहचान हो सकती है। हालांकि यह टेस्ट महंगा और एडवांस होने के कारण भारत में अभी बहुत ज्यादा प्रचलित नहीं हुआ है।

पहले एडवांस स्टेज के कैंसर रोगियों में क्योर रेट (कैंसर मुक्त होने वाले रोगों का प्रतिशत) 5 फीसदी था, लेकिन यह अब 40 फीसदी तक पहुंच चुका है। एडवांस सर्जिकल प्रोसेस, इम्युनो थेरेपी जैसे कई नवीनतम उपचार पद्धतियों के कारण यह संभव हो पाया है। लेकिन आज भी लोगों में जागरूकता की कमी है, यही कारण है कि कैंसर रोगी आज भी पहली और दूसरी अवस्था में से ज्यादा तीसरी और चौथी अवस्था में उपचार के लिए चिकित्सक के पास पहुंचते है।

हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश सैनी/ईश्वर