बहन-बेटियों के प्रति जिम्मेदारी के भाव के सनातन संस्कार का प्रतीक है मायरा - संत दिग्विजयराम

 




उदयपुर, 16 नवम्बर (हि.स.)। मायरा हमारी बहन-बेटियों के प्रति जिम्मेदारी के भाव की सनातन परम्परा का प्रतीक है। मायरे की परम्परा हममें बहन-बेटियों के प्रति संरक्षा के पुनीत संकल्प का भाव जगाती है। और इस जिम्मेदारी को तो प्रभु द्वारिकाधीश ने भी निभाया और अपने भक्त नरसी की पुत्री के विवाह में मायरा लेकर दौड़े चले आए।

यह बात अंतरराष्ट्रीय कथा व्यास रामस्नेही संत दिग्विजयराम महाराज ने गुरुवार को यहां पलाना खुर्द गांव में माहेश्वरी समाज के तत्वावधान में शुरू हुए नानी बाई का मायरा संगीतमय कथा महोत्सव के आरंभ पर मायरे का अर्थ समझाते हुए कही। उन्होंने कहा कि मायरा बहन-बेटी के प्रति संरक्षा, समर्पण, जिम्मेदारी के भाव का प्रतीक है, और बहन-बेटी के प्रति इस तरह का भाव सनातन संस्कृति के संस्कारों में युगों से समाहित है। उन्होंने कहा कि भक्त नरसी की भक्ति ऐसी थी कि उनके लिए प्रभु एक बार नहीं, अपितु 52 बार वैकुण्ठ से दौड़े चले आए। उन्होंने मायरे के आध्यात्मिक अर्थ की व्याख्या करते हुए कहा कि जिस तरह ग्रीष्म ऋतु में वायरा अर्थात हवा का झौंका तपन से शीतलता प्रदान करता है, उसी तरह मायरा मनुष्य जीवन के युग-युगांतर की तप्त अवस्था को शीतलता प्रदान करता है।

माहेश्वरी समाज पलाना खुर्द की ओर से आयोजित इस कथा महोत्सव को पलाना गांव के लिए ऐतिहासिक बताते हुए उन्होंने कहा कि माहेश्वरी समाज को अपने ही कुल के मूंडवा निवासी शिवकरण दरक को भी याद करना चाहिए जिन्होंने नरसीजी का गायन योग्य भक्त चरित्र लिखा। उन्होंने बताया कि भक्तिमती मीरां, रतना खाती, रतनदास शाह आदि ने भी भक्त नरसी की कथा कही, लेकिन इन सभी के सार रूप का गठन शिवकरण दरक ने किया जिनकी टीका आज भी कथा का आधार है।

उन्होंने कहा कि कथा के निमित्त यहां नाती-पोते अपने दादा-नाना के साथ दिखाई दे रहे हैं, यह कथा गांव से दूर-दूर जा बसे परिवारों को यहां एकत्र कर लाई है, इससे बड़ा तीर्थ क्या हो सकता है। पलाना खुर्द की गलियां आज वृंदावन और कथा पाण्डाल अपने नाम द्वारिकाधाम को सिद्ध कर रहा है। उन्होंने बच्चों को कथा आयोजनों में लाने का आह्वान करते हुए कहा कि कथाएं राष्ट्र की धरोहर हैं, यह जीवन को जीना सिखाती हैं, जीवन में ज्ञान का प्रकाश भरती हैं। गूगल और गुरु में अंतर बताते हुए कहा कि गूगल रास्ता भटके हुए राहगीर को रस्ता दिखाता है, लेकिन, गुरु जीवन में भटके हुए व्यक्ति को राह दिखाता है। उन्होंने जीपीएस को गुरु प्रोसेसिंग सिस्टम का नाम देते हुए कहा कि जो इस प्रोसेसिंग सिस्टम में आ जाता है, अपने आप सही मार्ग पर लग जाता है। कथा व्यास ने संयुक्त परिवार के महत्व को भी इंगित करते हुए कहा कि संयुक्त परिवार परम्परा सनातन धर्म का गौरव है, दादी-नानी से ही सनातन संस्कार नई पीढ़ी तक अग्रेषित होते हैं।

कथा के पहले दिन कथा व्यास दिग्विजयराम महाराज ने भक्त नरसी के जन्म, उनके अबोलेपन के निवारण, परिवार द्वारा तिरस्कार, शिव भक्ति आदि प्रसंगों का वर्णन किया। इस दौरान भगवान शिव व भक्त नरसी के संवाद की झांकी की भी सुंदर प्रस्तुति हुई।

कथा के शुभारंभ पर माहेश्वरी समाज पलाना खुर्द कें प्रबुद्धजनों ने संतों का वंदन-अभिनंदन किया। उदयपुर चांदपोल रामद्वारा से पधारे संत नरपतराम महाराज, कथाव्यास के गुरु संत रमताराज महाराज ने भी आशीर्वचन प्रदान किया। समाज की बेटियों ने नृत्य आधारित गणपति वंदना प्रस्तुत की। कथा के दौरान भजनों पर श्रद्धालु खूब नाचे। कई महिलाओं ने मंच के सामने आकर तो कई ने उनकी जगह पर ही खड़े होकर नृत्य किया।

इससे पूर्व, संत वृंद को गांव में स्थित रामद्वारा से बग्घी में बिराजमान करवाकर भव्य शोभायात्रा के साथ कथा स्थल द्वारिकाधाम तक लाया गया। शोभायात्रा में सबसे आगे बैंड बाजे मधुर भक्तिगीत गाते चले, उसके बाद कलश लिए महिलाएं भक्तिगीतों पर नाचते गाते चलीं। उनके पीछे अन्य महिलाएं और पुरुष भी नाचते-गाते चले। शोभायात्रा में गांव के चारभुजानाथ मंदिर से रजत बेवाण में ठाकुरजी को बिराजमान कराकर छत्र-चंवर-छड़ी-निशान के साथ ठाठ-बाट से द्वारिकाधाम तक लाया गया। मार्ग में ठाकुरजी व संतश्री पर आकाश से पुष्प वर्षा भी की गई। शोभायात्रा में राधा-कृष्ण की झांकी भी शामिल थी।

तीन दिवसीय कथा महोत्सव के दौरान नियमित प्रभातफेरी की शुरुआत भी गुरुवार को हुई। पलाना खुर्द में भोर के साथ कीर्तन गूंज उठे। प्रभातफेरी में पूरा गांव सम्मिलित हुआ। एक घण्टे तक पूरे गांव में फेरी हुई जिसमें महिला-पुरुष राम धुन और कृष्ण भक्ति के गीत गाते चले। आयोजनकर्ता माहेश्वरी समाज के प्रबुद्धजनों ने बताया कि गांव में बरसों बाद ऐसा अवसर बना है, जिसमें गांव के सभी परिवार इस भक्ति गंगा में पुण्य लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

पलाना यानी सबको परफेक्टली लाना

-कथा व्यास दिग्विजयराम महाराज ने कथा के आरंभ में पलाना में एकत्र हुए माहेश्वरी समाज के परिवारों को भगवान श्रीराम के लंका विजय के उपरांत भ्राता लक्ष्मण के सवाल का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि लक्ष्मण ने पूछा कि प्रभु सोने की लंका छोड़कर अयोध्या क्यो जा रहे हैं, तब भगवान श्रीराम ने ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी’ श्लोक उद्धृत करते हुए कहा कि जन्मभूमि का महत्व स्वर्ग से भी अधिक है। कथा व्यास ने कहा कि सभी परिवारों को यहां एकत्र कर लाना भी बड़ी बात है, लेकिन जिस गांव में 65 सीए हों, वहां यह मैनेजमेंट परफेक्ट होना ही है। कथा व्यास ने पलाना का अर्थ बताया, सभी को परफेक्टली लाना।

हिंदुस्थान समाचार/सुनीता कौशल/ईश्वर