भारतीय ज्ञान परम्परा शाश्वत और इतिहास का फलक विशाल- एमजीएसयू कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित
बीकानेर, 26 मई (हि.स.)। भारतीय ज्ञान परंपरा अनादि काल से समृद्ध रूप से चली आ रही है। इस ज्ञान परंपरा के बलबूते ही भारत विश्व गुरु था, है और भविष्य में भी रहेगा। यहां केवल बात इतिहास की नहीं बल्कि नक्षत्र ज्ञान, विज्ञान, कला, गणित समाजशास्त्र धर्मशास्त्र सहित बहुतेरे विषयों पर भारतीय ज्ञान परम्परा की विश्व पटल पर अपनी अलग थाती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय ज्ञान परंपरा को और अधिक समृद्धि की ओर ले जाने का मार्ग है, जिसके लिए हम सभी को मिलकर धरातल पर काम करना होगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 एवं भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर रविवार को राजकीय डूंगर महाविद्यालय के प्रताप सभागार में वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। अवसर था शिक्षाविद् डॉ. आनन्दसिंह बीठू की प्रथम पुण्यतिथि पर आयोजित व्याख्यान माला का, जिसमें मुख्य वक्ता एवं मुख्य अतिथि महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित थे।
श्रुत परंपरा सबसे प्रामाणिक व प्राचीन परंपरा
कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने भारतीय ज्ञान की समृद्ध और शाश्वत परम्परा पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा शाश्वत है। श्रुत परंपरा सबसे प्रामाणिक व प्राचीन है। भारतीय ज्ञान परंपरा को भारतीय शिक्षण परंपरा में लाने के लिए भारतीय ग्रन्थों को संदर्भ ग्रन्थ के रूप में स्थान देना व उन्हें युगानुकूल स्थान देना जरूरी है। संसार की विभिन्न कलाओं, ज्ञान-विज्ञान की मूल भारत में विद्यमान है। उन्होंने विश्व के कई देशों यथा जर्मनी, इजिप्ट व होंडुरास इत्यादि का उदाहरण देते हुए बताया कि भारत की ज्ञान परंपरा से निकली शाखाएं आज भी विभिन्न देशों में विद्यमान है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपराओं के प्रामाणिक ग्रन्थ महाभारत व रामायण को संदर्भ ग्रन्थ के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।
स्वागत भाषण राजकीय डूंगर महाविद्यालय के इतिहास संकाय के विभागाध्यक्ष डॉ. चंद्रशेखर कच्छावा ने दिया। उन्होंने भारतीय ज्ञान परम्परा के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए समृद्ध ज्ञान परम्परा की वर्तमान शिक्षा पद्धति में उपादेयता पर विचार रखे। कॉलेज शिक्षा विभाग के सहायक निदेशक डॉ. पुष्पेन्द्रसिंह शेखावत ने कहा कि हर विषयों का अपना इतिहास है। भारतीय ज्ञान परंपरा उदात्त थी, है और रहेगी। भारतीय शिक्षा नीति-2020 के तहत गीता, रामायण जैसे सनातन धर्म के ग्रन्थ को भी पाठ्यक्रम में स्थान देना चाहिए।
राजकीय डूंगर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. इंद्रसिंह राजपुरोहित ने कहा कि सभ्यताओं के युद्ध में भारतीय पुरातन संस्कृति उभर नहीं पाई और अब इसे पुनर्जीवित कर भारतीय शिक्षण व्यवस्था में शामिल करना होगा। विदित रहे कि इसका उल्लेख भारतीय शिक्षा नीति-2020 भी करती है। उन्होंने कहा कि प्राचीन शिलालेखों, मूर्तियों, देवलियों, सतियों इत्यादि के इतिहास को एक नवीन दृष्टि से देखने की आवश्यकता है।
व्यक्ति नहीं विचारपुंज थे डॉ. आनंद बीठू- श्रीमाली
इतिहासकार व शिक्षाविद् जानकीनारायण श्रीमाली ने कहा कि डॉ. आनन्दसिंह बीठू विचारपूंज थे। भारतीय इतिहास संकलन समिति और राती घाटी शोध एवं विकास समिति के लिए किए गए उनके कार्य अविस्मरणीय रहेंगे। उन्होंने इस अवसर पर कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित के समक्ष महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय में रातीघाटी युद्ध शोध केन्द्र स्थापित किए जाने व भारतीय इतिहास की कालजयी घटना को इतिहास विषय के पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग रखी।
लेखक प्रमुख डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जोशी ने रातीघाटी शोध एवं विकास समिति द्वारा किए जा रहे शोध एवं नवाचारों पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम में भारतीय इतिहास संकलन समिति के जोधपुर प्रांत के संपर्क प्रमुख डॉ. अशोक शर्मा ने संस्थान की गतिविधियों और कार्यप्रणाली पर प्रकाश डाला। इससे डॉ. रामगोपाल शर्मा ने शिक्षाविद् डॉ. आनन्द सिंह बीठू की जीवनी और भारतीय ज्ञान परम्परा के संवर्द्धन को लेकर दिए गए उनके अवदान पर प्रकाश डाला। आभार वक्तव्य समिति के अध्यक्ष नरेन्द्रसिंह बीका ने दिया।
इस अवसर पर राजकीय डूंगर महाविद्यालय के संकाय सदस्य, शहर के प्रबुद्धजन, शिक्षाविद्, इतिहासकार, साहित्य क्षेत्र से जु़ड़े गणमान्यजन, शोधार्थी एवं विधार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संयोजन मदन मोदी व राजशेखर पुरोहित ने किया।
हिन्दुस्थान समाचार/राजीव/ईश्वर