'लकड़कोट' के जर्जरता पर इतिहासविदों ने जताई चिंता
उदयपुर, 20 नवम्बर (हि.स.)। विश्व विरासत सप्ताह के तहत इतिहास संकलन समिति, उदयपुर की ओर से आयोजित विरासत दर्शन अभियान के क्रम में शुक्रवार को इतिहासविदों के दल ने उदयपुर के समीपवर्ती भल्लों का गुड़ा-लकड़वास गांव का दौरा किया जहां ‘लकड़कोट’ की जर्जरता पर सभी ने चिंता जताई। भारतीय इतिहास संकलन योजना, जिला उदयपुर की ओर से आए इतिहासविदों ने निर्णय किया है कि समिति की ओर से इस विरासत के संरक्षण के मद्देनजर जिला कलेक्टर को इसका अवलोकन कराने के लिए पत्र लिखकर आग्रह किया जाएगा।
समिति के जिलाध्यक्ष डॉ. जीवन सिंह खरकवाल के नेतृत्व में इतिहासविदों व समिति के पदाधिकारियों का दल सोमवार सुबह भल्लों का गुड़ा गांव पहुंचा। यहां पर प्राचीन शहरकोट के दरवाजे की जर्जर हालत देख सभी ने इसके संरक्षक की आवश्यकता जताई। सभी ने कहा कि यह मेवाड़ के इतिहास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। पहाड़ी पर स्थित इस प्राचीन जर्जर दरवाजे के नीचे लोगों ने खुदाई कर पत्थर निकालने शुरू कर दिए हैं। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसके साथ कुछ वर्षों पूर्व तक नजर आने वाली शहरकोट की तरह यह दरवाजा भी ध्वस्त होकर गायब हो जाएगा।
इस दौरान क्षेत्रवासी उदयलाल डांगी ने दल को बताया कि करीब 15 से 20 वर्ष पूर्व तक यहां की शहरकोट को उन्होंने देखा है। उनके ही बड़े भाई के प्रयासों से यह ‘लकड़कोट’ का दरवाजा बच सका है। चूंकि यह शहरकोर्ट लकड़वास गांव में है इसलिए इसका नाम लकड़कोट पड़ गया। समिति के प्रांत संगठन मंत्री छगनलाल बोहरा ने उनसे बातचीत कर और भी जानकारी ली।
समिति अध्यक्ष डॉ. खरकवाल ने बताया कि डबोक स्थित धूणी माता मंदिर में लगे एक अभिलेख में लकड़कोट शब्द का उल्लेख आया है। समिति के प्रांत महामंत्री डॉ. विवेक भटनागर ने बताया कि इसका जिक्र महाराणा के बहिड़ों में भी आता है। दल में समिति के जिला मंत्री चैनशंकर दशोरा, सदस्य मंगल कुमार जैन आदि शामिल थे।
हिन्दुस्थान समाचार/सुनीता कौशल/संदीप