नानी बाई रो मायरो कथा : भगवान को आना पड़ा और छप्पन करोड़ का मायरा भी भरा

 




जयपुर, 9 जून (हि.स.)। गोविंद देवजी मंदिर सत्संग भवन में आयोजित तीन दिवसीय नानी बाई रो मायरो का समापन रविवार को हुआ। इस अवसर पर कथा सुनने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी कथा के प्रारंभ में कथा वाचक सुश्री प्रिया किशोरी ने कहा कि यह कथा सेवा, सहयोग और समर्पण की सीख देती है। कथा में सहयोग की भावना होनी चाहिए। क्योंकि सनातन धर्म को जीवित रखना है तो हमें एकजुटता मिलाकर ऐसे धार्मिक अनुष्ठानों करना जरूरी है।

आयोजन के प्रारंभ में चंद्र महेश झालानी, अखलेश अत्री, गोवर्धन बढ़ाया और रोहित झालानी ने व्यास पूजा की। इस मौके पर मोगरे के पुष्पों से भगवान का दरबार सजाया गया।आयोजन के तहत पूरा सत्संग भवन भगवान के जयकारों से गुंजायमान हो गया। कथा के दौरान बीच-बीच में देखो जी सासू म्हारा पीहर का परिवार.., बाई री सासम ननद लडे छे, मत नीचे आन पड़े छे.., ऊभो अर्ज करे हैं, सांवरियो हैं सेठ, आज तो सांवरियो बीरो मायरो ले आओ रे आदि भजनों की प्रस्तुति पर श्रोतागण महिला-पुरुष भाव-विभोर होकर नाचने लगे।

रोचक संवाद को प्रस्तुत किया

मीडिया प्रभारी चंद्र महेश झालानी ने बताया कि कथा के अंतिम दिन रविवार को सबसे विशेष भाग मायरे का मंचन हुआ। इसमें प्रिया किशोरी ने श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त नरसी मेहता की पुत्री नानी बाई के लालची ससुराल में आयोजित कार्यक्रम में मायरा भरने स्वयं श्रीहरि द्वारा उपस्थित होकर अपने भक्त की लाज रखने और करोड़ों रुपए का मायरा भरने की कथा का संगीतमय वर्णन किया गया।

नरसी मेहता में भगवान के प्रति सहयोग व समर्पण की भावना थी। जिस दिन हमारे बीच में सहयोग की भावना आ जाएगी। उन्होंने नरसी मेहता व श्रीकृष्ण के बीच हुए रोचक संवाद को प्रस्तुत किया। कथा में कथावाचक ने कहा कि घर में कितनी भी बहुएं हों, कोई अपने पीहर से कितना भी लाए, मगर ससुराल के लोगों को कभी भी धन के लिए किसी को प्रताड़ित नहीं करना चाहिए। क्योंकि हर किसी की आर्थिक स्थिति एक सी नहीं होती है। जीवन के अंत समय को इंसान को हमेशा याद रखना चाहिए। क्योंकि लकड़ी के लिए नया पेड़ लगाना पड़ेगा। सब कुछ पहले से ही तय होता है।

सर्वस्व न्योछावर कर दिया तब भगवान का साक्षात्कार हुआ

नानी बाई रो मायरो कार्यक्रम के अंतिम दिन को भगवान श्रीकृष्ण ने छप्पन करोड़ का मायरा भरा। नरसी भक्त ने भी कड़ी तपस्या कर भगवान को याद किया, उनको आना पड़ा और श्रीकृष्ण ने छप्पन करोड़ का मायरा भी भरा। भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त नरसी मेहता ने जब अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया तब उन्हें भगवान का साक्षात्कार हुआ। हमें भी लोभ, लालच व मोह का त्याग कर भगवान के प्रति समर्पण भाव से भक्ति करनी चाहिए। मनुष्य की तृष्णा कभी शांत नहीं होती, तृष्णा शांत हो जाए, तब ही प्रभु मिलन संभव है।

हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश सैनी/ईश्वर