मार्गशीर्ष मास में नदी में पवित्र स्नान और दान-पुण्य विशेष फलदायी
जयपुर, 30 नवंबर (हि.स.)। मार्गशीर्ष मास की शुरुआत हो चुकी है। खानपान और पहनावे के साथ ही भगवान की सेवा-पूजा में भी बदलाव हुआ है। ठाकुरजी को रात्रि में अब शॉल के बजाय रूई की मखमली रजाई ओढ़ाई जा रही है, साथ ही ठाकुरजी के स्नान के लिए गुनगुने जल में इत्र मिलाया जा रहा है।
ज्योतिषाचार्य पंडित बनवारी लाल शर्मा ने बताया कि भगवान कृष्ण और उनके अवतारों की पूजा,नदी में पवित्र स्नान और दान-पुण्य के लिए पूरा महीना विशेष फलदायी है। 26 दिसंबर को इस महीने का समापन होगा।
ज्योतिषाचार्य शर्मा ने बताया कि इस महीने में ही भगवान शिव-पार्वती और राम-सीता का विवाह हुआ था। इसके अलावा कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान भी इसी महीने में दिया था। वहीं मार्गशीर्ष मास को मगसर, अगहन या अग्रहायण भी कहा है। इसमें विष्णु स्वरूप भगवान कृष्ण की विशेष पूजा की परंपरा है। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि सभी महीनों में मार्गशीर्ष मेरा ही स्वरूप है। मार्गशीर्ष माह से ही सतयुग की स्थापना हुई थी।
ज्योतिषाचार्य पंडित बनवारी लाल शर्मा ने बताया कि तीस नवंबर को संकष्ट चतुर्थी, पांच दिसंबर को कालभैरव जयंती, सत्रह दिसंबर को विवाह पंचमी, बाईस दिसंबर को गीता जयंती, मोक्षदा एकादशी, छब्बीस दिसंबर को दत्तात्रेय जयंती, मार्गशीर्ष पूर्णिमा सहित अन्य व्रत-त्यौहार इस माह में हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश सैनी/संदीप