लोकसभा चुनाव : करौली-धौलपुर, बदलते वक्त के साथ बदली डांग क्षेत्र की चुनावी तस्वीर
छह दशकों तक रहा बयाना बना रहा लोकसभा क्षेत्र, सूबे के तीन जिलों के मतदाता चुनते थे अपना सांसद
-प्रदीप कुमार वर्मा
धौलपुर, 28 मार्च (हि.स.)। बीते दशकों में देश की राजनीति में हुए बदलाव के साथ करौली-धौलपुर संसदीय क्षेत्र ने भी नाम और पहचान में कई बदलाव देखे हैं। बदलते वक्त के साथ बयाना लोकसभा क्षेत्र में इलाके और मतदाताओं की तादाद में भी बदलाव से चुनाव की तस्वीर भी बदलती गई। करीब छह दशकों तक धौलपुर जिला बयाना संसदीय क्षेत्र के अधीन रहा। तब इस संसदीय क्षेत्र में धौलपुर के साथ-साथ तीन जिलों के मतदाता अपना सांसद चुनते रहे। चुनावी राजनीति में सीटों के बदलाव के चलते पूरे देश में वर्ष 2008 में हुए परिसीमन के बाद बयाना लोकसभा सीट का नाम और पहचान भी बदल गयी और यही बदलाव करौली-धौलपुर लोकसभा सीट के रूप में सामने है।
करौली-धौलपुर लोकसभा क्षेत्र के अतीत पर नजर डालें तो,पहले बयाना के नाम से इस लोकसभा क्षेत्र में भरतपुर, दौसा एवं धौलपुर जिले के मतदाता अपना सांसद चुनते थे। तब बयाना लोकसभा क्षेत्र में भरतपुर जिले के रूपवास, नदबई, बांध एवं बयाना विधानसभा क्षेत्र आते थे। इसके अलावा धौलपुर जिले के राजाखेड़ा, धौलपुर और बाड़ी विधानसभा तथा दौसा जिले की महुआ विधानसभा क्षेत्र बयान लोकसभा संसदीय क्षेत्र के तहत आते थे।
बयाना लोकसभा सीट पर वर्ष 1962 में हुए आम चुनाव में स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याशी टीकाराम पालीवाल निर्वाचित हुए थे। इसके बाद वर्ष 1967 एवं 71 में हुए आम चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जगन्नाथ पहाड़िया जीते। इसी क्रम में वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी ने सबसे पहले श्याम सुंदर लाल के रूप में बयाना संसदीय क्षेत्र में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई। इसके बाद वर्ष 1980 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जगन्नाथ पहाड़िया एक बार फिर से बयाना से चुनकर संसद पहुंचे। जबकि, वर्ष 1984 के आम चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लालाराम केन के रूप में अपना प्रत्याशी जिताया और इस सीट पर अपना मजबूत कब्जा बरकरार रखा। लेकिन 90 के दशक में बयाना लोकसभा सीट पर राजनीति का मिजाज बदला और वर्ष 1991 में भाजपा के गंगाराम कोली चुनाव जीते।
चुनावी इतिहास में वर्ष 1996 एवं वर्ष 1998 में हुए चुनाव में भी गंगाराम कोली और भाजपा का कब्जा बरकरार रहा। भाजपा की जीत का क्रम वर्ष 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में बहादुर सिंह कोली के रूप में कायम रहा। बयाना संसदीय सीट पर आखिरी लोकसभा चुनाव वर्ष 2004 में हुया। इस चुनाव में भाजपा के ही रामस्वरूप कोली ने शानदार जीत दर्ज की।
आम चुनाव की राजनीति के लिहाज से वर्ष 2008 में पूरे देश में परिसीमन हुआ और बयाना लोकसभा सीट बदलकर करौली -धौलपुर लोकसभा सीट बन गई। वर्तमान में करौली-धौलपुर लोकसभा सीट में पूर्वी राजस्थान के धौलपुर जिले की बाड़ी, बसेड़ी, राजाखेड़ा और धौलपुर तथा करौली जिले की हिंडौन, सपोटरा, टोडाभीम और करौली विधानसभा शामिल हैं।
करौली -धौलपुर सीट पर परिसीमन के बाद वर्ष 2009 में हुए चुनाव में इस नई संसदीय सीट पर कांग्रेस के खिलाड़ी लाल बेरवा सांसद निर्वाचित हुए थे। तब करौली धौलपुर सीट पर एक बार फिर से कांग्रेस का खाता खोलते हुए बैरवा ने भाजपा के प्रत्याशी डॉ. मनोज राजोरिया को करीब 29 हजार 723 मतों से हराया था।
वर्ष 2014 में हुए संसदीय चुनाव में इस सीट से भाजपा के डॉ. मनोज राजोरिया जीते। डॉ. राजोरिया ने कांग्रेस के लक्खीराम को 27 हजार 216 वोटो से हराकर इस सीट को भाजपा के खाते में ला दिया। इसके बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में करौली -धौलपुर संसदीय सीट पर भाजपा और डॉ. मनोज राजोरिया का कब्जा बरकरार रहा। इस चुनाव में डॉ. राजोरिया ने कांग्रेस के संजय कुमार जाटव को करीब 97 हजार 682 मतों से हरा दिया।
लोकसभा चुनाव के इतिहास के मुताबिक यह सीट फिलहाल भाजपा की परंपरागत सीट बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वच्छ छवि प्रभावशाली नेतृत्व, अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा,सीएए लागू होने, जम्मू और कश्मीर में धारा 370 का खात्मा तथा ईआरसीपी को मंजूरी मिलने जैसे मुद्दे भाजपा की ओर से गिनाए जा रहे हैं। उधर, देश और प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस द्वारा राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के जरिए सभी को न्याय दिलाने की वादे तथा केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगाते हुए भाजपा को घेरने की कोशिश की जा रही है।
हिन्दुस्थान समाचार/ प्रदीप/ईश्वर